November 23, 2024

सब्जियां सस्ती होने से नरम पड़ी थोक महंगाई, मार्च के बाद पहली बार 14% से नीचे आई

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 नई दिल्ली
 
खाने-पाने का सामान और खासकर सब्जियों के दाम में गिरावट से जुलाई में थोक महंगाई दर लगातार दूसरे माह नरम पड़ी है। इस साल मार्च के बाद पहली बार थोक मुद्रास्फीति 14 फीसदी से नीचे आई है। हालांकि, पिछले साल अप्रैल यानी 16 माह से यह लगातार दो अंक में बनी हुई है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक सब्जियों के दाम में जुलाई में सबसे अधिक गिरावट आई है। सब्जियों के दाम जुलाई में घटकर 18.25 फीसदी पर आ गए। जबकि इससे पिछले महीने यानी जून में सब्जियों की मुद्रास्फीति 56.75 प्रतिशत पर थी। ईंधन और बिजली की महंगाई दर भी नरम पड़ी है।

इसके अलावा विनिर्मित उत्पादों की महंगाई दर भी घटी है। लेकिन तिलहन की मुद्रास्फीति माइनस 4.06 प्रतिशत रही यानी इसके दाम मानक औसत स्तर से भी करीब चार फीसदी नीचे रहे। भारतीय रिजर्व बैंक मुख्य रूप से मौद्रिक नीति के जरिये मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखता है।

खुदरा मुद्रास्फीति लगातार सातवें महीने रिजर्व बैंक द्वारा तय लक्ष्य से ऊपर रही। जुलाई में यह 6.71 प्रतिशत पर थी। महंगाई पर काबू पाने के लिए केंद्रीय बैंक ने इस साल प्रमुख नीतिगत दर रेपो को तीन बार बढ़ाकर 5.40 प्रतिशत कर दिया है। केंद्रीय बैंक ने 2022-23 में खुदरा मुद्रास्फीति के 6.7 प्रतिशत पर रहने का अनुमान जताया है।

क्या है थोक और खुदरा मुद्रास्फीति

थोक मुद्रास्फीति में वस्तुओं की कीमत थोक विक्रेताओं और आपूर्तिकर्ताओं के स्तर पर आंकी जाती है। इसमें सबसे अधिक भारांश विनिर्मित उत्पादों के हैं। वहीं खुदरा महंगाई खुदरा दुकानदारों के स्तर आंकी जाती है। इसमें सबसे अधिक भारांश खाने-पीने की वस्तुओं के हैं। यही वजह है कि थोक महंगाई जब बढ़ती है तो उससे विनिर्मित उत्पादों की कीमतों पर सबसे अधिक असर होता है। जबकि खुदरा महंगाई बढ़ने पर खाने-पीने की वस्तुओं पर सबसे अधिक असर होता है। साथ ही थोक महंगाई जब घटती या बढ़ती है तो यह आने वाले समय में खुदरा महंगाई में गिरावट या तेजी का संकेत मानी जाता है।

थोक महंगाई का उपभोक्ताओं पर कैसे होता है असर

उपभोक्ताओं पर थोक महंगाई के घटने या बढ़ने असर तुरंत नहीं होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि थोक महंगाई का असर उपभोक्ताओं तक पहुंचने में एक से दो माह का समय लग जाता है। यही वजह है कि जब थोक महंगाई बढ़ती है तो उसका असर खुदरा दाम के रूप में उपभोक्ताओं पर उसके अगले माह या उसके बाद पड़ता है। हालांकि, रिजर्व बैंक रेपो दर पर फैसला करने के लिए थोक महंगाई की बजाय खुदरा महंगाई को मानक मानता है।

 

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