सुशील मोदी संभाल सकते थे बिहार में BJP की डूबती नैया, ऐसे भारी पड़ी उनकी गैरमौजूदगी
पटना
'अगर सुशील मोदी वहां होते, तो मामला अलग होता' यह कहना बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का था, जिन्होंने हाल ही में एक फैसले से भारतीय जनता पार्टी और बिहार की राजनीति बदल दी। कहा जा रहा है कि मोदी के बिहार छोड़ते ही राज्य में सियासी हालात तेजी से बदल गए। दरअसल, उनका कद बिहार की राजनीति में काफी बड़ा माना जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को बड़े मामलों में घेरने से लेकर महागठबंधन को घुटनों पर लाने में मोदी की बड़ी भूमिका रही है। अब विस्तार से समझते हैं कि आखिर उनकी गैरमौजूदगी का कैसे असर भाजपा पर पड़ा है। भाजपा की तरफ से राज्यसभा भेजे गए सुशील मोदी को रणनीति, क्षमता और राजनीतिक सूझबूझ के लिए जाना जाता है। वह तथ्य जुटाकर विरोधियों पर हमला करते हैं। विरोधी भी उनकी इन क्षमताओं से परिचित हैं और राज्य में उन्हें हाशिए पर ले जाने की कई कोशिशें भी हुईं, लेकिन उनके कद पर इसका खास असर नहीं पड़ा। इसका उदाहरण लालू पर बेनामी संपत्ति को लेकर हमलों का सिलसिला भी है।
लालू प्रसाद के कारनामे जनता के सामने लाए
4 अप्रैल 2017 को मोदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और सबूतों के साथ मिट्टी घोटाले के मुद्दे को उठाया। खास बात है कि तब ही राज्य में मॉल की जमीन को अवैध तरीके से पटना जू को बेचने का मामला सामने आया था। इसे लेकर जांच शुरू हुई और कुछ ही समय में मोदी और सबूतों के सामने तैयार हो गए। इसके बाद उन्होंने 16 मई 2017 को फिर यादव परिवार को घेरा और कई अवैध कंपनियों और संपत्तियों का खुलासा किया। हालांकि, यहां भी मोदी रुके नहीं वह लगातार लालू पर सवाल उठाते रहे और तेज प्रताप यादव से लेकर राबड़ी देवी तक से जुड़ी संपत्तियों का खुलासा किया।
महागठबंधन को अकेले ही तबाह कर दिया
जब सुशील मोदी ने लालू के खिलाफ अपने अभियान की शुरू की थी, तब नीतीश महागठबंधन का ही हिस्सा थे। इसके बाद जब उन्होंने महागठबंधन को खत्म किया, तो कुमार भाजपा के साथ आए गए। इसके बाद कुमार ने लोकसभा में भी अच्छ प्रदर्शन किया और विधानसभा चुनाव भी भाजपा के साथ ही लड़ा। उस दौरान मोदी विरोधियों की तरफ से भी हमलों का सामना कर रहे थे। राज्य में उन्हें दूर रखने की कोशिशें जारी थीं।
नीतीश भी ध्यान से सुनते थे
कहा जा रहा है कि नीतीश भी मोदी को बातों को सुनते थे। जब मोदी नाराज होते थे, तो कुमार ही जदयू नेताओं को काबू में रखते थे। माना जाता है कि उनमें बिहार भाजपा के संभालने की क्षमता थी।