पीएम मोदी के एक फैसले ने यूरोप को टूटने से बचाया, नहीं होता तो सच हो जाता पुतिन का सपना
मॉस्को
यूक्रेन की जंग फरवरी 2022 से जारी है। इस जंग के बाद दुनिया को लगने लगा था कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जो एक सपना देखा था, वह शायद सच हो जाएगा। यूक्रेन युद्ध की वजह से यूरोप एक बड़े ऊर्जा संकट से गुजरा। गैस से लेकर तेल, सबकुछ महंगा हो गया और हर देश में महंगाई आसमान पर पहुंच गई। यूरोप को इस बात से भी खासी आपत्ति थी कि भारत को रूस से सस्ता तेल क्यों मिल रहा है। जापान से निकलने वाले निक्केई एशिया की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि न तो यूरोप और न ही जी-7 देश इस बात को मानना चाहते हैं कि उनकी अर्थव्यवस्था में भारत का क्या योगदान है। अखबार के मुताबिक इस सच को मान लेना चाहिए कि कहीं न कहीं भारत की वजह से उनकी अर्थव्यवस्थाएं बची रहीं और पुतिन का उन्हें बर्बाद करने का सपना टूट गया।
यूरोप के प्रतिबंध हुए बेकार
यूरोप के कई देशों को इस बात की चिंता हमेशा रही है कि उसने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए थे, वो बिल्कुल ही निष्प्रभावी रहे हैं। इन प्रतिबंधों के बाद भी भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखे हैं। यूक्रेन जंग को लेकर यूरोप और भारत के बीच मतभेद सबके सामने हैं। यूरोपियन यूनियन (ईयू) के विदेश नीति के चीफ जोसेफ बोरेल ने कुछ दिनों पहले कहा था कि संगठन को इस बात पर कड़ा रुख अपनाना होगा कि भारत, रूस से आने वाले तेल को रिफाइन करके उन्हें बेच रहा है। बोरेल को इस बात पर भले ही परेशानी हो लेकिन निक्केई की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी रिफाइन्ड ऑयल की वजह से ईयू को काफी मदद मिली है।
यूरोप को तेल बेचता भारत
यूरोप की अर्थव्यवस्थाएं इस समय काफी दबाव में हैं। युद्ध की वजह से उनके पास नियमों को सख्त करने का कोई विकल्प नहीं बचा है। विशेषज्ञों की मानें तो भारत की मदद से यूरोप को ताकत मिल रही है। रूस से आने वाला तेल आज भी यूरोप की कारों को शक्ति दे रहा है। ईयू ने दिसंबर 2022 में रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन रिफाइन्ड ऑयल पर यह प्रतिबंध दो महीने बाद लागू हुआ। इस नियम के बाद भी भारत को सस्ते रूसी कच्चे तेल को बेचने से नहीं रोका जा सकता था। भारत, कच्चे तेल को डीजल में बदल देता है और इसे एक गुणवत्ता स्तर पर वापस यूरोप भेज देता। कैप्लर एनालिटिक फर्म के मुताबिक भारत अब यूरोप का सबसे बड़ा तेल सप्लायर बनने के रास्ते पर है।
भारत का बड़ा रोल
निक्केई एशिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि जी7 देश और ईयू दोनों को मालूम था कि भारत जो कुछ कर रहा है, वह सही नहीं है। लेकिन फिर भी उसने ज्यादा सवाल नहीं खड़े किए। ईयू और जी-7 देशों ने भारत को वह करने दिया, जो उसके लिए फायदेमंद था। यूक्रेन पर हमले की वजह से तेल की कीमतों के 200 डॉलर प्रति बैरल तक जाने की आशंका जताई थी। मगर 120 डॉलर पर आने के बाद कीमतों में करीब 70 डॉलर तक की गिरावट हुई। जापान ऑर्गनाइजेशन फॉर मेटल्स एंड एनर्जी सिक्योरिटी के रिसर्च के मुखिया मिका टेकहारा ने कहा, 'ऐसा लगता है कि पिछले साल या तो इस सिद्धांत को परखा गया कि क्या ग्लोबल ऑयल मार्केट पर भी गंभीर भू-राजनीतिक उथल-पुथल का असर पड़ता है।' उनकी मानें तो भारत के बिना यह टेस्ट सफल नहीं हो सकता था।
संकट को रोकने में कारगर भारत
वह मानते कि जी 7 और ईयू भारत के योगदान और उसके रोल को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं कर सकते हैं। मगर इस बात को भी खारिज नहीं किया जा सकता है कि भारत की वजह से यूरोप और दूसरे देशों में वैश्विक आर्थिक संकट पर लगाम लग सकी। भारत ने इस संकट को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका कहना था कि भारत ने कभी इस रोल के लिए मांग नहीं की मगर रणनीतिक स्वायत्ता की सोच के चलते जो फैसले पीएम मोदी ने लिए उसका प्रभाव अब नजर आता है।