विप्लव देव को पसंद नहीं हिमंत बिस्व सरमा का दखल, त्रिपुरा ने बढ़ाई भाजपा का चिंता
त्रिपुरा
पूर्वोत्तर में मणिपुर के बाद त्रिपुरा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में उभरे असंतोष ने भाजपा नेतृत्व की इस क्षेत्र को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं। दोनों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री विप्लव देब को दिल्ली बुलाकर केंद्रीय नेतृत्व ने उनसे चर्चा की है। देब ने सरकार और संगठन को लेकर तो सवाल उठाए ही हैं, लेकिन सबसे बड़ा मुद्दा बाहरी हस्तक्षेप का है। इससे पूर्वोत्तर लोकतांत्रिक गठबंधन (नेडा) की कार्यप्रणाली को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं।
त्रिपुरा में इस साल की शुरुआत में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने फिर से सत्ता हासिल कर अपनी जमीनी मजबूती साबित की है। हालांकि, उसके वोट फीसदी में बड़ी कमी आई है और आदिवासी क्षेत्र की कई सीटें उसके हाथ से निकल गई हैं। इसके पहले भाजपा ने बीते साल राज्य में चुनावी दृष्टि से नेतृत्व परिवर्तन किया था और विप्लव देब की जगह माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया था। विप्लव को राष्ट्रीय राजनीति में लाने के साथ राज्यसभा सांसद भी बनाया गया।
अब विप्लव देब का खुलकर सरकार और संगठन को नसीहत देना व बाहरी हस्तक्षेप को लेकर मुखर होने से साफ हो गया है कि राज्य में सब कुछ ठीक नहीं है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री रहे देब के नजदीकी नेताओं व कार्यकर्ताओं को राज्य में तरजीह न देने से भी वह खफा हैं। सूत्रों के अनुसार, देब की नाराजगी असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा के हस्तक्षेप को लेकर भी है। बिस्व सरमा पूर्वोत्तर लोकतांत्रिक गठबंधन (नेडा) के संयोजक होने के नाते पूरे पूर्वोत्तर को देखते हैं। वह भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार भी हैं। अब कई राज्यों के भाजपा नेताओं को उनका हस्तक्षेप रास नहीं आ रहा है।
सूत्रों के अनुसार, मणिपुर और असम में पार्टी के भीतर की नाराजगी दूसरे राज्यों में भी फैल सकती हैं। वहां के हालातों को संभालने के लिए मौजूदा केंद्रीय संगठन भी अपनी प्रभावी छाप नहीं छोड़ पाए हैं। उनको लेकर भी शिकायतें आती रहती हैं। मालूम हो कि असम में भाजपा ने वहां के मुख्यमंत्री रहे सर्वानंद सोनोवाल को दोबारा मुख्यमंत्री न बनाकर उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया था, लेकिन देब के साथ ऐसा नहीं किया गया। इससे भी वह असहज हैं।
गौरतलब है कि भाजपा ने बीते सालों में पूर्वोत्तर के सभी राज्यों से कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर एक बड़ी राजनीतिक उपलब्धि हासिल की थी। इसके साथ ही उसने एनडीए से अलग नेडा भी गठित किया है, जिसमें पूर्वोत्तर की सभी राज्यों की सरकारों वाले दल शामिल हैं, भले ही उसमें भाजपा की हिस्सेदारी हो या न हो।