विपक्षी एकता का अरविंद केजरीवाल ही करेंगे बंटाधार! विपक्ष के दूसरे दलों से अलग राग अलाप रही है AAP
पटना
पटना में 23 जून को हुई 15 विपक्षी दलों की बैठक में आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता अरविंद केजरीवाल का अंदाज औरों से बिल्कुल अलहदा था। विपक्षी एकता के मुद्दे पर पहले भी उनकी पार्टी अलग ही रुख अपनाए हुई थी। नीतीश कुमार के सामने विपक्षी एकता के लिए हामी भरने के बावजूद अरविंद केजरीवाल की पार्टी लोकसभा का चुनाव कभी अकेले लड़ने की बात कह रही थी तो कभी राजस्थान और मध्य प्रदेश में अपने उम्मीदवार न उतारने के लिए कांग्रेस के सामने दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस से मुक्ति की शर्त रख रही थी। दिल्ली सरकार के अफसरों पर जब अध्यादेश के जरिए केंद्र सरकार ने उनके अधिकार छीन लिए तो केजरीवाल ने अध्यादेश पर विपक्ष से समर्थन की शर्त रख दी। पटना में हुई विपक्षी बैठक में वे शामिल तो हुए, लेकिन भाजपा के खिलाफ एकजुटता के असल एजेंडे से अलग उन्होंने अपना एजेंडा थोपने की कोशिश की। वे बार-बार एक ही रट लगाए हुए थे कि कांग्रेस उन्हें केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ समर्थन का पहले वादा करे, फिर विपक्षी एकता की बात आगे बढ़नी चाहिए। जब उनकी बातों का किसी ने नोटिस नहीं लिया तो वे बिदक कर एयरपोर्ट निकल गए। साझा प्रेस कांफ्रेंस में उपस्थित रहने की जरूरत भी उन्होंने नहीं समझी।
अब आप कामन सिविल कोड पर भाजपा के साथ
समान नागरिक कानून (Common Civil Code) पर आम आदमी पार्टी ने सैद्धांतिक तौर पर भाजपा का साथ देने का वादा किया है। उनका यह स्टैंड विपक्षी एकता के उस प्रस्ताव के खिलाफ है, जिसमें तय हुआ था कि भाजपा के किसी भी राजनीतिक एजेंडे का विपक्ष समेकित रूप से विरोध करेगा। ठीक वैसे ही, जैसा संसद के नये भवन के उद्घाटन समारोह का विपक्ष ने बायकाट किया था। आम आदमी पार्टी के महासचिव और सांसद संदीप पाठक ने अब स्पष्ट कर दिया है कि कामन सिविल कोड संविधान सम्मत है। संविधान का अनुच्छेद 44 भी कहता है कि देश में कामन सिविल कोड होना चाहिए। इसलिए आम आदमी पार्टी सैद्धांतिक रूप से इसके पक्ष में है। हां, इस पर आम सहमति बननी चाहिए। यह सभी जानते हैं कि आम सहमति तो बन ही नहीं सकती, पर अपने इस बयान से उन्होंने विपक्षी दलों को जरूर चौंका दिया है। संदीप पाठक ने ही विपक्षी एकता की चल रही बातचीत के बीच गोवा में बयान दिया था कि आम आदमी पार्टी लोकसभा का चुनाव में किसी भी दल या गठबंधन के साथ नहीं लड़ेगी। संदीप पाठक पार्टी के सीनियर पदधारी हैं, इसलिए उनके बयान को खारिज भी नहीं किया जा सकता।
AAP की कांग्रेस के सामने दिल्ली-पंजाब की शर्त
दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पहले विपक्षी एकता में शामिल होने के लिए केंद्र के अध्यादेश का विरोध करने की शर्त रखी थी। विपक्षी बैठक की पूर्व संध्या पर भी उन्होंने पत्र जारी कर अध्यादेश के विरोध की जरूरत बताई और बैठक की चर्चा इस पर फोकस करने की अपील की। इन दोनों के बीच की अवधि में उन्होंने एक और शर्त जोड़ दी। उन्होंने कहा कि दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस आम आदमी पार्टी की मदद करे तो वे मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत अन्य राज्यों में अपने उम्मीदवार नहीं उतारेंगे, जहां इस साल विधानसभा के चुनाव होने हैं।
अब लगने लगा है कि एकता से अलग रहेगी AAP
अरविंद केजरीवाल अपने दम पर भाजपा का राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प बनना चाहते हैं। यह अलग बात है कि उनके सपने का साकार होना आसान नहीं है। इसलिए कि हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में जीत के बाद अब लगने लगा है कि कांग्रेस पुनर्जीवित हो रही है। कांग्रेस भी अब झुकने के मूड में नहीं है। सच भी है कि भाजपा के बाद कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है, जिसकी चार राज्यों में सरकारें हैं। शायद यही वजह रही कि सिर्फ कांग्रेस के सीनियर लीडर्स के न आने के कारण 12 जून की पटना में होने वाली बैठक स्थगित कर दी गई थी। जब मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी ने हरी झंडी दिखाई, तब जाकर 23 जून को बैठक बुलाई गई। बैठक में राहुल गांधी को सभी विपक्षी दलों ने तरजीह दी, लेकिन केजरीवाल ही अलग अंदाज में दिखे। समूह से अलग आचरण किसी को हास्यास्पद बना देता है। केजरीवाल के साथ भी ऐसा ही हुआ। इससे बिदक कर वे बैठक खत्म होते ही सीधे एयरपोर्ट चले गए।
केजरीवाल और ममता को अपना स्वार्थ दिख रहा
केजरीवाल की तरह ही बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी पल-पल रंग बदलती रही हैं। यह तो नीतीश कुमार का कमाल कहिए कि उन्होंने कांग्रेस के साथ बैठने के लिए ममता बनर्जी को राजी कर लिया। हालांकि ममता के तेवर में कोई फर्क नहीं आया। वे बैठक में भी वही बातें दोहराती रहीं, जो पहले से कहती आ रही हैं। मसलन उनकी पार्टी कांग्रेस और वाम दलों को दूसरे राज्यों में मदद तो करेगी, लेकिन बंगाल में कोई दुश्मनी का भाव रखे, यह ठीक नहीं होगा। बैठक से लौटने के बाद उन्होंने बयान दिया कि उनकी पार्टी के खिलाफ बीजेपी के साथ कांग्रेस और वाम दल मिल गए हैं। विपक्षी एकता बैठक में दोस्ती की बात और बंगाल में दुश्मनी का भाव ये पार्टियां अपना रही हैं। ऐसे में विपक्षी एकता का क्या मतलब रह जाता है। तेलंगाना के सीएम केसीआर ने भी विपक्षी एकता से कन्नी काट ली है। लेकिन जिस तरह के हाव-भाव आम आदमी पार्टी के दिख रहे हैं, उससे तो यही संकेत मिलता है कि शिमला में अगले महीने प्रस्तावित विपक्षी एकता बैठक से आप अलग रहे तो कोई आश्चर्य नहीं।