September 30, 2024

आम चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता की चर्चा, मन में उमड़ रहे सवालों के जवाब जान लीजिए

0

नईदिल्ली

जैसे-जैसे 2024 का लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, लोग बीजेपी के अधूरे बचे, आखिरी बड़े मुद्दे की चर्चा करने लगे हैं। जी हां, शायद आपने समझ लिया हो- कॉमन सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता। सोशल मीडिया से लेकर चाय पे चर्चाओं में भी यही जिक्र हो रहा है। दो दिन पहले 14 जून को विधि आयोग ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण पहल की। 22वें विधि आयोग ने एक बार फिर समान नागरिक संहिता पर जनता और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के विचार मांगे हैं। इस मुद्दे पर रुचि रखने वाले लोग और संगठन 30 दिन के भीतर विधि आयोग से अपने विचार साझा कर सकते हैं।

आयोग ने कहा है कि वह जरूरत पड़ने पर चर्चा के लिए किसी व्यक्ति या संगठन को बुला सकता है। जैसे ही UCC की चर्चा शुरू हुई, विरोध होने लगा। विश्व हिंदू परिषद ने स्वागत किया तो सपा सांसद डॉ. शफीक उर रहमान बर्क ने कह दिया कि इससे देश में केवल नफरत फैलेगी। बर्क ने कहा, ‘लोकसभा चुनाव करीब हैं। कुछ राज्यों में भी चुनाव होने वाले हैं। इन लोगों (BJP) के पास कोई मुद्दा नहीं है… उन्होंने देश को केवल नफरत की आग में झोंका है।’ ऐसे में आपके मन में भी कई तरह के सवाल उठ रहे होंगे। आइए ऐसे 7 सवालों के जवाब ढूंढते हैं।

    समान नागरिक संहिता क्या है?

समान नागरिक संहिता यानी Uniform Civil Code का मतलब देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून बनाना है। यह बिना किसी धर्म, जाति या लैंगिक भेदभाव के लागू होगा। सरल शब्दों में समझिए तो सभी धर्मों के लोगों का कानून एक होगा। अभी हिंदू, ईसाई, पारसी, मुस्लिम जैसे अलग-अलग धार्मिक समुदाय विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के मामलों में अपने-अपने पर्सनल लॉ का पालन करते हैं। हालांकि आपराधिक कानून एक समान हैं।

पर्सनल लॉ क्या होते हैं?

पर्सनल लॉ अंग्रेजों के समय धर्मों की प्रथाओं और धार्मिक ग्रंथों को ध्यान में रखकर अलग-अलग समय पर बनाए गए थे। ब्रिटिश हुकूमत के शुरुआती दशकों में ही हिंदू और मुस्लिम पर्सनल लॉ तैयार हो गए थे। हालांकि इसमें तब्दीली होती गई।

समान नागरिक संहिता से क्या बदल जाएगा?

UCC लागू होने से मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों और हिंदुओं (बौद्धों, सिखों और जैनियों समेत) के संदर्भ में सभी वर्तमान कानून निरस्त हो जाएंगे। इससे देश में एकरूपता आने की बात कही जा रही है। समान नागरिक संहिता लागू होने से शादी, तलाक, जमीन-संपत्ति आदि के मामलों में सभी धर्मों के लोगों के लिए एक ही कानून लागू होगा। धर्म या पर्सनल लॉ के आधार पर भेदभाव समाप्त होगा।

समान नागरिक संहिता की फिर से चर्चा क्यों हो रही है?

हाल में विधि आयोग ने इस पर नए सिरे से विचार करने का निर्णय किया। इसके लिए आम लोगों और धार्मिक संगठनों समेत विभिन्न हितधारकों से विचार मांगे गए हैं।

समान नागरिक संहिता के समर्थन में कौन है?

यह मुख्य रूप से भाजपा के चुनाव घोषणापत्रों में शामिल रहा है। उत्तराखंड जैसे राज्य अपनी समान नागरिक संहिता तैयार करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। कर्नाटक चुनाव के दौरान भाजपा ने राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया था। JDU ने कहा है कि सभी धर्मों और समुदायों के सदस्यों को विश्वास में लिया जाना चाहिए। गोवा में पहले से यह लागू है।

समान नागरिक संहिता का विरोध कौन कर रहा?

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, सपा सांसद डॉ. शफीक उर रहमान बर्क जैसे कई मुस्लिम नेता समान नागरिक संहिता का विरोध कर रहे हैं। इनका कहना है कि सेक्युलर देश है इसलिए पर्सनल लॉ में दखल नहीं देना चाहिए। ये इस मुद्दे को सिर्फ 'भाजपा का एजेंडा' बता रहे हैं। UCC लागू होने पर कई शादियों की इजाजत देने वाला पर्सनल लॉ बेअसर हो जाएगा।

समान नागरिक संहिता पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है?

40 साल पहले से ही समान नागरिक संहिता की बात सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हो रही है। 1985 में शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संसद को सामान नागरिक संहिता पर आगे बढ़ना चाहिए। 2015 में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जरूरत को रेखांकित किया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *