चीफ जस्टिस ने कस दिया तंज, सरकार के सब फैसले ठीक ही हों तो अदालत की क्या जरूरत
नई दिल्ली
लोकतंत्र को सिर्फ चुनावी चश्मे से नहीं देखा जा सकता। यदि संसद और सरकार की ओर से लिए गए सारे फैसले लोकतांत्रिक ही हों तो फिर अदालतों की तो कोई जरूरत ही नहीं रह जाएगी। सेम सेक्स मैरिज के मामले में सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने यह टिप्पणी की। दरअसल केस की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के वकील ने कहा था कि अदालतें एजीबीटी कपल्स के अधिकारों पर फैसला नहीं दे सकतीं। ऐसा करना अलोकतांत्रिक होगा। इसी के जवाब में चीफ जस्टिस ने यह बात कही।
मुख्य न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा, 'यदि चुनी हुई सरकार के सभी फैसले पूरी तरह लोकतांत्रिक ही हों और मूल अधिकारों के उद्देश्य को पूरा करते हों तो फिर अदालतों की क्या जरूरत है, जिनका काम ही कानून की व्याख्या करना है। अदालत का तो काम ही यही है कि जब सरकार संवैधानिक मसलों पर गलती करे तो उसके फैसलों की समीक्षा करे।' उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में ही ऐसे लोकतंत्र की बात कही गई है, जिसमें सभी की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान यह नहीं कहता कि संवैधानिक लोकतंत्र का अर्थ सिर्फ चुनावी डेमोक्रेसी है।
दूसरे संस्थानों की भी अपनी भूमिका है और वे सरकार के फैसलों की समीक्षा कर सकते हैं। संविधान में लोकतंत्र की कोई संकीर्ण परिभाषा तय नहीं की गई है। यही नहीं उन्होंने समलैंगिक विवाह के मामले में केंद्र सरकार की राय को भी संकीर्ण बताया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को लेकर आपकी परिभाषा ठीक नहीं है और यह संकीर्ण मानसिकता है। उन्होंने कहा कि देश में शिक्षा का अधिकार कानून अदालत के दखल के बाद ही बना था और फिर इसे मूल अधिकार के तौर पर लागू किया जा सका।
गौरतलब है कि लंबी सुनवाई के बाद मंगलवार को अदालत ने समलैंगिक शादियों की मान्यता को लेकर फैसला दिया था। कोर्ट ने समलैंगिक शादियों की मान्यता की मांग खारिज करते हुए कहा था कि यह काम अदालत का नहीं है। हम संसद की तरह कानून नहीं बना सकते और ना ही संसद पर इसके लिए दबाव डाल सकते। हालांकि कोर्ट ने समलैंगिक शादियों की मान्यता को लेकर सरकार को कमेटी बनाने का सुझाव दिया है।