6 अक्तूबर को याचिकाओं पर सुनवाई करेगा न्यायालय, बिहार जाति सर्वेक्षण को सुप्रीम कोर्ट में मिली चुनौती
नई दिल्ली/पटना
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वह बिहार में जाति सर्वेक्षण की अनुमति प्रदान करने से संबंधित पटना उच्च न्यायालय के एक अगस्त के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर छह अक्टूबर को सुनवाई करेगा। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना एवं न्यायमूर्ति एस. वी. एन. भट्टी की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को कहा कि उसने सुनवाई के लिए याचिकाओं को सूचीबद्ध कर लिया है।
हरियाणा राज्य औद्योगिक एवं बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड से संबंधित एक अलग मामले में मेहता द्वारा स्थगन का अनुरोध और इसे शुक्रवार को सूचीबद्ध करने का अनुरोध करने के बाद पीठ ने यह टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने छह सितंबर को बिहार में जाति सर्वेक्षण को हरी झंडी देने के पटना उच्च न्यायालय के एक अगस्त के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई तीन अक्टूबर तक टाल दी थी। शीर्ष अदालत ने सात अगस्त को बिहार में जाति सर्वेक्षण को हरी झंडी देने के पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 14 अगस्त तक के लिए टाल दी थी। इस संबंध में गैर सरकारी संगठन ‘एक सोच एक प्रयास' की याचिका के अलावा कई अन्य याचिकाएं भी दायर की गई हैं, जिनमें एक याचिका नालंदा निवासी अखिलेश कुमार की भी है जिन्होंने दलील दी है कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना संवैधानिक आदेश के खिलाफ है।
केंद्र सरकार को ही जनगणना करने का अधिकार: याचिकाकर्ता
अखिलेश कुमार की याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक आदेश के तहत सिर्फ केंद्र सरकार को ही जनगणना करने का अधिकार है। उच्च न्यायालय ने अपने 101 पन्नों के फैसले में कहा था, ‘‘हम राज्य की कार्रवाई को पूरी तरह से वैध पाते हैं, जो न्याय के साथ विकास प्रदान करने के वैध उद्देश्य से उचित अधिकार के अनुसार शुरू की गई है।'' उच्च न्यायालय द्वारा जाति सर्वेक्षण को ‘‘वैध'' ठहराए जाने के एक दिन बाद राज्य सरकार हरकत में आई और शिक्षकों के लिए जारी सभी प्रशिक्षण कार्यक्रमों को निलंबित कर दिया, ताकि उन्हें इस कार्य को जल्द पूरा करने में लगाया जा सके। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने 25 अगस्त को कहा था कि सर्वेक्षण पूरा हो चुका है और आंकड़े जल्द सार्वजनिक किए जाएंगे। मामले में एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील सी. एस. वैद्यनाथन ने आंकड़ा सार्वजनिक करने का विरोध किया था। उनका तर्क था कि यह लोगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा।