November 26, 2024

गणेश चतुर्थी रवि योग में, सुबह से है भद्रा, कैसे करें पूजा? जानें मुहूर्त और विधि

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इस साल गणेश चतुर्थी 19 सितंबर दिन मंगलवार को है. उस दिन रवि योग में गणेश चतुर्थी का उत्सव मनाया जाएगा, लेकिन उस दिन सुबह से भद्रा लग रही है. गणेश चतुर्थी के दिन से 10 दिनों का गणेश उत्सव शुरू हो जाएगा. हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी ति​थि को गणेश चतुर्थी मनाते हैं. उस दिन व्रत रखकर गणेश जी की पूजा करते हैं. गणपति बप्पा के आशीर्वाद से संकट दूर होते हैं, जीवन में आने वाली विघ्न-बाधाएं खत्म होती हैं. आइए जानते हैं ​गणेश चतुर्थी पर बनने वाले रवि योग, भद्रा, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में.

गणेश चतुर्थी 2023 पर रवि योग कब से है?
19 सितंबर को गणेश चतुर्थी पर रवि योग सुबह 06 बजकर 08 मिनट से बन रहा है और यह दोपहर 01 बजकर 48 मिनट पर खत्म होगा. गणेश चतुर्थी की पूजा आप रवि योग में करेंगे. रवि योग एक शुभ योग माना जाता है.

गणेश चतुर्थी 2023 पर कब से है भद्रा?
गणेश चतुर्थी वाले दिन भद्रा सुबह से ही लग जाएगी. सुबह 06 बजकर 08 मिनट से दोपहर 01 बजकर 43 मिनट तक भद्रा का साया रहेगा. इस भद्रा का वास पाताल लोक में होगा. भद्रा काल में शुभ कार्य करने वर्जित हैं.

भद्रा में कैसे करें गणेश चतुर्थी की पूजा?
भद्रा के समय में शुभ कार्य वर्जित होते हैं, लेकिन व्रत और पूजा पाठ करने की मनाही नहीं होती है. वैसे भी गणेश चतुर्थी पर पाताल की भद्रा है, जिसका दुष्प्रभाव पृथ्वी लोक पर नहीं माना जाता है.

गणेश चतुर्थी 2023 का पूजा मुहूर्त क्या है?
गणेश चतुर्थी पर गणपति बप्पा की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 01 मिनट से हो रहा है. उस दिन दोपहर 01 बजकर 28 मिनट तक पूजा मुहूर्त है. इस समय में गणेश जी की स्थापना करके विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए.

गणेश चतुर्थी 2023 के शुभ समय
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी ति​थि की शुरूआत: 18 सितंबर, 12:39 पी एम से
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी ति​थि की समाप्ति: 19 सितंबर, 01:43 पी एम पर
स्वाती नक्षत्र: 19 सितंबर, सुबह से दोपहर 01:48 पी एम तक, फिर विशाखा नक्षत्र
अभिजित मुहूर्त: 11:50 ए एम से देापहर 12:39 पी एम तक

गणेश चतुर्थी की पूजा विधि
गणेश चतुर्थी के दिन विधिपूर्वक गणपति बप्पा की मूर्ति को एक चौकी पर पीले रंग की चादर या कपड़ा बिछाकर रखें. उनका गंगाजल से अभिषेक करें. फिर वस्त्र, फूल, माला, जनेऊ आदि से उनको सुशोभित करें. उसके बाद अक्षत्, हल्दी, पान का पत्ता, सुपारी, चंदन, धूप, दीप, नारियल आदि से पूजा करें. बप्पा को दूर्वा अर्पित करें. मोदक या लड्डू का भोग लगाएं.

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