September 30, 2024

अन्य महिलाओं से पत्नी की तुलना मानसिक क्रूरता के समान: केरल हाईकोर्ट

0

 एर्णाकुलम
 पति पत्नी का रिश्ता नाजुक और मजबूत दोनों होता है। अगर इस रिश्ते हंसी मजाक की भी एक मर्यादा होती है। अगर आप दायरे से निकलते हैं तो केरल हाईकोर्ट की इस टिप्पणी पर गौर फरमाइएगा। पत्नी पर बार-बार इस बात के लिए तंज कसना कि वह उसकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरती है, क्रूरता है और ये तलाक का आधार है। कोर्ट ने कहा कि लगातार पत्नी पर तंज कसना मानसिक क्रूरता है। ऐसा पहली बार नहीं है कि कोर्ट ने पत्नी या महिला के लिए अधिकारों या उनकी प्रताड़ना पर कोई टिप्पणी की हो। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के कई ऐसे फैसले हैं जिसमें महिलाओं को अदालतों की तरफ से सुरक्षा दी गई है। आगे हम कुछ ऐसे ही मामलों और महिलाओं के हक की बात (Haq Ki Baat) का जिक्र करेंगे।

केरल का क्या है मामला
केरल हाईकोर्ट में दाखिल अर्जी में महिला ने कहा था कि उनके पति उनकी शारीरिक बनवाट पर टिप्पणी करते थे। 2009 में शादी के वक्त से ही ये सिलसिला शुरू हुआ था। महिला ने आरोप लगाया था उनके पति हमेशा कहते थे वह वैसी खूबसूरत नहीं है जैसी अन्य महिलाएं हैं। दोनों शादी के बाद बमुश्किल 1 महीने ही साथ रहे थे। केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पत्नी पर बार-बार टिप्पणी सही नहीं है और ये तलाक का आधार है। कोर्ट ने इस अर्जी पर सुनवाई करते हुए दोनों के तलाक को मंजूरी दे दी। दरअसल, महिला के पति ने 13 साल पहले फैमिली कोर्ट के दोनों के बीच तलाक के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं पर SC का फैसला
देश की शीर्ष अदालत ने मई 2022 में एक अहम फैसले में घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए एक बड़ा फैसला दिया था। अदालत ने साझे घर में रहने के अधिकार की व्यापक व्याख्या की थी। अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि महिला चाहे मां, बेटी, बहन, पत्नी, सास या बहू हो उसे साझे घर में रहने का अधिकार है। जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी वी नागरत्ना की बेंच पति की मौत के बाद घरेलू हिंसा से पीड़ित एक महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये फैसला दिया था। बेंच ने कहा था कि भारतीय सामाजिक संदर्भ में, एक महिला के साझा घर में रहने का अधिकार का अद्वितीय महत्व है। इसकी वजह है कि भारत में, ज्यादातर महिलाएं शिक्षित नहीं हैं और न ही वे कमा रही हैं। इसके अलावा न ही उनके पास अकेले रहने के लिए स्वतंत्र रूप से खर्च करने के लिए पैसे हैं। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि वह न केवल इमोशन सपोर्ट के लिए बल्कि उपरोक्त कारणों से घरेलू रिश्ते में रहने के लिए निर्भर हो सकती है। भारत में अधिकांश महिलाओं के पास स्वतंत्र आय या वित्तीय क्षमता नहीं है। वे अपने घर पर पूरी तरह से निर्भर हैं।

 

कामकाजी महिलाओं पर टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कामकाजी महिलाओं के मातृत्व अवकाश के वैधानिक अधिकार पर भी टिप्पणी की थी। 16 अगस्त 2022 को एक सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि किसी कामकाजी महिला को मातृत्व अवकाश के वैधानिक अधिकार से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि उसके पति की पिछली शादी से दो बच्चे हैं और महिला ने उनमें से एक की देखभाल के करने के लिए पहले अवकाश ले लिया था। अदालत ने कहा कि मातृत्व अवकाश देने का उद्देश्य महिलाओं को कार्यस्थल में अन्य लोगों के साथ शामिल होने के लिए बढ़ावा देना है। लेकिन ये भी एक हकीकत है कि ऐसे नियमों के बाद भी महिलाओं को बच्चे के जन्म के बाद काम छोड़ना पड़ता है। क्योंकि उन्हें छुट्टी समेत अन्य चीजें नहीं मिलती हैं। गौरतलब है कि नियमों के अनुसार, दो से कम जीवित बच्चों वाली महिला कर्मचारी मातृत्व अवकाश ले सकती है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए एस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि प्रसव को रोजगार के संदर्भ में कामकाजी महिलाओं के जीवन का एक स्वाभाविक पहलू माना जाना चाहिए और कानून के प्रावधानों को भी उसी के नजरिए से समझा जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने PGIMER चंडीगढ़ में बतौर नर्स कार्यररत महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *