भाजपा का क्या है ‘प्लान 200’, जिससे परेशान थे नीतीश कुमार, मान रहे थे जेडीयू के लिए खतरा
नई दिल्ली
नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़कर करीब 5 साल बाद एक बार फिर से पलटी मारी है। अब वह उसी आरजेडी के साथ सरकार बनाने जा रहे हैं, जिसकी सत्ता के दौर को वह कभी जंगलराज बताते नहीं थकते थे। लेकिन अब नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ उसी आरजेडी के लिए छोड़ा है तो उसकी कुछ वजहें हैं। इनमें से ही एक वजह भाजपा का 'प्लान 200' भी है। दरअसल भाजपा ने पटना में 30 और 31 जुलाई को दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित कियाथा। इसमें पार्टी ने 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए प्रवास कार्यक्रम का ऐलान किया था। इसके तहत पार्टी के नेता 200 सीटों पर प्रवास करेंगे और वहां भाजपा को मजबूत करने के प्रयास होंगे।
बिहार भाजपा के सह-प्रभारी हरीश द्विवेदी ने भी इस प्लान के बारे में बताया था। उनका कहना था कि पार्टी के नेता भविष्य में प्रदेश की सभी 243 सीटों पर प्रवास कार्यक्रम करेंगे। भाजपा की इस तैयारी को जेडीयू के लिए एक चेतावनी के तौर पर भी देखा गया था। दरअसल भाजपा बीते कुछ सालों में बिहार में जिस तरह से मजबूत हुई है, उसमें वह जेडीयू के मुकाबले जूनियर पार्टनर से कहीं आगे निकलकर सीनियर पार्टनर हो गई है। सामाजिक समीकरणों के लिहाज से भी भाजपा मजबूत स्थिति में है। ऐसे में नीतीश कुमार के लिए यह चिंता की बात थी कि कहीं उनका हाल उद्धव ठाकरे जैसा न हो जाए।
पिछले चुनाव से ही बढ़ गई थी नीतीश कुमार की टेंशन
जेडीयू के लिए चिंता तो 2020 के विधानसभा चुनाव में ही बढ़ गई थीं। तब भाजपा ने 121 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 74 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं जेडीयू ने 122 सीटों पर जीत के बाद भी सिर्फ 43 पर विजय पाई थी। इस तरह भाजपा ने जेडीयू के मुकाबले बड़ी बढ़त बनाई थी और उसका असर भी सरकार गठन में दिखाई दिया। भाजपा ने सुशील मोदी को डिप्टी सीएम के पद से ही हटा दिया जो नीतीश कुमार के करीबी माने जाते थे। इसके अलावा जिन नेताओं को चुना गया, वे अमित शाह के करीबी कहे जाते हैं और अकसर नीतीश कुमार के खिलाफ बयान देते रहे हैं।
अगले चुनाव में अप्रासंगिक होने का भी था डर
ऐसे में नीतीश कुमार को शायद यह खतरा सता रहा था कि भाजपा यदि 200 सीटों पर तैयारी करेगी तो चुनाव में वह ज्यादा सीटों की मांग करेगी। यही नहीं यदि उसकी सीटों का आंकड़ा बढ़ता है तो फिर वह जेडीयू को अप्रासंगिक भी बना सकती है। कहा जा रहा है कि नीतीश के इसी डर ने उन्हें भाजपा से अलग होने के लिए मजबूर किया है ताकि वह अपनी ताकत को बनाए रख सकें। हालांकि नीतीश के लिए आरजेडी के साथ भी संतुलन बनाना आसान नहीं होगा।
जेपी नड्डा के बयान ने भी बढ़ा दिया था तनाव
पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय मोर्चों की संयुक्त बैठक में जेपी नड्डा का एक बयान भी भाजपा-जदयू का गठबंधन बिखर जाने के लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है। जेपी नड्डा ने कहा था कि सब दल खत्म हो जाएंगे, सिर्फ बीजेपी बच जाएगी। जदयू ने नड्डा के इस बयान को गंभीरता से लिया। उससे पहले जब वीआईपी के विधायकों को बीजेपी में मिला लिया गया था। उस समय से ही दोनों दलों के बीच दूरियां बढ़ने लगी थी।