November 27, 2024

BJP के दबाव में बैकफ़ुट पर आए ब्रजभूषण शरण सिंह, जन चेतना रैली के रद्द होने की ये हैं वजहें

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नई दिल्ली
भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह को अयोध्या में आयोजित जनचेतना महारैली को स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इसके पीछे हालांकि कई वजहें बताईं जा रही हैं लेकिन सूत्रों की माने तो बीजेपी के बढ़ते दबाव के बीच उनको ये फैसला लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है। बीजेपी के सूत्रों की माने तो यह पार्टी और बृजभूषण दोनों तरफ से सहमति से हुआ है। दरअसल बीजेपी को भी पता है कि बृजभूषण शरण सिंह की उसके लिए क्या अहमियत है इसलिए वह बीच का रास्ता निकालकर मामले को दबाना चाह रही है।

दरअसल बृजभूषण की असली ताकत यूपी के आधा दर्जन लोकसभा क्षेत्रों में उनका प्रभाव है। इसके अलावा बृजभूषण शरण सिंह के संतों के साथ मजबूत संबंध और अयोध्या मंदिर आंदोलन में उनकी भूमिका उन्हें भाजपा के कई अन्य सांसदों की तुलना में मजबूत बनाती है। पूर्वी यूपी में उनके दर्जनों शैक्षणिक संस्थान उनके वोट बैंक के तौर पर काम करते हैं और यही वोट बैंक आज उनकी ताकत बने हुए हैं। बीजेपी के भीतर दबदबे में आई कमी 1957 में गोंडा में जन्मे सिंह की राजनीति में दिलचस्पी सत्तर के दशक में कॉलेज के छात्र के रूप में शुरू हुई थी। सिंह का भाजपा के भीतर जिस तरह का दबदबा है, वह इस बात से स्पष्ट है कि उन्होंने योगी आदित्यनाथ सरकार की भी खिंचाई की और राज्य सरकार की किरकिरी कराई।

उन्होंने बाढ़ के लिए तैयारियों में राज्य सरकार की कमी की भी आलोचना की थी जिसके बाद योगी से उनकी दूरियां बढ़ गईं थीं। हालांकि आरोप लगने के बाद बीजेपी के भीतर उनका दबदबा कम हुआ है। योगी सरकार की आलोचना ने बढ़ाई मुश्किलें इस बीच राजनीतिक विश्लेषक वास्तव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कार्रवाई न होने से चकित हैं, जो कि माफिया के मामले में कार्रवाई के लिए जाने जाते हैं। सिंह की गतिविधियों पर योगी आदित्यनाथ की आंखें मूंद लेना कोई भी नहीं समझ सकता है। यह पार्टी के उपर का दबाव ही है जो आदित्यनाथ को बृजभूषण के खिलाफ कार्रवाई से रोके हुए है।

हालांकि बृजभूषण शरण सिंह ने कहा है कि 5 जून को होने वाली जन चेतना महारैली को कुछ दिनों के लिए स्थगित किया गया है, क्योंकि महिला पहलवानों के उनके खिलाफ आरोपों की पुलिस जांच चल रही है। इस कार्यक्रम में लगभग 11 लाख लोगों के आने का दावा किया गया था। 1991 में पहली बार चुने गए सांसद दरअसल बृजभूषण शरण सिंह 1991 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए थे।

1996 में, जब दाऊद इब्राहिम के सहयोगियों को कथित रूप से शरण देने के लिए टाडा मामले में आरोपित होने के बाद सिंह को टिकट से वंचित कर दिया गया था, तो उनकी पत्नी केकतीदेवी सिंह को गोंडा से भाजपा ने मैदान में उतारा और जीत हासिल की। 1998 में सिंह को गोंडा से समाजवादी पार्टी के कीर्तिवर्धन सिंह से एक दुर्लभ चुनाव हार का सामना करना पड़ा। अयोध्या से श्रावस्ती तक आधा दर्जन जिलों में है प्रभाव अपने प्रभावशाली चुनावी प्रभाव के अलावा, सिंह उनके द्वारा चलाए जा रहे लगभग 50 शैक्षणिक संस्थानों की एक श्रृंखला के माध्यम से दबदबा कायम करते हैं, जो अयोध्या से श्रावस्ती तक 100 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। 2009 में सिंह ने हवा का रुख भांपते हुए सपा का रुख कर लिया था और कैसरगंज से एक भाजपा उम्मीदवार को हराकर जीत हासिल की। केंद्र में 2009 के चुनाव यूपीए ने सहयोगी के रूप में सपा के साथ जीते थे।
 

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