भारत में साथ हुए हैं लोकसभा-विधानसभा चुनाव, ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का क्या होगा असर
नई दिल्ली
संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के बाद से ही सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। इसकी एक वजह संभावित 'वन नेशन, वन इलेक्शन बिल' को भी माना जा रहा है। अटकलें हैं कि सरकार 5 दिवसीय सत्र के दौरान इस बिल को पेश कर सकती है। हालांकि, विशेष सत्र के एजेंडा को लेकर सरकार की तरफ से आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है। अगर ऐसा होता है, तो देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ होंगे।
एक देश एक चुनाव से क्या होगा फायदा
खर्च कम आएगा
एक देश एक चुनाव से सबसे बड़ा फायदा खर्च के मोर्चे पर होगा। कहा जाता है कि सिर्फ 2019 लोकसभा चुनाव पर ही 60 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। इसमें राजनीतिक दलों की तरफ से किया गया खर्च और भारत निर्वाचन आयोग का खर्च भी शामिल है। ऐसे में अगर भारत में एक साथ दोनों तरह के चुनाव होंगे तो खर्च में बड़े स्तर पर कटौती की जा सकती है।
प्रशासन स्तर पर होगा सुधार
कहा यह भी जाता है कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ होते हैं, तो इसका सकारात्मक असर देश की प्रशासनिक व्यवस्था पर भी पड़ सकता है। इसके चलते प्रशासन स्तर पर काम करने की क्षमता बढ़ेगी, जो चुनाव के दौरान कुछ धीमी हो जाती है। दरअसल, चुनाव के बीच कई अधिकारी चुनावी कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं।
नहीं रुकेंगे कार्यक्रम और नीतियां
एकसाथ चुनाव का फायदा नीतियों और कार्यक्रमों को बगैर रुके चलाए जाने में भी मिल सकता है। वर्तमान प्रक्रिया के तहत जहां भी चुनाव होते हैं, वहां आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है। उस दौरान नई परियोजनाओं और जनकल्याण के कामों पर भी रोक लग जाती है।
बढ़ेंगे मतदाता
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, विधि आयोग का कहना है कि अगर दोनों चुनाव एकसाथ कराए जाते हैं, तो इसका अच्छा असर मतदाताओं की संख्या पर भी पड़ सकता है। फिलहाल, मतदाता को अपने राज्य और आम चुनाव के लिए अलग-अलग मतदान करना होता है। एक चुनाव होने पर वह एक साथ मताधिकार का प्रयोग कर सकेगा।
क्या हैं परेशानियां
संविधान में संशोधन
अगर एकसाथ चुनाव कराए जाने हैं, तो संवैधानिक संशोधन भी जरूरी होंगे, क्योंकि लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल को एक साथ लाना होगा। साथ ही कई और संशोधनों की भी जरूरत होगी।
क्षेत्रीय मुद्दे
माना जाता है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ होने को लेकर क्षेत्रीय दलों में भी डर बना रहता है। उन्हें लगता है कि वह राष्ट्रीय मुद्दों के बढ़ने के चलते क्षेत्रीय मुद्दों को तरजीह नहीं मिल सकेगी। साथ ही वह खर्च और रणनीति के मामले में राष्ट्रीय दलों जितनी तैयारी नहीं कर सकेंगे। साथ ही यह भी कहा जाता है कि चुनाव साथ होने की स्थिति में देश के संघवाद को भी चुनौती मिल सकती है।
क्या कहता है इतिहास
खास बात है कि साल 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में देश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ ही हुए। हालांकि, उसके बाद साल 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं और 1970 में लोकसभा भंग होने से हालात बदले। साल 1983 में भारत निर्वाचन आयोग यानी ECI ने एक साथ चुनाव कराए जाने का प्रस्ताव दिया था। इसके बाद विधि आयोग की तरफ से भी 1999 की रिपोर्ट में भी एक चुनाव की बात का जिक्र किया गया था।
साल 2022 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने जानकारी दी थी कि आयोग एकसाथ चुनाव कराने के लिए पूरी तरह से तैयार है। उन्होंने कहा था कि इस व्यवस्था को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत है। दिसंबर 2022 में विधि आयोग ने भी इस संबंध में राजनीतिक दलों, चुनाव आयोग, नौकरशाहों समेत अन्य एक्सपर्ट्स की इस मामले में राय मांगी थी।