November 24, 2024

ज्ञान और शांति की पुंज साँची नगरी से अब अक्षय ऊर्जा का प्रकाश

0

· प्रो. सुनील कुमार कुलपति, आरजीपीवी

भोपाल : गुरूवार

विशेष लेख

जलवायु परिवर्तन विश्व की प्रमुख समस्याओं में से एक है जिससे पर्यावरण एवं सामाजिक आर्थिक विकास पर दुष्प्रभाव हो रहा है। जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण विभिन्न क्षेत्रों यथा ऊर्जा, उद्योग, कृषि, परिवहन, अपशिष्ट के अनुचित निष्पादन आदि से कार्बन उत्सर्जन के कारण, ग्लोबल वार्मिंग होना है।

कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रयास किये जा रहे है। इस दिशा में जलवायु परिवर्तन के पेरिस सम्मेलन में निश्चित किया गया कि पृथ्वी की सतह का तापमान 2 डिग्री से अधिक न बढ़े के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सघन प्रयास और पृथ्वी की सतह का तापमान 1.5 डिग्री से अधिक न बढ़े के लिए विशेष प्रयास किये जायें। इस 1.5 डिग्री के संकल्प को पूरा करने के लिए सभी देशों ने अपनी घरेलू, सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के दृष्टिगत राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित किये हैं। उल्लेखनीय है कि 1.5 डिग्री के संकल्प को पूरा करने के लिए हमारे पास सिर्फ 2030 तक का ही समय है।

भारत के लक्ष्य

पेरिस सम्मेलन में भारत ने ग्रीन हॉउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य निर्धारित किये जिसे वर्ष 2021 में ग्लासगो में संपन्न जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में विस्तारित किया। ये पाँच लक्ष्य हैं – (1) वर्ष 2070 तक भारत कार्बन उत्सर्जन के नेट जीरो लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करेगा। (2) भारत कुल ऊर्जा उत्पादन का 50 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा से करेगा। (3) वर्ष 2030 तक भारत जीडीपी की कार्बन उत्सर्जन तीव्रता 45 प्रतिशत तक कम करेगा। (4) वर्ष 2030 तक भारत कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी लायेगा। (5) भारत अपनी नवकरणीय ऊर्जा क्षमता 500 गीगावाट तक बढ़ाएगा, इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर “वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड” की पहल भी प्रारंभ की गयी।

जीवाश्म ईधन और परिवहन साधन को सौर उर्जोन्मुखी करना होगा

वैश्विक सकल ग्रीन हॉउस गैसों की श्रेणी में चीन तथा अमेरिका के बाद भारत तीसरे स्थान पर आता है, जिसका योगदान 7.08 प्रतिशत है। भारत में ग्रीन हॉउस गैसों के उत्सर्जन में ऊर्जा उत्पादन से जनित उत्सर्जन का 78 प्रतिशत योगदान है उसके बाद क्रमश: उद्योग,कृषि, परिवहन, भवन निर्माण से ग्रीन हॉउस गैसों का उत्सर्जन होता है।

पृथ्वी के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने के लिए हमें जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा एवं परिवहन साधनों को सौर ऊर्जा की ओर बदलना होगा जिससे निर्धारित अवधि (वर्ष 2030 तक) में नेट जीरो कार्बन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।

 भारत सौर गठबन्धन का सदस्य

पेरिस सम्मेलन के बाद लगभग 122 से अधिक देशों ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (इंटरनेशनल सोलर अलायंस) बनाया है। भारत इसका एक सदस्य है जिसे “वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड” की पहल पर कार्य किया जा रहा है। इंटरनेशनल सोलर अलायंस द्वारा यह निर्णय लिया गया कि कर्क रेखा एवं मकर रेखा के बीच के स्थानों पर सूर्य की किरणों की दिशा सीधी होती है जो सौर ऊर्जा उत्पादन हेतु अधिक दक्ष है। अत: ऐसे स्थानों पर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

साँची देश की पहली सोलर सिटी

मध्यप्रदेश में कर्क रेखा के समीप स्थित साँची नगरी जहाँ सम्राट अशोक ने बौद्ध अध्ययन और शिक्षा केंद्र के रूप में “साँची स्तूप” बनवाया जहाँ से संघमित्रा और महेंद्र ने भगवान बुद्ध के शांति के संदेश को समूचे विश्व में प्रसारित करने के लिए प्रस्थान किया आज उसी ऐतिहासिक नगरी साँची से जलवायु परिवर्तन से जनित अस्तित्व के संकट से जूझ रही मानवता को प्रकृति के साथ शांति का सन्देश मध्यप्रदेश सरकार दे रही है। साँची नगरी देश के पहली पूर्ण सौर ऊर्जा से संचालित प्रकाशित नगरी बनने जा रही है।

देश के कुल ऊर्जा उत्पादन का 50 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा से करने के लिए अनेक राज्यों में एक ओर अल्ट्रा मेगा सोर परियोजना जैसे अनेक प्रयास किये जा रहे है वहीं साँची जैसे छोटे से नगर को सोलर सिटी बनाने के प्रयास भी अति महत्वपूर्ण हैं। साँची में सौर ऊर्जा के अनेक उपक्रम जैसे ग्रिड कलेक्टेड भूमि पर स्थापित सोलर परियोजना, भवनों पर रूफ टॉप सिस्टम, हर घर सोलर, सार्वजनिक सुविधा के लिए सौर संयंत्र, ई-परिवहन एवं ऊर्जा साक्षरता अभियान तथा सघन वृक्षारोपण द्वारा साँची नगरी को नेट जीरो बनाने का कार्य किया जा रहा है।

साँची नेट जीरो सिटी

साँची को नेट जीरो बनाने के लिए 3 एवं 5 मेगावाट की सौर परियोजना करना इसमें कृषि क्षेत्र की विद्युत आवश्यकता की पूर्ति, हर घर सोलर में लगभग 500 सोलर लेम्प, घरों में ऊर्जा दक्ष उपकरणों जैसे एलईडी बल्ब, सीलिंग फैन एवं ट्यूब लाइट का उपयोग, सार्वजनिक स्थानों पर सोलर ऊर्जा से चलित उपकरण की स्थापना तथा बैटरी चलित 2 कचरा एकत्रण वाहन संचालित कर कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है। साँची नगरी का कुल कार्बन उत्सर्जन 10 हजार 528 टन है। इसे अवशोषित करनेके लिए एक लाख 75 हजार वयस्क वृक्षों की आवश्यकता है। वर्तमान में 1 लाख 62 हजार 762 वृक्ष हैं। शेष कार्बन को आगामी 4-5 वर्षों में अन्य उपायों से अवशोषित करने की योजना तैयार की जा रही है।

साँची नगरी का सोलर सिटी के रूप में विकास मध्यप्रदेश शासन का एक विनम्र परन्तु ऐतिहासिक प्रयास है जो प्रदेश और देश में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने में मील का पत्थर सिद्ध होगा।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *