मणिपुर हिंसा SC की कमेटी ने बताई 3 मुख्य समस्याएं, दिए सुझाव
नईदिल्ली
नॉर्थ ईस्ट राज्य मणिपुर में हिंसा फिलहाल रुक गई है. बावजूद इसके तीन महीने बाद भी वहां हालात सामान्य नहीं हो पा रहे. इस बीच जस्टिस गीता मित्तल कमेटी ने मणिपुर में हालात सुधारने के कुछ सुझाव दिए हैं. बता दें कि ये कमेटी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनाई गई थी.
इस कमेटी का काम मणिपुर में पुनर्वास के उपायों को तलाशना है. इस कमेटी ने सुझावों के साथ-साथ तीन बड़ी समस्याओं का भी जिक्र किया है.
कमेटी ने हिंसा की वजह से जल गई बस्तियों को बड़ी समस्या बताया है. फिलहाल यह समझ नहीं आ रहा कि इन इलाकों की पहचान कैसे करें और फिर कैसे इनको हटाएं. इसका उपाय सुझाते हुए कहा गया है कि क्षतिग्रस्त और झुलसे हुए गांवों की तत्काल सेटेलाइट इमेजरी से पहचान की जा सकती है.
कमेटी ने कहा है कि वर्तमान में राज्य की GPS मैपिंग और तस्वीरें आपराधिक जांच के उद्देश्यों के साथ-साथ नष्ट हुए गांवों और संपत्तियों की प्रकृति और स्थान दोनों के लिए ली जानी चाहिए. क्योंकि नुकसान की प्रभावी भरपाई के सिलसिले में ठीक मूल्यांकन के लिए यह जरूरी है.
अगली समस्या इंफाल के शवगृहों में रखे गए शवों से जुड़ी है. समिति ने पाया कि राहत शिविरों में रहने वाले लोगों के लिए वहां तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि अभी माहौल ठीक नहीं है.
इसके उपाय के तौर पर समिति का सुझाव है कि अधिकारियों को शवों की दूरस्थ पहचान के लिए उपाय तैयार करने की जरूरत है. यानी शवों की तस्वीरों के पोस्टर शिविरों तक पहुंचाए जाएं. या फिर इलेक्ट्रोनिक माध्यम से लोगों को शवों की पहचान कराई जाए.
तीसरी समस्या राहत शिविरों में रह रहे युवाओं की है. वहां रह रहे कॉलेज/यूनिवर्सिटी के छात्र क्लास नहीं ले पा रहे.
इसके लिए सुझाए गए उपाय हैं कि शिविरों में रह रहे विस्थापित छात्रों को अन्य राज्यों के संस्थानों में भी इसी तरह समायोजित किया जा सकता है. इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से समुचित सहायता मिलनी जरूरी है.
कमेटी ने और क्या सुझाव दिए?
समिति ने सिफारिश की है कि इस सिलसिले में रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (RIMS) के सुझाव पर अमल किया जाए. RIMS का सुझाव है कि ऐसे विस्थापित छात्रों को अन्य राज्यों में इसी तरह के संस्थानों में उसी पाठ्यक्रम में समायोजित किया जाना चाहिए. इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, ऐसा कहा गया है.
कहा गया है कि जरूरी हो तो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) भी इस मामले पर गौर कर सकता है. इसके अलावा रिपोर्ट में कुछ दूसरे उपाय भी सुझाए गए हैं.
कमेटी ने रिपोर्ट में कहा है कि पुनर्वास के उपायों से यह सुनिश्चित होना चाहिए कि विस्थापित व्यक्तियों का पुनर्वास उन्हीं मूल स्थानों पर किया जाए जहां से वे विस्थापित हुए थे.
हिंसा में लापता हुए व्यक्तियों का पता लगाने के लिए भी तत्काल प्रयास किए जाने की जरूरत है, ऐसा कहा गया है. लिखा है कि समय बीतने के साथ-साथ उनका पता लग पाना और भी मुश्किल होता जाएगा. सभी स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई बहाल करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं.
सभी स्तरों पर प्रत्येक छात्र के पहचान पत्र, मार्कशीट, डिप्लोमा और डिग्री आदि सहित शैक्षणिक रिकॉर्ड की प्रतियों की बहाली और उपलब्धता के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए.
राहत शिविरों में नवजात बच्चों के लिए दूध के साथ लैक्टोजेन और सेरेलैक सहित दूसरे तरह के शिशु आहार समुचित तौर पर उपलब्ध नहीं हैं. उन की महत्वपूर्ण आपूर्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए.
जेलों में बंद कैदियों (विशेषकर आदिवासी कैदियों) की सुरक्षा पूरी तरह से सुनिश्चित की जाए.
मणिपुर में अब तक 160 लोगों की मौत
मणिपुर में मई महीने में हिंसा शुरू हुई थी. दरअसल, वहां मैतई समाज अनुसूचित जनजाति (ST) के दर्जे की मांग उठा रहा है. इसके खिलाफ कुकी समाज ने 'आदिवासी एकजुटता मार्च' निकाला था. इसी मार्च के दौरान हिंसा शुरू हुई. इस हिंसा में अब तक 160 लोग मारे जा चुके हैं, वहीं सैंकड़ों लोग जख्मी हैं.
मणिपुर की कुल जनसंख्या में से 53 फीसदी मैतई हैं. वहीं 40 फीसदी लोग आदिवासी हैं. इसमें नागा और कुकी शामिल हैं. ये मुख्यत: पहाड़ी इलाकों में रहते हैं.