November 24, 2024

दया याचिका पर राष्ट्रपति का निर्णय होगा अंतिम, फैसले के खिलाफ अपील नहीं कर पाएंगे मृत्युदंड के दोषी

0

नई दिल्ली
मृत्युदंड की सजा प्राप्त जिस दोषी की दया याचिका का राष्ट्रपति ने निपटारा कर दिया हो, उसे नए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) विधेयक, 2023 के कानून बनने पर फैसले के खिलाफ अदालत में अपील करने का कोई अधिकार नहीं होगा। संविधान का अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति को किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा को माफ करने, राहत देने, सजा कम करने या उसकी सजा को निलंबित करने का अधिकार देता है।

राष्ट्रपति का आदेश होगा अंतिम
दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह लेने के लिए प्रस्तावित बीएनएसएस विधेयक की धारा 473 के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत दिए गए राष्ट्रपति के आदेश के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील नहीं की जाएगी और यह अंतिम होगा। राष्ट्रपति द्वारा दिए गए निर्णय के संबंध में किसी भी अदालत में कोई प्रश्न नहीं उठाया जाएगा। हालांकि, दया याचिकाओं के निपटारे के संबंध में राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा निर्दिष्ट नहीं की गई है।

पहले भी खटखटाया गया है कोर्ट का दरवाजा
सुप्रीम कोर्ट ने अतीत में फैसला सुनाया है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा क्षमादान और माफी जैसी विशेषाधिकार शक्तियों का प्रयोग न्यायसंगत है और इसे अनुचित और अस्पष्ट देरी, एकांत कारावास समेत अन्य आधारों पर चुनौती दी जा सकती है। मृत्युदंड प्राप्त अधिकांश दोषियों को अपनी दया याचिकाओं की अस्वीकृति के खिलाफ अदालतों का दरवाजा खटखटाते देखा गया है। कुछ मामलों में दया याचिकाओं पर निर्णय लेने में राष्ट्रपति द्वारा 'अत्यधिक देरी' को संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन माना गया और मृत्युदंड को भी बदल दिया गया।

दोषियों ने की थी पुनर्विचार याचिका की मांग
अतीत में ऐसे कई उदाहरण रहे हैं, जहां मौत की सजा पाए दोषियों ने अंतिम समय में अदालत का रुख किया और राष्ट्रपति द्वारा उनकी दया याचिकाओं को खारिज करने पर पुनर्विचार की मांग की। इनमें 1991 मुंबई विस्फोटों के दोषी याकूब मेमन और दिल्ली दुष्कर्म मामले के चारों दोषियों की याचिका शामिल हैं। दोनों ही मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया।

बीएनएसएस विधेयक की धारा 473 में क्या है प्रविधान
बीएनएसएस विधेयक की धारा 473 में एक ही मामले में मौत की सजा पाए कई दोषियों द्वारा दायर की गई अलग-अलग याचिकाओं के कारण होने वाली देरी को भी दूर करने का प्रविधान है। दिल्ली दुष्कर्म मामले में चारों दोषियों ने अलग-अलग समय पर अपनी दया याचिका दायर की थी, जिससे आखिरी याचिका खारिज होने तक देरी हुई।

दोषियों की याचिकाओं पर राष्ट्रपति एक साथ करेंगे फैसला
विधेयक में प्रस्ताव है कि जेल अधीक्षक यह सुनिश्चित करेगा कि प्रत्येक दोषी, यदि किसी मामले में एक से अधिक हैं, 60 दिन के भीतर दया याचिका प्रस्तुत करे और जहां अन्य दोषियों से ऐसी कोई याचिका प्राप्त नहीं होती है, वह स्वयं मूल दया याचिका के साथ नाम पते, केस रिकार्ड की प्रतियां और अन्य सभी विवरण केंद्र या राज्य सरकार को भेजें। सभी दोषियों की याचिकाओं पर राष्ट्रपति एक साथ फैसला करेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *