रिटायर्ड जेल आईजी को मौत के 13 साल बाद मिला न्याय
जयपुर
जयपुर के रिटायर्ड अफसर को मौत के करीब 13 साल बाद राजस्थान हाईकोर्ट से न्याय मिला है। जस्टिस अनूप ढंड की अदालत ने दिवंगत अफसर के बेटे और अन्य परिजनों की याचिका को स्वीकार करते हुए उनके रिटायरमेंट से एक दिन पहले उन्हें दी गई चार्जशीट और सजा को निरस्त कर दिया है।
कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए हैं कि दिवंगत अफसर की सजा के रूप में काटी गई पेंशन की राशि को उनके वारिसों को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटाई जाए।
रिटायरमेंट से एक दिन पहले थमा दी थी चार्जशीट
दिवंगत रामानुज शर्मा जेल आईजी के पद से 30 जून 1991 को रिटायर हुए थे। इसके एक दिन पहले उनको 1977 के 14 साल पुराने एक मामले में चार्जशीट थमाकर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी गई थी।
दरअसल, जेल के दो गार्ड को 1976 में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने आपराधिक मामले का दोषी माना था, लेकिन वे प्रोबेशन पीरियड में थे। मामूली अपराध होने के कारण कोर्ट ने अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर उनकी सजा माफ कर दी थी। इस आदेश को डीजे कोर्ट ने भी बहाल रखा था।
आमतौर पर प्रोबेशन पीरियड के दौरान यदि मामूली अपराध में दोष सिद्ध हो और कोर्ट उसे माफ कर दे तो नौकरी पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता। दोनों गार्ड उस समय निलंबित चल रहे थे। जेल आईजी शर्मा ने दोनों का निलंबन समाप्त कर दोनों को नौकरी से बर्खास्त करने या आगे की कार्रवाई के संबंध में निर्णय करने के लिए मामला सक्षम अधिकारी को भेज दिया था।
सरकार का कहना था कि बतौर जेल आईजी रामानुज शर्मा ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर निलंबन समाप्त कर गलत किया था। 8 साल तक शर्मा के खिलाफ अनुशानात्मक कार्यवाही पर सुनवाई के बाद 1999 में उनकी पेंशन से दो साल तक 5 फीसदी राशि काटने की सजा सुनाई थी। रामानुज शर्मा ने 1999 में सरकार के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी। 10 अप्रैल 2010 को उनकी मौत हो गई थी।