November 23, 2024

पहले नहीं हैं सचिन पायलट, अशोक गहलोत के जादू से नटवर सिंह हो चुके है छू मंतर

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जयपुर
 
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीते गुरुवार को कहा कि वह स्थायी जादूगर हैं और प्रदेश में उनका जादू स्थायी है। उन्होंने प्रदेश की जनता से यह अपील भी की कि अगले विधानसभा चुनाव में उनकी सरकार को फिर से मौका दें। सीएम गहलोत के सियासी मंतर से छू मंतर होने वाले सचिन पायलट पहले व्यक्ति नहीं है। पायलट से पहले गहलोत राजस्थान के बड़े-बड़े दिग्गजों को सियासी मात दे चुके हैं। राजस्थान में पार्टी नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है। गांधी परिवार को वफादार रहे के. नटवर सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी, दिग्ग्ज जाट नेता परसराम मदेरमा, रामनिवास मिर्धा, नाथूराम मिर्धा, पं. नवलकिशोर शर्मा, सीपी जोशी और स्वर्गीय राजेश पायलट को सियासी शिकस्त देने में सीएम गहलोत सफल रहे हैं। हालांकि, सीएम गहलोत ने यह बयान प्रधानमंत्री की कांग्रेस के संदर्भ में की गई 'काला जादू' वाली टिप्पणी को लेकर यह दिया था। लेकिन सीएम गहलोत का यह बयान राजस्थान में कांग्रेस के भीतर चली रही अंदरुनी खींचतान से भी जोड़कर देखा जा रहा है।

1998 में सीएम के प्रबल दावेदार थे नटवर सिंह
पूर्व केंद्रीय नटवर सिंह और सीएम अशोक गहलोत के बीच राजस्थान की राजनीति में कभी दोस्ती और कभी तकरार जैसे संबंध रहे हैं। नटवर सिंह हमेशा राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहे। प्रदेश की राजनीति में कम सक्रिय रहे। लेकिन दोनों नेताओं के संबंधों में उतार-चढ़ाव रहा। 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में राजस्थान की कुल 200 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस 153 सीटें जीतने में सफल रही थी। अब बारी थी कांग्रेस विधायक दल नेता चुनाव की थी। पहला दावा था, जाट नेताओं का था। नटवर सिंह प्रबल दावेदार थे। दूसरी दावेदारी जाट नेता परसराम मदेरणा की थी। परसराम मदेरणा जाट समुदाय से आते थे और कांग्रेस के दिग्गज नेता माने जाते थे। पुराने कांग्रेसी थे। मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार। ये फैक्टर अब मायने रखता था। कांग्रेस में राव-केसरी दौर बीत चुका था और अब सोनिया कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष थीं।
 
बलराम जाखड़ ने सुलझाया मामला
राजस्थान के तत्कालीन कांग्रेस प्रभारी माधव राव सिंधिया के अलावा गुलाब नबी आजाद, मोहसिना किदवई और बलराम जाखड़ एक होटल में रुके हुए थे। बलराम जाखड़ एक खास मामला सुलझाने के लिए होटल से बाहर गए हुए थे।  बाकी के नेता बारी-बारी से नए चुने हुए विधायकों को तलब कर रहे थे। मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए, इस सवाल पर राय ली जा रही थी। विधायकों की पसंद जानने के बाद उन्हें एक लाइन में जवाब दिया जाता। ऐसे में गहलोत की बाजी नटवर सिंह और परसराम मदेरणा पर भारी पड़ी। नटवर सिंह और परसराम मदेरणा ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावा छोड़ दिया। सबने मैडम सोनिया की इच्छा को मान लिया। अशोक गहलोत की प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी हुई। हालांकि, फैक्ट यह भी है कि जब माधवराव सिंधिया और बलराम जाखड़ विधायकों की राय जान रहे थे, अधिकांश विधायकों का समर्थन सीएम गहलोत के पक्ष में था। लेकिन जातीय समीकरण सीएम गहलोत के पक्ष में नहीं थे।

नटवर सिंह विद्रोह बन गए
10 जनपथ के वफादारों में पहले नंबर पर गिने जाने वाले नटवर सिंह को गांधी परिवार में कई विशेषाधिकार प्राप्त थे। नेहरू-गांधी खानदान के साथ दशकों जुड़े रहने के बावजूद कुछ साल पहले तेल घोटाले से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के बाद उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया था। बाद में नटवर सिंह बसपा में शामिल हो गए थे। लेकिन मायावती से पटरी नहीं बैठी। पार्टी से निकाल दिए गए। कहते हैं कि उस समय मुलायम सिंह यादल ने अमर सिंह के मार्फत नटवह सिंह को सपा का राज्यसभा सांसद बनने का आफर दिया लेकिन नटवर सिंह सपा में शामिल नहीं हुए। नटवर सिंह के बेटे  उनके बेटे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। कांग्रेस पार्टी के सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे नेताओं में एक नटवर सिंह विद्रोही बन गए। पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह भरतपुर से आते हैं। भरतपुर से सांसद बने। नटवर सिंह के धुर विरोधी विश्वेंद्र सिंह गहलोत सरकार में पर्यटन मंत्री है। भरतपुर की राजनीति में नटवर सिंह और विश्वेंद्र सिंह के बीच 36 का आंकड़ा रहा है। जगत सिंह भाजपा में शामिल हो गए और फिलहाल जिला प्रमुख है।

 

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