September 29, 2024

पीएम नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से स्वदेशी से परिवारवाद तक पर की बात, पूरा भाषण

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 नई दिल्ली
पीएम नरेंद्र मोदी ने आज लगातार 9वीं बार देश को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर संबोधित किया है। यह ऐतिहासिक मौका भी है क्योंकि देश इस बार आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर स्वदेशी, आत्मनिर्भर भारत और महिलाओं के सम्मान की बात की। वहीं उन्होंने देश को अगले 25 सालों के लिए 5 प्रण भी दिलाए। उन्होंने कहा कि यदि हम इनका पालन करेंगे तो देश की आजादी के 100 साल पूरे होने तक भारत के एक विकसित देश होगा। पढ़िए, लाल किले की प्राचीर से दिया गया पीएम नरेंद्र मोदी का पूरा भाषण…

आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई। आज भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में भारतीय और भारत प्रेमी शान से तिरंगा लहरा रहे हैं। मैं आजादी के अमृत महोत्सव की बहुत बधाई देता हूं। आज का यह दिन ऐतिहासिक है। एक पुण्य पड़ाव, एक नई राह, एक नए संकल्प और नए सामर्थ्य के साथ कदम बढ़ाने का यह शुभ अवसर है। आजादी की जंग में गुलामी का पूरा कालखंड संघर्ष में मिटा है। हिंदुस्तान का कोई कोना ऐसा नहीं था, कोई काल ऐसा नहीं था, जब देशवासियों ने सैकड़ों सालों तक गुलामी के खिलाफ जंग न की हो। जीवन न खपाया हो, यातनाएं न झेली हों और आहुति न दी है। आज यह हर बलिदानी को नमन करने और उनका ऋण स्वीकार करने का अवसर है। यह उनके संकल्पों को जल्द पूरा करने का संकल्प लेने का भी अवसर है।

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हम सभी देशवासी महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, वीर सावरकर के ऋणी हैं। उन्होंने अपने जीवन को खपा दिया। यह देश कृतज्ञ है, मंगल पांडे, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्लिम और अन्य तमाम क्रांतिवीरों का। इन लोगों ने अंग्रेजों की नींव हिला दी। यह देश रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई, बेगम हजरत महल, रानी गाइडिल्यू का ऋणी है। भारत की नारी त्याग और बलिदान की पराकाष्ठा कर सकती है। अनगिनता वीरांगनाओं का स्मरण करते हुए हर भारतीय गर्व से भर जाता है।

 

डॉ. राजेंद्र प्रसाद हों, नेहरू हों, लाल बहादुर शास्त्री हों या फिर राम मनोहर लिया, नानाजी देशमुख, जयप्रकाश नारायण जैसे महापुरुषों को भी यह नमन करने का अवसर है। जब हम आजादी की जंग की चर्चा करते हैं तो हम उन जंगलों में जीने वाले आदिवासी समाज पर गौरव करना भी नहीं भूल सकते। भगवान बिरसा मुंडा, गोविंद गुरु जैसे अनगिनत नाम हैं, जिन्होंने आजादी के आंदोलन की आवाज बनकर दूर के जंगलों में भी आदिवासी भाई-बहनों में मातृभूमि के लिए जीने-मरने की प्रेरणा जगाई।

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यह देश का सौभाग्य रहा है कि देश की आजादी की जंग के कई रूप रहे हैं। इनमें से ही एक रूप था, जिसके तहत महर्षि अरविंद, स्वामी विवेकानंद, नाराय़ण गुरु जैसे लोग देश की चेतना को जगाते रहे। देशवासियों ने बीते एक साल में देश की आजादी के अमृत महोत्सव पर बहुत से कार्यक्रम किया। देश में शायद ही कभी एक ही लक्ष्य को लेकर इतना उत्सव मनाया गया हो। हिंदुस्तान के हर कोने में उन महापुरुषों को याद करने का प्रयास किया गया, जिन्हें किसी कारण से इतिहास में जगह नहीं मिली या फिर उन्हें भुला दिया गया। देश ने इन क्रांतिकारियों और सत्याग्रहियों को नमन किया।

कल 14 अगस्त को भारत ने विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस भी बड़े भारी मन से मनाया और विभाजन के गहरे घावों को याद किया। लाखों ने बहुत कुछ सहन किया था, तिरंगे की शान और मातृभूमि की मिट्टी से मोहब्बत के कारण सहन किया था। उनका संघर्ष प्रेरणा पाने योग्य है। आज हम जब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो बीते 75 सालों में देश के लिए जीने-मरने वाले और संकल्पों को पूरा करने वाले सेना के जवानों, पुलिसकर्मियों, जनप्रतिनिधियों को भी याद करने का समय है। 75 साल में इन सबके योगदान को भी आज स्मरण करने का अवसर है। यह देश के कोटि-कोटि नागरिकों को भी नमन करने का वक्त है, जिन्होंने अपने सामर्थ्य के अनुसार देश के लिए काम किया।

75 सालों की यात्रा अनेक उतार-चढ़ाव से भरी रही है। सुख-दुख की छाया मंडराती रही है, लेकिन इसके बीच भी देशवासियों ने पुरुषार्थ किया है और संकल्पों को ओझल नहीं होने दिया है। यह भी सच्चाई है कि सैकड़ों सालों की गुलामी नने भारतीयों के मनोभावों को गहरी चोट पहुंचाई थी। लेकिन इसके भीतर एक जीजीविषा और जुनून भी था। हमने अभावों और उपहासों के बीच भी संघर्ष किया। यह उपहास किया गया कि आजादी के बाद देश टूट जाएगा और लोग लड़कर मर जाएंगे। न जाने क्या-क्या आशंकाएं व्यक्ति की गईं। लेकिन उनको पता नहीं था, यह हिन्दुस्तान की मिट्टी है। इस मिट्टी में वह सामर्थ्य है, जो शासकों से भी परे सामर्थ्य का अंतरप्रवाह लेकर जीता रहा है। उसी का परिणाम है कि हमने क्या कुछ नहीं झेला।

कभी अन्न का संकट झेला, कभी युद्ध के शिकार हो गए। आतंकवाद के शिकार रहे। छद्मयुद्ध चलते रहे। प्राकृतिक आपदाएं आती रहीं। इन पड़ावों के बीच भी भारत आगे बढ़ता रहा। भारत की विविधता जो कभी बोझ लगती थी, वह विविधता ही भारत की अमोघ शक्ति है और उसका अटूट प्रमाण है।

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