November 28, 2024

सिया ब्याह कर लौटे भगवान राम ने यहां किया था रात्रि विश्राम, जानें मान्यता

0

कुशीनगर

जनकपुर में देवी सीता से विवाह के बाद भगवान श्रीराम बारात लेकर जब लौटे तो रास्ते में बांसी नदी के तट पर रात्रि विश्राम किया। वहीं शिवलिंग की स्थापना की। उसके बाद अयोध्या के लिए प्रस्थान किया। नदी के उस तट का नाम रामघाट पड़ा। आसपास बसे तटीय गांवों के नाम भी इसका साक्ष्य देते हैं। कहते हैं कि यह स्थान जनकपुर और अयोध्या के बिल्कुल मध्य में है। यूपी-बिहार की सीमा पर कुशीनगर जिले में स्थित बांसी नदी के बारे में मान्यता है कि यहां स्नान से काशी में सौ डुबकी लगाने के बराबर पुण्य मिलता है। कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले मेले में बिहार और नेपाल तक के श्रद्धालुओं का यहां रेला उमड़ता है।

बांसी नदी के तट पर स्थित राम जानकी मंदिर के महंत व कुशीनगर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष महंत गोपाल दास नदी तट पर बसे गांवों और उनके नामकरण की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हैं। गंभीरिया बुजुर्ग का टोला है रामघाट। बगल में देवीपुर व जानकीनगर, त्रिलोकपुर तथा सिंघापट्टी गांव हैं। जिस जगह भगवान राम ने रात्रि विश्राम किया, उसका नाम रामघाट पड़ा। जहां तीनों लोकों के देवता बाराती ठहरे, उसे आज त्रिलोकपुर कहते हैं। शादी-विवाह में बजने वाले प्राचीन वाद्ययंत्र सिंगहा की मंडली जिस जगह रुकी, उसका नाम सिंघापट्टी पड़ा। और जहां जानकी जी का डोला रुका और देविया ठहरीं, वहां क्रमश: जानकीनगर और देवीपुर आबाद हैं। ये सभी गांव बांसी नदी के तट पर करीब पांच किलोमीटर के दायरे में हैं।  

महंत गोपाल दास बताते हैं कि वाल्मीकि रामायण प्राचीन में स्पष्ट उल्लेख है कि जनकपुर से अयोध्या लौटते समय जहां भगवान राम की बारात रुकी थी, वह जगह जनकपुर व अयोध्या के बिल्कुल मध्य में हैं। उनका दावा है कि कोई इंचटेप लेकर नाप ले, बांसी का तट जनकपुर-अयोध्या के बीचो बीच ही पड़ेगा।अपने दावे के समर्थन में उनका यह भी तर्क है कि बहराइच स्टेट के राजा ने मुगलकाल के बाद अपने शासन के दौरान एक किताब लिखी थी 'नाग कौशलेतर'। 90 के दशक में देश के तमाम समाचार पत्रों ने इस किताब के हवाले से लिखा था कि कुशीनगर का बांसी तट ही वह स्थान है, जहां भगवान राम जनकपुर से बारात लेकर लौटते समय रुके थे। नदी के तट पर शिवलिंग की स्थापना कर पूजा की थी। यही तर्क आरएसएस से जुड़े पडरौना शहर के मशहूर चिकित्सक डॉ. विपिन बिहारी चौबे का भी है। गंभीरिया के प्रधान बबलू कुशवाहा, शिव मंदिर के महंत लक्ष्मण साहनी व हनुमान इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य शैलेन्द्र दत्त शुक्ल समेत अन्य कई लोग ऐसा ही कहते हैं।

जनश्रुतियां यूं ही नहीं होतीं
इतिहास व साहित्य के जानकार बालेंदु पांडेय कहते हैं कि उन्होंने रामायण और मानस के कई ग्रंथ पढ़े। उनमें राम विवाह का जिक्र मिला मगर वह किस रास्ते होकर जनकपुर से अयोध्या पहुंचे, इसका उल्लेख नहीं मिला। हां, यह जरूर मिला कि बारात की एक ओर की यात्रा चार दिन में पूरी हुई थी। लेकिन इसके जीवंत प्रमाण मौजूद हैं और यह हमारे पुरखों के काल से जनश्रुति के रूप में विद्यमान है। और जनश्रुतियां यूं ही नहीं होतीं, कुछ तो सच्चाई इनमें जरूर होती है।     

बिहार से नेपाल तक के आते हैं श्रद्धालु
पवित्र बांसी नदी में कार्तिक पूर्णिमा के स्नान दान करने का काफी महत्व है। सुबह स्नान के बाद श्रद्धालु भगवान श्रीराम और शिव की आराधना करते हैं। घने जंगल में स्थापित पिंडी की स्थानीय लोगों ने पूजा-अर्चना शुरू की थी। बाद में वहां मंदिर बन गया। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां मेला लगता है। इस अवसर पर आसपास के जिलों के अलावा बिहार और नेपाल के श्रद्धालुओं का रेला उमड़ता है।

पर्यटन विकास के प्रयास
पडरौना सदर के विधायक मनीष जायसवाल मंटू का कहना है कि पौराणिक बांसी नदी के अस्तित्व से हम सभी की पहचान है। उन्होंने विधानसभा में नदी के जीर्णोद्धार और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग की थी। इस संदर्भ में मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की। उन्होंने आश्वासन भी दिया। इसका असर भी दिखने लगा है। कुछ माह पहले नदी की वृहद साफ-सफाई की गई है। बाकी प्रयास जारी हैं।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *