September 29, 2024

फतवा, जानलेवा हमले, किताब पर प्रतिबंध… कब-कब भड़का सलमान रुश्दी के उपन्यास पर आक्रोश

0

नई दिल्ली
बुकर पुरस्कार विजेता उपन्यासकार सलमान रुश्दी पर हुए जानलेवा हमले ने दुनिया को झकझोर कर रख दिया है। खासतौर पर उन लोगों को जो वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हिमायत करते हैं। भारत में जन्मे लेखक सलमान रुश्दी को 24 वर्षीय एक शख्स ने गर्दन और पेट में चाकू मार दिया। यह घटना उस वक्त की है जब वह पश्चिमी न्यूयॉर्क में चौटाउक्वा इंस्टीट्यूशन में व्याख्यान देने वाले थे। उधर, हमलावर का मकसद अभी स्पष्ट रूप से सामने नहीं आया है। रुश्दी को उनके उपन्यास "द सैटेनिक वर्सेज" के प्रकाशन के बाद से मुस्लिम देशों विशेष रूप से ईरान से मौत की धमकी मिल रही है।

सलमान रुश्दी अभी भी वेंटिलेटर पर हैं और डॉक्टर उन्हें बचाने के पूरे प्रयास कर रहे हैं। उनके उपन्यास के खिलाफ कई मुसलमों ने आवाज उठाई थी। इस पुस्तक के जरिए उन पर ईशनिंदा करने का आरोप लगाया। इसके बाद ईरान ने उन पर प्रतिबंध लगाया। यहां तक कि ईरान के तत्कालीन सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने 1989 में मौत का फरमान या फतवा जारी किया था। खुमैनी की मृत्यु उसी वर्ष हो गई थी। रुश्दी को मारने वाले को अब तक 30 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक का इनाम देने की पेशकश की गई है।

रुश्दी पर इनाम
खुमैनी द्वारा सभी मुसलमानों को रुश्दी को मारने के लिए बुलाए जाने के आठ साल बाद राज्य से जुड़े ईरानी धार्मिक फाउंडेशन ने इनाम को बढ़ाकर 2.5 मिलियन डॉलर कर दिया है। इन वर्षों में, इनाम को बढ़ाकर 3.9 मिलियन डॉलर किया जा चुका है। जिसमें एक ईरानी मीडिया आउटलेट भी शामिल है। 1998 में, एक कट्टर ईरानी छात्र समूह ने रुश्दी के सिर के लिए एक अरब रियाल (तब $333,000) का इनाम घोषित किया था।

फतवे के बाद हमले
1991 में, उपन्यास के एक जापानी अनुवादक की टोक्यो में चाकू मारकर हत्या कर दी गई थी। एक इतालवी अनुवादक उसी वर्ष अपने मिलान फ्लैट में एक व्यक्ति द्वारा किए गए चाकू के हमले से बच गया, जिसने कहा कि वह ईरानी था। 1993 में, पुस्तक के नॉर्वेजियन प्रकाशक को तीन बार गोली मारी गई, लेकिन वह बच गया। किताब को लेकर कई हमलों में कम से कम 45 लोग मारे जा चुके हैं।

सालों छिपे रहे रुश्दी
मौत की धमकियां मिलने के बाद रुश्दी चौबीसों घंटे पुलिस सुरक्षा के साथ छिप गए। फतवा जारी होने के बाद से सुरक्षित घरों में रहना शुरू करने के छह साल बाद उनकी पहली पूर्व-घोषित सार्वजनिक उपस्थिति आई।

भारत में भी विरोध
फरवरी 1989 में, मुंबई में मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने लेखक रुश्दी के विरोध में ब्रिटिश उच्चायोग की ओर मार्च किया। पुलिस ने भीड़ पर गोलियां चलाईं जिसमें 12 की मौत हो गई। इस घटना के लगभग 10 साल बाद, भारत सरकार ने उपन्यासकार को दौरा करने के लिए वीजा प्रदान किया, जिसके बाद मुस्लिम समुदाय ने विरोध शुरू कर दिया। 2012 में, उन्हें कुछ मुस्लिम समूहों के विरोध के कारण जयपुर में एक प्रमुख साहित्य उत्सव में भाग लेने की अपनी योजना रद्द करनी पड़ी।

भारत में भी बैन हुई पुस्तक
सैटेनिक वर्सेज को रिलीज होने के महीनों बाद भारत समेत दर्जनों देशों में बैन कर दिया गया था। पूर्व केंद्रीय मंत्री और राजनयिक नटवर सिंह ने किताब पर प्रतिबंध लगाने के राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार के फैसले का बचाव करते हुए पीटीआई से कहा कि यह "विशुद्ध रूप से कानून और व्यवस्था के कारणों" के लिए किया गया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *