हाथरस कांड पीड़ित परिवार को चाहिए यूपी से बाहर घर, UP में इस बात का लगता डर
हाथरस
हाथरस कांड में मृतका के परिजनों ने सरकारी नौकरी और घर की मांग पूरी न होने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यूपी सरकार से दो सप्ताह में जवाब मांगा है। परिजनों ने गांव में अपनी जान का खतरा बताते हुए राज्य से बाहर घर देने की मांग की है। गैंग रेप और हत्या के इस हाईप्रोफाइल और लोमहर्षक मामले में सीबीआई ने जनपद की एससीएसटी एक्ट कोर्ट में 18 दिसम्बर 2020 को 67 दिनों की विवेचना के बाद दो हजार पन्नों का आरोप पत्र दाखिल किया था।
करीब 33 लोगों की इसमें अहम गवाही हुई। उसके बाद दो मार्च 2023 को एससीएसटी कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। जिसमें रामू, रवि और लवकुश को बरी कर दिया। जबकि मुख्य आरोपी संदीप को धारा 304 और एससीएसटी एक्ट का दोषी माना। संदीप आज भी जिला कारागार अलीगढ़ में निरुद्ध है। पीड़िता के बड़े भाई ने बताया है कि शुक्रवार को उन्होंने अपने वकील संजय हेगड़े के जरिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। पीड़िता के भाई का कहना है कि तीन आरोपियों के बरी होने से उन्हें खतरा और बढ़ा है। वह यूपी में खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने याचिका दायर की है कि उन्हें यूपी से कहीं बाहर भेजा जाये या यूपी के किसी बड़े शहर में रहने के लिए आवास और नौकरी दी जाये।
डर के चलते बेटी को बाहर पढ़ने भेजा
पीड़िता के बड़े भाई और मुकदमा वादी का कहना है कि तीन साल से पूरा परिवार सुरक्षा के घेरे में रह रहा है। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई लिखाई पूरी तरह से प्रभावित हो रही है। उन्होंने अपनी सात साल की बेटी को अपने रिश्तेदार के ष्घर पढ़ने के लिए भेजा है ताकि उसकी पढ़ाई जारी रह सके। अभी दो बच्चे पढ़ने लायक है। उन्हें भी किसी रिश्तेदार के पास ही भेजना पड़ेगा।पीड़िता के भाई का कहना है कि उन्हें अब केवल सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद है।
यूपी सरकार पर कोई भरोसा नहीं रहा है। घटना के वक्त मुख्यमंत्री ने नौकरी और आवास देने की बात कहीं, लेकिन आज तक किसी ने इस वायदे को पूरा नहीं किया है। वह समय समय पर जिलाधिकारी को भी प्रार्थना पत्र दे रहे हैं, लेकिन परिणाम शून्य है। पूरा परिवार घर में कैद है। कोई नौकरी या मजदूरी तक नहीं कर पा रहा है। कोई विवाह शादी और गमी में नहीं जा पा रहा है।
इस तरह सामने आया था घटनाक्रम
हाथरस जनपद के बूलगढ़ी में 14 सितम्बर 2020 में युवती खेत में चारा लेने के लिए गई थी। तभी उस पर हमला हो गया। उस समय पीड़िता के परिजनों की तहरीर पर एससीएसटी एक्ट और जानलेवा हमले की धारा में संदीप के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया। बाद में युवती ने अलीगढ़ मेडिकल कालेज में करीब दस दिन बाद अन्य तीन गांव के लोगों के नाम बताए और अपने साथ गैंगरेप की बात कहीं। 29 सितम्बर की रात को दिल्ली के सफदरजंग में युवती की मौत हो गई। पुलिस ने रात में ही अंतिम संस्कार करा दिया।
हाथरस सांसद, राजवीर दिलेर ने कहा कि पीड़ित परिवार न जाने किसके बहकावे में आकर काम कर रहा है। बाल्मीकि समाज के हर गांव में चंद ही घर होते है और वहां पूरा गांव उनकी सुरक्षा करता है। प्रदेश में हर व्यक्ति सुरक्षित है। परिवार खुद में सही है तो गांव में ही रहना चाहिए। क्यों यहां से बाहर जाने की बात कर रहा है।
वादी के एडवोकेट, ओपी शुक्ला ने कहा कि पीड़ित परिवार को सुरक्षित जगह पर बसाने के लिए याचिका डाली गयी है। बच्चों की पढ़ाई लिखाई बंद है। कोई कामधंधा नहीं कर पा रहा है। चौबीस घंटे पुलिस का पहरा रहता है। पीड़ित परिवार आजादी से सांस तक नहीं ले पा रहा है। उन्हें कम से कम आजाद रहने दिया जाये। जो उनका नुकसान होना था वह हो चुका है। मुख्यमंत्री ने खुद नौकरी और आवास का वायदा किया था, लेकिन पूरा नहीं किया। दिल्ली की निर्भया कांड के बाद कानून में बदलाव किये, लेकिन इस परिवार को कुछ नहीं मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने दो सप्ताह में यूपी सरकार से जवाबा मांगा है।
आरोपी संदीप के वकील, मुन्ना सिंह पुण्डीर ने कहा कि संदीप की जमानत अर्जी हाईकोर्ट में डाली जा चुकी है। एक सितम्बर को उस पर सुनवाई होनी है। उम्मीद है कि संदीप को हाईकोर्ट से पूरा न्याय मिलेगा। तीन निर्दोषों को हाथरस से न्याय मिल चुका है।
सदर विधायक हाथरस, अंजुला माहौर ने कहा कि उत्तर प्रदेश में अन्य प्रांतों के लोग यहां आकर बस रहे है। यूपी में कानून का राज है। हर कोई यहां खुद को सुरक्षित महसूस कर रहा है। ऐसे में यह परिवार खुद को असुरक्षित बता रहा है यह समझ से परे है। अगर कोई बात है तो उसे बताना चाहिए। बाकी मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है।
डीएम हाथरस, अर्चना वर्मा ने कहा कि यह सब शासन स्तर से निर्णय होने है। मेरे स्तर से इसमें कुछ नहीं होना है। शासन से जो भी निर्देश प्राप्त होगे उनका पालन किया जायेगा।