September 29, 2024

MP में सत्ता की राह मालवा निमाड़ से गुजरती, जिस दल ने जीता आदिवासी का मन उसकी बनी प्रदेश में सरकार

0

भोपाल

विधानसभा चुनावों के मद्देनजर मालवा-निमाड़ में आदिवासी वोटरों को प्रभावित करने के लिए हर पार्टी भरसक प्रयास कर रही है। पिछले तीन चुनावों की बात करें तो जिस दल ने मालवा-निमाड़ की आदिवासी सीटों पर कब्जा जमाया, उसकी ही सूबे में सरकार बनी है। 2008 में भाजपा ने प्रदेश में आरक्षित 47 में से 29 और 2013 में 31 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2018 में भाजपा को इनमें से 16 स्थानों पर ही संतोष करना पड़ा। कांग्रेस ने 30 स्थानों पर सफलता प्राप्त की और इस तरह प्रदेश में सत्ता में लौटी।

देश के 5 राज्यों में विधान सभा चुनाव का बिगुल बज गया है। मध्य प्रदेश में भी सभी राजनीतिक दल अपनी एडी चोटी का जोर लगाना शुरू कर चुके हैं। मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों की तैयारियों में मालवा-निमाड़ क्षेत्र दोनों प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा का फोकस एरिया बना हुआ है। मालवा और निमाड़ की अहमियत इस चुनाव में काफी ज्यादा है। इसकी वजह ये है कि इन सीटों पर जिनका कब्जा हो गया है। उन्हें भोपाल जाने का रास्ता आसान हो जाएगा। मध्य प्रदेश की 230 सदस्यों वाली विधानसभा में 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं।

प्रदेश की कुल सीटों में इनकी हिस्सेदारी 20.5 फीसदी है। देश की जनजाति की आबादी का 21 फीसदी हिस्सा मध्य प्रदेश में निवास करता है। जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित इन 47 सीटों में से सबसे अधिक 22 सीटें मालवा-निमाड़ में आती हैं। इसके बाद महाकौशल में 13, विंध्य में नौ और मध्य भारत में तीन सीटें आती हैं। इस हिसाब से मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में से 46.8 फीसदी मालवा-निमाड़ में पड़ती हैं।

पिछले चुनाव में मिले ये संकेत

मालवा-निमाड़ की ज्यादातर सीटें ग्रामीण क्षेत्रों की हैं। प्रदेश की कुल 230 सीटों में से एक चौथाई से ज्यादा ये 66 सीटें इंदौर और उज्जैन संभाग के 15 जिलों में हैं। 66 में से 22 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। पिछले तीन चुनावों की बात करें तो जिस दल ने मालवा-निमाड़ की आदिवासी सीटों पर कब्जा जमाया। उसकी ही सूबे में सरकार बनी है। 2008 में भाजपा ने प्रदेश में आरक्षित 47 में से 29 और 2013 में 31 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2018 में भाजपा को इनमें से 16 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस के खाते में 30 सीटें आई थी। इस तरह प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में लौटी।

कमलनाथ प्रदेश के मुखिया बने थे। हालांकि, बाद में कुछ विधायकों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थन करते हुए पार्टी छोड़ी और कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई। कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा था। छत्तीसगढ़ से अलग होने के बाद मालवा-निमाड़ किंगमेकर बनकर उभरा है। आंकलन से यही पता चलता है कि इस जोन में जिस पार्टी ने विजय का परचम फहाराया। उसे सत्ता की चाबी मिली है।

विंध्य पर कांग्रेस और BJP की नजर

विंध्य की 9 आदिवासी सीटों को साधने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई में शहडोल दौरा किया था। उन्होंने इस दौरान आदिवासियों से संवाद भी किया था। इसके बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने मोहनखेड़ा आकर सीधे-सीधे मालवा-निमाड़ की 22 आदिवासी सीटों के साथ-साथ अन्य 44 सीटों को साधने की कोशिश की।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *