चीन का BRI प्रोजेक्ट का ‘डब्बा हुआ गोल ‘कोई भी देश शामिल होने को तैयार नहीं, अब क्या करेंगे जिनपिंग?
बीजिंग
चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट अब फेल हो चुका है। शुरुआत में चीन ने गरीब देशों को बीआरआई का लालच दिखाकर उन्हें कर्ज से पाटने की बखूबी कोशिश की। चीन की यह चाल काफी हद तक सफल भी रही। इसके जरिए चीन ने एशिया के रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण दो देश पाकिस्तान और श्रीलंका को लगभग कंगाल बना दिया। लेकिन, अब चीन की बीआरआई परियोजना का पर्दाफाश हो चुका है। हालात इतने बुरे हैं कि चीन की बीआरआई में अब कोई और देश शामिल नहीं होना चाहता है। इस बीच चीन की घरेलू मंदी और कोविड महामारी ने बीआरआई परियोजना को और ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। चीन के पास अब इतने पैसे नहीं हैं कि वह फ्री में गरीब देशों को कर्ज बांट सके। वहीं, गरीब देश चीन से सिर्फ अनुदान की रट लगा रहे हैं और कर्ज से मना कर रहे हैं।
निवेश बढ़ाने की दोबारा प्लानिंग कर रहा चीन
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि चीन अब इस बात पर पुनर्विचार कर रहा है कि वह विदेशों में कैसे निवेश करेगा। वहीं, शी जिनपिंग अपने वुल्फ वॉरियर कहे जाने वाले राजनयिकों पर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की परियोजनाओं के लाभ का बखान करने का दबाव बना रहे हैं। शी ने पहली बार सितंबर 2013 में कजाकिस्तान की यात्रा पर चीन और यूरोप को जोड़ने वाले सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट के लिए अपने दृष्टिकोण को रेखांकित किया। अगले महीने, उन्होंने बेल्ट एंड रोड की नींव रखते हुए हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर के साथ 21वीं सदी के समुद्री सिल्क रूट का आह्वान किया था।
बीआरआई में 150 से अधिक देश शामिल
तब से लेकर अब तक यानी पिछले 10 साल में 150 से अधिक देशों ने चीन के साथ बीआरआई समझौते में सहयोग के लिए समझौता झापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। चीन इस अक्टूबर में बीजिंग में तीसरे बेल्ट एंड रोड फोरम की मेजबानी कर रहा है। चीन की सीमा शुल्क एजेंसी के अनुसार, बेल्ट और रोड प्रतिभागियों के साथ चीन का व्यापार 2013 से 2022 तक 76% बढ़ गया, जो चीन के समग्र व्यापार में 51% की वृद्धि को पार कर गया। इसने उभरते देशों के साथ मजबूत आर्थिक संबंधों ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन के दबदबे को भी बढ़ाया है
बीआरआई ने चीन को अलग-थलग होने से बचाया
जापान रिसर्च इंस्टीट्यूट के जुन्या सानो ने कहा कि बेल्ट एंड रोड ने चीन को संयुक्त राष्ट्र के भीतर अलग-थलग होने से बचाए रखा है। 2019 और 2021 के बीच, पश्चिमी देशों ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में शिनजियांग और हांगकांग की स्थितियों पर चिंता व्यक्त करते हुए चार संयुक्त बयान जारी किए। सानो ने कहा, लेकिन हर बार पश्चिम की तुलना में अधिक देशों ने चीन का पक्ष लिया। बेल्ट और रोड देशों के साथ चीन का व्यापार लाभ भी बढ़ा है। 2023 के पहले सात महीनों में यह आंकड़ा कुल 197.9 बिलियन डॉलर था और यह पूरे साल के नए उच्चतम स्तर पर है। इस लाभ ने बढ़ते द्विपक्षीय तनाव के बीच देश को अमेरिका के साथ व्यापार पर कम भरोसा करने में मदद की।
बेल्ट एंड रोड में शामिल देशों को हो रहा नुकसान
लेकिन बेल्ट एंड रोड देशों को बढ़ते व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है, जबकि चीनी बाजार तक पहुंच बढ़ने की उम्मीदें धूमिल हो रही हैं। इटली, जो 2019 में इस पहल में शामिल होने वाला ग्रुप ऑफ सेवन का एकमात्र सदस्य बन गया, उसने 2022 तक तीन वर्षों में चीन के साथ अपने व्यापार घाटे को दोगुना कर दिया। इटली के विदेश मंत्री एंटोनियो तजानी ने पिछले शनिवार को कहा था कि सिल्क रोड हमारे अपेक्षित परिणाम नहीं लेकर आया। उनका देश साल के अंत में यह निर्णय लेता दिख रहा है कि इस ढांचे को छोड़ना है या नहीं। बे
चीन की कर्ज में फांसने वाली चाल से दुनिया सतर्क
बेल्ट और रोड पर चीन की कठिन शर्तों और संबंधित कर्ज प्रदान करने के नियमों ने भी समस्याएं पैदा की हैं। अपना कर्ज चुकाने के लिए संघर्ष करते हुए, श्रीलंका ने चीन को 99 साल की लीज पर हंबनटोटा बंदरगाह पर नियंत्रण दे दिया। ऐसे में बाकी देश तेजी से चीन के ऋण जाल में फंसने से सावधान हो रहे हैं, हालांकि चीन इस विचार को खारिज करता है।
कोविड से चीन को हुआ तगड़ा नुकसान
चीन से पैदा हुई कोरोना वायरस महामारी ने पूरी दुनिया को खतरे में डाल दिया। लेकिन चीन ने इस महामारी को लेकर अपनी भूमिका आज तक नहीं स्वीकारी है। इस महामारी ने चीन को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है। कोरोना वायरस महामारी से चीन की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा है। अमेरिका स्थित रोडियम ग्रुप के अनुसार, 2020 और 2022 के बीच चीनी ऋणदाताओं से जुड़े कुल 76.8 बिलियन डॉलर के ऋण अनिवार्य रूप से खराब हो गए हैं। जबकि चीन ने मुद्रा विनिमय सहित बेल्ट और रोड देशों को वित्तीय सहायता बढ़ा दी है, लेकिन नए निवेश में गिरावट आई है।
बीआरआई में अब कम निवेश कर रहा चीन
अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 तक इस पहल के माध्यम से सालाना लगभग 100 बिलियन डॉलर का निवेश किया जा रहा था, लेकिन तब से यह आंकड़ा 60 बिलियन डॉलर से 70 बिलियन डॉलर के आसपास पहुंच गया है। चीन की आर्थिक मंदी ने इस गिरावट में योगदान दिया है। इसका विदेशी भंडार, जो नए निवेशों को वित्त पोषित करता है, मोटे तौर पर $3 ट्रिलियन से अधिक पर स्थिर बना हुआ है। ऐसे में उभरते देशों में निवेश करने की इसकी क्षमता में नाटकीय रूप से वृद्धि की उम्मीद नहीं है।