कल्याण सिंह की ‘रामभक्त’ वाली छवि को भुनाएगी BJP, 8 फीसदी लोध वोटरों को साधने की कोशिश
लखनऊ
उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम और राम मंदिर आंदोलन के नायक रहे कल्याण सिंह के निधन को रविवार को एक साल पूरे हो जाएंगे। कल्याण सिंह के निधन के बाद से ही योगी सरकार उनके नाम पर कई कदम उठा चुकी है। बीजेपी 21 अगस्त को कल्याण सिंह की पहली पुण्यतिथि को भव्य तरीके से मनाने का ऐलान किया है। वहीं यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ लखनऊ के कैंसर संस्थान में लगाई गई कल्याण सिंह की प्रतिमा का अनावरण करेंगे। दरअसल, कल्याण सिंह लोध विरादरी के साथ ही पिछड़ों के बड़े नेता माने जाते थे और अब पहली पुण्यतिथि पर उनका सम्मान कर सरकार इस समुदाय के बीच बड़ा संदेश देने का प्रयास कर रही है। साथ ही कल्याण सिंह की हिन्दूवादी और रामभक्त वाली छवि का लाभ उठाने का प्रयास भी बीजेपी कर रही है।
2024 में बीजेपी को कितना मिलेगा कल्याण सिंह की छवि का लाभ
कल्याण सिंह की रामभक्त वाली छवि को जनता तक पहुंचाने की कवायद में बीजेपी जुटी है। उनके निधन के बाद से ही बीजेपी ने कई कदम उठाए। सड़कों का नामकरण उनके नाम पर किया गया। हालांकि बीजेपी के सूत्रों की माने तो कल्याण सिंह राम मंदिर आंदोलन के नायक थे और उनकी छवि लोगों के बीच एक रामभक्त की थी। अगले आम चुनाव से पहले राम मंदिर निर्माण को भक्तों के लिए खोलने की कवायद हो रही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले आम चुनाव में राम मंदिर निर्माण एक प्रमुख मुद्दा होगा और इसके केंद्र में इसके नायक कल्याण सिंह को रखकर ही बीजेपी अपनी पैठ बनाने का प्रयास करेगी।
कई नेताओं ने लखनऊ आकर कल्याण को दी थी श्रद्धांजलि
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का निधन पिछले साल 21 अगस्त को हो गया था। उनके जाने के बाद संगठन और सरकार ने मिलकर उनको पूरे सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी थी। पीएम मोदी से लेकर कई बड़े नेताओं ने लखनऊ आकर उनको श्रद्धांजलि भी दी थी। कल्याण के निधन के बाद बीजेपी के सामने नई चुनौती कल्याण के कद वाले नेता ढूंढने की है। कल्याण सिंह लोध समुदाय के साथ ही हिन्दुत्व और ओबीसी के चेहरे भी थे। इन सभी चीजों का मिश्रण एक नेता में मिलना ही सबसे बड़ी चुनौती है।
कल्याण सिंह की छवि को भुनाने का प्रयास
केशव मौर्य भले ही यह दावा करें कि कल्याण सिंह की स्मृतियों को जेहन में रखने के लिए बीजेपी ये फैसले पे रही है लेकिन इसके सियासी मायने भी हैं। कल्याण सिंह जिस लोध बिरादरी से आते थे वो यूपी में करीब आठ प्रतिशत है और यूपी की 25 से 30 लोकसभा क्षेत्रों और करीब 100 विधानसभा सीटों पर हार जीत में उनकी अहम भूमिका है। पश्चिमी उप्र हो या सेंट्रल यूपी या बुंदेलखंड हर जगह लोध मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है।
कल्याण के जाने के बाद लोध नेता नहीं तैयार कर पाई बीजेपी
कल्याण सिंह के पार्टी छोड़ने के बाद भाजपा ने कई चेहरों को आजमाया भाजपा से जब कल्याण सिंह पहली बार अलग हुए थे तब भाजपा ने उमा भारती को आगे लाकर यूपी में लोध नेता के तौर पर आगे बढ़ाने का प्रयास किया था। उमा भारती ने चरखारी विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा था। लेकिन वह यूपी की सियासत में ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाईं। कल्याण सिंह के विकल्प के तौर पर उनको आगे लगाने की कोशिश की गई थी लेकिन तब उमा भारती को अपने आपको उस तरह प्रस्तुत नहीं कर पाईं।
कल्याण के सहारे लोध समुदाय पर नजर
कल्याण सिंह को हमेशा ही ओबीसी का चेहरा माना जाता था। यूपी के आगरा, फर्रुखाबाद, बदायूं, हाथरस, मुरादाबाद, अमरोहा, बरेली, एटा, इटावा, कासगंज, बुलंदशहर, अलीगढ़, महोबा, झांसी, जालौन, उरई, ललितपुर और बांदा में लोध समुदाय अच्छी खासी संख्या में हैं। राजनीतिक विश्लेषक कुमार पंकज कहते हैं कि, "पार्टी ने उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए कल्याण सिंह के कद को स्पष्ट करने के लिए सब कुछ किया है। उनके निधन ने न केवल भाजपा समर्थकों के बीच 1992 की यादों को पुनर्जीवित करने वाली हिंदुत्व की भावना को फिर से जीवित कर दिया है, बल्कि ओबीसी नेता के रूप में उनकी विशेषताएं 2024 के आम चुनावों में भाजपा के लाभ के लिए काम आ सकती हैं। "