सेंट्रल बैंक पहली बार पहुंचे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, आने वाली है डराने वाली खबर!
बीजिंग
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देश चीन में सबकुछ ठीक नहीं है। देश का रियल एस्टेट इंडेक्स लगातार गिरावट के साथ साल 2009 के लेवल पर खिसक चुका है। इसमें ऑल टाइम हाई से 80 फीसदी गिरावट आ चुकी है। मंगलवार को देश के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पहली बार अचानक चाइनीज सेंट्रल बैंक पहुंच गए। इसके कुछ ही देर बाद चीन ने फिस्कल डेफिसिट रेश्यो को 3.0% से बढ़ाकर 3.8% कर दिया। साथ ही देश ने एक लाख करोड़ युआन के सॉवरेट बॉन्ड इश्यू करने को भी मंजूरी दे दी। चीन की सरकार ने रियल एस्टेट सेक्टर को संकट से उबारने के लिए कई कदम उठाए हैं। लेकिन कई संकेत इस बात के इशारा कर रहे हैं कि चीन में मंदी का खतरा लगातार बढ़ रहा है।
इस संकट की शुरुआत तो कुछ साल पहले तब हुई थी जब देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों में से एक एवरग्रेंड (Evergrande) ने पेमेंट में डिफॉल्ट किया था। एवरग्रेंड दुनिया में सबसे ज्यादा कर्ज में डूबी रियल एस्टेट कंपनी है। इस पर 300 अरब डॉलर से अधिक कर्ज है। इसका असर दूसरी रियल एस्टेट कंपनियों पर भी दिखा और देखते-देखते चीन का रियल एस्टेट सेक्टर गहरे संकट में आ गया। चीन की इकॉनमी पिछले दो दशक में तेजी से बढ़ी है। इसमें रियल एस्टेट सेक्टर की अहम भूमिका है। चीन की इकॉनमी में इस सेक्टर की करीब एक तिहाई हिस्सेदारी है। यही वजह है कि रियल एस्टेट संकट के कारण चीन की पूरी इकॉनमी के डूबने का खतरा है।
मंदी आई तो…
अमेरिका के बाद चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी है। पिछले करीब दो दशक से चीन दुनिया के ग्रोथ का इंजन बना हुआ है। दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां चीन में सामान बना रही हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से वहां से डराने वाली खबरें आ रही हैं। देश का रियल एस्टेट मार्केट गहरे संकट में है, एक्सपोर्ट गिर रहा है, बेरोजगारी चरम पर है और ग्रोथ धीमी पड़ गई है। अनिश्चितता के इस दौर में लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं और पैसे खर्च करने से बच रहे हैं। इससे कंज्यूमर स्पेंडिंग कम हो गई है। कई विदेशी कंपनियां चीन से अपना बोरिया-बिस्तर समेट रही हैं। साथ ही अमेरिका के साथ तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
सवाल यह है कि चीन में मंदी आई तो दुनिया पर क्या असर होगा? अगर चीन के लोगों ने अपने खर्च में कटौती की तो इससे ग्लोबल इकॉनमी भी प्रभावित होगी। जाहिर है कि इससे उन कंपनियों पर असर पड़ेगा जो चीन को सप्लाई करती हैं। ऐपल, फॉक्सवैगन और बरबरी जैसी सैकड़ों ग्लोबल कंपनियों की कमाई का मुख्य जरिया चीन का बाजार है। अगर चीन के लोग कम खर्च करेंगे तो इन कंपनियों का नुकसान होगा। इससे इन कंपनियों के सप्लायर्स और वर्कर्स पर असर होगा। हाल में नेस्ले ने अपनी एक फैक्ट्री बंद करने की घोषणा की थी। यह कंपनी चीन को बेबी फूड सप्लाई करती थी।
150 देशों के लिए मुश्किल
अमेरिका की क्रेडिट एजेंसी फिच ने हाल में कहा था कि चीन में सुस्ती से ग्लोबल ग्रोथ पर भारी पड़ सकती है। एजेंसी ने 2024 के लिए पूरी दुनिया के ग्रोथ अनुमान को घटा दिया। चीन ने अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर पिछले 10 साल में एक ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा खर्च किए हैं। उसने 150 से अधिक देशों को पैसा और टेक्नोलॉजी दी है। अगर चीन में आर्थिक समस्याएं बढ़ती हैं तो फिर वह इस निवेश से हाथ खींच सकता है। इससे इन देशों की भी मुश्किलें बढ़ेंगी।