संसार में सबसे पवित्र है भाई-बहन का रिश्ता : प्रवीण ऋषि
रायपुर
लालगंगा पटवा भवन में बुधवार को रक्षाबंधन मनाया गया। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि व तीर्थेश मुनि की पावन निश्रा में धर्मसभा में उपस्थित सभी बहनों में अपने भाइयों की कलाई में रक्षा सूत्र बांधा। प्रवीण ऋषि ने उपस्थित बहनों को सिखाया कि किस तरह रक्षा सूत्र बांधा जाए, कैसे भाई को तिलक लगाना है। उन्होंने कहा कि बहनों का लक्ष्य है कि भाई के जीवन में केवल विजय ही विजय रहे। भाई की सुरक्षा हो और फतेह हो। उन्होंने सभा में तिलक और रक्षासूत्र बांधने की विधि बताई। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने आज धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्ति के जीवन में एक बहन की आवश्यकता और उसके महत्त्व को समझाया। उन्होंने कहा कि यदि मरीचि के जन्म में कोई बहन होती तो महावीर की यात्रा कैसे संपन्न हो जाती। बहन की प्रेरणा से उठा हुआ एक कदम सालों की मेहनत को सार्थक कर देता है। एक भाई की सारी साधना को सिद्धि का वरदान देने का सामर्थ्य किसी में है तो वह बहन में हैं। काश विश्वभूति मुनि के भव में महावीर की चेतना को कोई बहन मिल जाती। बहन मिलती है केवल वर्धमान को, नाम है सुदर्शना। एक बहन मिल जाती है तो जीवन बदल जाता है। जो काम माता-पिता नहीं कर सकते वह काम बहन कर जाती है।
उन्होंने कहा कि आज रक्षाबंधन है, और पहली बहन थी सुंदरी, जिसका लगाव भरत के प्रति था। भरत ने उसे दीक्षा लेने नहीं दी थी। जब वह छहखंड की विजय यात्रा पर निकला, तो उसी दिन से सुंदरी ने आयंबिल शुरू किया, कि मेरे भाई की विजय यात्रा निर्बाध संपन्न हो। सुंदरी ने 60 हजार आयंबिल किए। भरत अपनी विजय यात्रा से लौटा। प्रवीण ऋषि ने कहा कि एक चक्रवर्ती भी विजय का आनंद नहीं मना सकता है। नगरी में प्रवेश से पहले अपने भाइयों को खोने का दर्द लेकर भरत प्रवेश कर रहा है। सभी उसका अभिषेक कर रहे हैं, लेकिन भरत खुशी नहीं मना पा रहा है। वह आगे बढ़ता है, यह सोचते हुए कि सुंदरी मिलेगी द्वार पर, उसे देखके मेरा सारा गम दूर हो जाएगा। लेकिन वह नहीं दिखी। बहुत ढूंढा, नहीं मिली। आदमी जितना मजबूत होता है, वह उतनी मजबूरी में जीता है। वह किसी से पूछने से भी कतरा रहा है। रो भी नहीं सकता। अभिषेक से मुक्त होकर भरत सुंदरी को ढूंढता है।
सुंदरी महल से दूर एक कुटिया में रह रही थी। भरत उसे देखता है, उसे आवाज देता है, उसकी आवाज सुनकर वह उठती है, और भरत की ओर देखती है। उसके चेहरे में तप का तेज है, लेकिन शरीर दुर्बल है। उसे देख भरत रोने लगता है। सुंदरी ने धीमे शब्दों में कहा भाई और यह शब्द सुनते हुए भरत को लगा यह क्या संबोधन दे दिया। सुंदरी ने कहा कि तुम विजय यात्रा पर थे तो तुम्हारी यात्रा को सफल बनाने के लिए मैं हर पल तुम्हारे साथ तप के बल पर चली। सुंदरी के मुख से भैया का संबोधन भरत के लिए नया था, अनूठा था। यह तप से जन्मा हुआ रिश्ता था। सुंदरी ने एक सूत का धागा उठाती है और अपनी पूरी तप की शक्ति के साथ भरत की कलाई में बांध देती है। चक्रवर्ती के शील की सुरक्षा केवल बहन ही कर सकती है।