निकाय व पंचायत चुनाव में हार की समीक्षा कर रही बीजेपी, कल तक देना होगी रिपोर्ट
भोपाल
प्रदेश के सात नगर निगमों ग्वालियर, जबलपुुर, सिंगरौली, रीवा, मुरैना, कटनी, छिंदवाड़ा और जिला पंचायतों में मिली हार के कारण पता करने के लिए प्रदेश भाजपा की दो सदस्यीय टीमें इस समय दौरे पर हैं। प्रदेश संगठन ने इनसे 24 अगस्त तक रिपोर्ट देने के लिए कहा है। कई जिलों में समीक्षा के दौरान जब प्रदेश संगठन की टीम ने हार के कारण पूछे तो जिला अध्यक्षों और उनकी टीम द्वारा वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा को मूल कारण बताया गया है। रीवा समेत कई जिलों में तो सीधे तौर पर जिला अध्यक्षों को लेकर सवाल उठाए गए कि यह चाहते हैं कि पुराने नेता हारें और इनकी पूछ परख घटे ताकि नए नेताओं को चुनाव लड़ने का मौका मिल सके।
नगर निकाय और पंचायत चुनावों के बाद एक हफ्ते पहले भाजपा ने सभी सांसदों, विधायकों, जिला अध्यक्षों, जिला प्रभारियों की बैठक बुलाई थी जिसमें पार्टी के कार्यक्रमों की जानकारी देने के साथ प्रदेश संगठन ने कहा था कि जिन जिलों में पार्टी हारी है, वहां टीम भेजकर हार की वजह पता लगाएंगे और समीक्षा के बाद आगे की कार्यवाही की जाएगी। इसके बाद खासतौर पर उन नगर निगम क्षेत्रों के लिए टीम तय की गई है जहां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को जीत मिली है और सात नगर निगम भाजपा को खोने पड़े हैं। इसमें सिंगरौली नगर निगम में मिली हार सबसे अप्रत्याशित है। यहां पिछले दो दिनों से हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष आशुतोष तिवारी और पूर्व सांसद आलोक संजर पार्टी नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। इसके साथ ही कटनी में दिलीप पटौदिया और श्याम सुंदर शर्मा ने वहां के स्थानीय नेताओं से अलग-अलग संवाद कर हार के कारण पूछे हैं। मुरैना में टीम पहुंचने वाली है जबकि जबलपुर, छिंदवाड़ा के जिला अध्यक्षों ने टीम आने की जानकारी से इनकार किया है। रीवा में लता वानखेड़े और प्रभात साहू पहुंचे थे। हालांकि इन्होंने रीवा में सभी नेताओं से मुलाकात नहीं की है। कुछ नेताओं से मिलकर वापस लौटे हैं।
संगठन की अनदेखी और उपेक्षा के साथ प्रत्याशी चयन भी मुद्दा
समीक्षा के लिए पहुंचे नेताओं को जो रिपोर्ट स्थानीय नेताओं से संवाद के बाद मिल रही है उसमें संगठन की जिम्मेदारी संभाल रहे जिला अध्यक्ष और अन्य नेताओं द्वारा वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी को मुख्य वजह बताया जा रहा है। इनकी वरिष्ठ नेताओं से पटरी नहीं बैठने के कारण पूर्व विधायक, पूर्व सांसद व अन्य वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने खुलकर वैसा सपोर्ट नहीं किया जैसी जरूरत थी। इसके साथ ही कुछ जिलों में यह शिकायत आई है कि जिला अध्यक्ष चाहते हैं कि पुराने नेता हारें ताकि नए नेताओं को चुनाव में आने का मौका मिल सके। इसलिए भी वरिष्ठ नेताओं के साथ इनकी पटरी नहीं बैठ रही है। कुछ स्थानों पर प्रत्याशी चयन को लेकर भी विरोध की बात सामने आई है। सिंगरौली में तो खुलकर कहा गया है कि सामान्य सीट पर ओबीसी को टिकट देने से यहां के ब्राह्मण नाराज थे और इसी कारण पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है।