चीन ओमान में मिलिट्री बेस खोलने जा रहा, अब खाड़ी में इस चाल से भारत-अमेरिका को घेरेगा ड्रैगन!
बीजिंग
ऐसा लगता है कि खाड़ी का क्षेत्र अब अमेरिका, भारत और चीन के बीच तनाव का बिंदु बनने वाला है। जो जानकारी आ रही है उसके मुताबिक चीन अब ओमान में भी अपना मिलिट्री बेस बनाने की कोशिशों में लग गया है। ऐसे समय में जब चीन खाड़ी में अपनी पकड़ को मजबूत करने में लग गया है, यह मिलिट्री बेस भारत के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन सकता है। इस बारे में अब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को भी जानकारी दी गई है। ओमान में अमेरिकी सैनिकों की काफी मौजूदगी है और यह देश खाड़ी में उसकी मौजूदगी को मजबूत बनाता है। साफ है न सिर्फ अमेरिका बल्कि भारत के लिए भी चीन एक बड़ी मुसीबत पैदा करने की तैयारी कर चुका है।
अमेरिका, चीन और ओमान खामोश
जो बाइडन को बताया गया है कि चीनी सैन्य अधिकारियों ने पिछले महीने ओमान के अपने समकक्षों के साथ इस मामले पर चर्चा की थी। ये वो अधिकारी थे जिन पर इस तरह के समझौते के लिए बड़ी जिम्मेदारी थी। बताया जा रहा है कि दोनों पक्ष आने वाले दिनों में और अधिक बातचीत के लिए सहमत हुए हैं। चीन के विदेश मंत्रालय ने इस पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है। जबकि व्हाइट हाउस ने भी चुप्पी साध ली है। अमेरिका में ओमान के दूतावास ने भी इस पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। चीन ने ओमान के डुक्म स्पेशल इकोनॉमिक जोन के पहले चरण में भी निवेश किया। यह मिडिल ईस्ट में तेल का सबसे बड़ा स्टोरेज होने वाला है।
मिडिल ईस्ट का स्विट्जरलैंड
ओमान में मिलिट्री बेस खोलना चीन की बाकी विदेशी मिलिट्री फैसिलिटीज का ही एक हिस्सा है। जिस तरह से उसने पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में लॉजिस्टिक्स सेंटर खोला है, उसी तरह से ही अब वह बाकी जगहों पर भी सैन्य मौजूदगी को बढ़ा रहा है। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन भी कई सालों से कहता आ रहा है कि चीन, यूएई, थाईलैंड, इंडोनेशिया और पाकिस्तान सहित एशिया के बाकी देशों सहित क्षेत्र में अधिक विदेशी सैन्य रसद सुविधाओं का निर्माण करना चाहता है। ओमान को कभी-कभी मध्य पूर्व का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह तटस्थता की नीति का पालन करता है और नियमित रूप से अमेरिका और ईरान के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है। साथ ही इसने अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी बनाए रखने और चीन के साथ संबंधों को बढ़ावा देने के बीच संतुलन बनाने की भी कोशिश की है।
भारत के 4 बेस, अमेरिका का अहम अड्डा
अगर भारत की बात करें तो ओमान में भारत के कुल चार मिलिट्री बेस हैं। इनमें से तीन नौसैनिक अड्डे हैं और एक एयरबेस है। भारत ने ओमान के रास अल हद में एक लिसिनिंग सेंटर बनाया है। लिसिनिंग सेंटर काफी अहम होता है। इस स्टेशन की मदद से कोई भी देश की दुश्मन की सीमा के निकट ध्वनि द्वारा गतिविधियों का पता लगाता है। साथ ही साथ इससे दुश्मन के इलेक्ट्रॉनिक कम्यूनिकेशन को ब्लॉक करने में भी मदद मिलती है। भारत के अलावा ओमान अमेरिका के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। ओमान में एक बेस अमेरिका के लिए एक बड़ी चुनौती होगा। अमेरिका की सेंट्रल कमांड कुवैत, बहरीन, कतर, सऊदी अरब और यूएई समेत पूरे क्षेत्र में तैनात सैनिकों की निगरानी करती है। अमेरिकी सिक्योरिटी प्रोजेक्ट के मुताबिक ओमान, फारस की खाड़ी का पहला देश था जिसने सन् 1980 में एक समझौते के साइन होने के साथ ही अमेरिका के साथ सैन्य साझेदारी की थी।