वृंदावन मोक्ष पाने पहुंचे लोगों के लिए बढ़ाए हाथ, लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करती हैं ये महिला
लखनऊ
जीवन के अंतिम पड़ाव पर और बिना किसी अपने के तीर्थनगरी वृंदावन पहुंचे हर व्यक्ति के लिए वहां कोई अपना भी है। एक अटल इरादों वाली महिला इन निराश्रितों को मोक्ष के मार्ग पर ले जाती हैं। उनके अंतिम और 16वें संस्कार को पूरा करने का बीड़ा उन्होंने पिछले 11 वर्षों से अपने हाथ में उठाया हुआ है। अब तक करीब 350 शवों का अंतिम संस्कार करा चुकीं डॉ. लक्ष्मी गौतम, आयरन लेडी के नाम से जानी जाती हैं।
जिस भारतीय समाज में श्मशान घाट पर महिलाओं का जाना वर्जित माना जाता हो, उस समाज में एक महिला द्वारा लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किए जाने की बात जो कोई सुनता है, तो उसे सहसा विश्वास नहीं होता। लेकिन कनकधारा फाउंडेशन की अध्यक्ष समाज सेविका डॉ. लक्ष्मी गौतम अनवरत ऐसा पुण्य कार्य कर समाज के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं।
वो भी तब जबकि वे आईओपी कॉलेज में इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में भी कर्त्तव्य का निर्वहन कर रही हैं। आज नगर में किसी लावारिस या निर्धन व्यक्ति के शव के अंतिम संस्कार की बात आती है तो लोग उन्हीं से संपर्क करते हैं। कभी-कभी तो स्थानीय पुलिस प्रशासन भी ये कार्य उन्हीं के जिम्मे कर देती है।
सर्वे का सच सुनकर शुरू किया ये कार्य
नगर के गौतम पाड़ा इलाके में तीर्थ पुरोहित ब्राह्मण परिवार में जन्मी डॉ. लक्ष्मी गौतम बताती हैं कि वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने वृंदावन में रहने वाली निराश्रित महिलाओं का सर्वे कराना तय किया। उस सर्वे में यह सच सामने आया कि निराश्रित महिलाओं का अंतिम संस्कार विधि विधान से नहीं किया जाता है। यह जानने के बाद से ही वे वृंदावन में मोक्ष की कामना लेकर आने वाले निराश्रित लोगों के शवों का अंतिम संस्कार करने में जुट गईं।
शुरुआती दौर में उन्हें सहना पड़ा विरोध
शुरुआती दिनों में एक महिला के श्मशान में ना जाने की बात को आधार बनाकर परिवार के साथ-साथ सामाजिक लोगों ने भी उनको इसके लिए सहमति नहीं दी। फिर भी अटल इरादों वाली निडर डॉ. लक्ष्मी गौतम की जिद के आगे उनको झुकना पड़ा। धीरे-धीरे उनके पुण्य कार्य को देख लोगों ने उनका उपनाम आयरन लेडी रख दिया।
उनका कहना है कि सुबह से लेकर रात तक जब भी उनके पास लावारिस शव के अंतिम संस्कार की सूचना आती है तो वह अपने सारे निजी काम छोड़कर सबसे पहले अंतिम संस्कार के लिए पहुंचती है। वह अब तक 350 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार अपने हाथों से कर चुकी हैं और इस कार्य को वह भगवान की आराधना- उपासना मानकर करती है।