रेलवे का मास्टर प्लान तैयार चार-पांच साल में वेटिंंग टिकट की समस्या खत्म हो जाएगी
नईदिल्ली
बीते हफ्ते रेल यात्रियों की सुविधा से जुड़ी एक बड़ी खबर मीडिया में छा गई। किसी ने एजेंसी के हवाले से तो कई ने रेल मंत्रालय के अपने ‘करीबी सूत्रों’ के हवाले से खबर चलाई। खबर में बताया गया कि रेलवे ऐसा प्लान बना रहा है कि चार-पांच साल में वेटिंंग टिकट की समस्या खत्म हो जाएगी। यह खबर रेल मंत्री के एक बयान का मतलब निकालते हुए प्रसारित की गई। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना था कि चार-पांच साल में रेलवे की क्षमता 1000 करोड़ यात्रियों को सफर कराने लायक बनानी होगी और इसके लिए 3000 अतिरिक्त ट्रेनों की जरूरत होगी।
आंकड़ों पर नजर डालें तो 2015-16 से 2021-22 के बीच रेलवे में कुल 2132 नए लोकोमोटिव्स (इंजन) ही बन पाए हैं। कुल रेल कोचों की संख्या भी एक साल में 5000 ही बढ़ पाई है। अगर इंजन और कोच बनने की यही रफ्तार रही तो चार-पांच साल में 3000 नई ट्रेनें किसी सूरत में नहीं चल सकतीं। प्लान कितना व्यावहारिक है, यह आगे दिए गए और आंकड़ों से समझा जा सकता है। पहले थोड़ा बैकग्राउंड में चलते हैं और यह भी जान लेते हैं कि वेटिंंग टिकट का झंझट खत्म होने की बात कैसे और कहां से निकली।
ऐसे चली वेटिंंग लिस्ट खत्म होने की ‘खबर’
दरसअल रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संवाददाताओं के सामने अपनी दो प्राथमिकताएं गिनाई थीं। इनमें से एक था चार-पांच साल में यात्रियों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर 3000 नई ट्रेनें चलाने पर विचार। और, दूसरा था रेलगाड़ियों की यात्रा पूरी करने में लगने वाला समय कम करना।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक- रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने 16 नवंबर को रेल भवन में संवाददाताओं से कहा कि अभी रेलवे सालाना 800 करोड़ यात्रियों को सफर करा रहा है। चार-पांच साल में हमें 1000 करोड़ यात्रियों को सफर कराने की क्षमता विकसित करनी होगी, क्योंकि जनसंख्या बढ़ रही है। इसके लिए हमें 3000 अतिरिक्त ट्रेनों की जरूरत पड़ेगी।
वैष्णव ने यह भी कहा कि एक टारगेट यात्रा का समय कम करना है। उन्होंने बताया कि ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने और कम करने (accelerate and decelerate) में लगने वाला समय कम करके ऐसा किया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने एक तकनीक (‘पुश-पुल कॉन्फिगरेशन मोड’) को मददगार बताया और कहा कि रेलवे की कोशिश है कि अब जो कोच बनें, वे इस तकनीक से लैस हों।
…लेकिन मीडिया में किस रूप में आई खबर
मीडिया में लगभग सभी जगह इस खबर को इसी रूप में पेश किया गया कि 2027-28 तक वेटिंंग लिस्ट की समस्या खत्म हो जाएगी। हालांकि, सरकार की ओर से ऐसा कहीं नहीं कहा गया है। प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी)/ रेल मंत्रालय/रेल मंत्री के सोशल मीडिया (एक्स) अकाउंट, कहीं भी ऐसा कोई जिक्र नहीं है।
अब अंदाज लगाएं कि क्या संभव है पांच साल में 3000 ट्रेनें चलाना
पांच साल में 3000 ट्रेनें चलाना संभव हो पाएगा या नहीं, इसका अंदाज लगाने के लिए सरकार के कुछ पुराने वादों पर अमल की स्थिति और बुनियादी ढांचा (पटरी आदि) के विकास की रफ्तार पर नजर डालते हैं।
बुलेट ट्रेन हुई सालों देर
2017 में 14 सितंबर को भारत और जापान के प्रधानमंत्रियों ने मुंबई और अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की परियोजना का शिलान्यास किया था। पीआईबी के मुताबिक, इसे दिसंबर 2023 तक पूरा करना है। लेकिन, जून 2023 तक जमीन अधिग्रहण का पूरा काम भी नहीं हो पाया था। अश्विनी वैष्णव ने बताया था कि 430.45 हेक्टेयर में से जून 2023 तक 429.53 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत हुई है।
वंदे भारत का भी टारगेट पूरा नहीं
15 अगस्त, 2021 को लाल किले से भाषण देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी आने वाले 75 सप्ताह (यानि करीब डेढ़ साल) के भीतर 75 वंदे भारत ट्रेनें देश के हर कोने को आपस में जोड़ेंगी। लेकिन 24 सितंबर, 2023 तक 34 वंदे भारत ट्रेनें ही चलाई जा सकी हैं।
सवारी संख्या बढ़ने की क्या है रफ्तार
रेल मंत्री का कहना है कि अगले चार-पांच साल में जनसंख्या में बढ़ोतरी के मद्देनजर रेलवे को सालाना 800 करोड़ के बजाय 1000 करोड़ यात्रियों को सफर कराने की क्षमता बनानी होगी। लेकिन, आंकड़ों पर नजर डालें तो मुसाफिरों की संख्या की बढ़ोतरी की रफ्तार पिछले पांच सालों से लगभग स्थिर है। यह संख्या 2015-2016 में 810 करोड़ थी और 2019-20 में इससे थोड़ा कम (808 करोड़) ही रही। 2020-21 और 2021-22 के दो सालों में यह संख्या कुल 500 करोड़ से भी कम रही। हालांकि, इस कम संख्या के पीछे एक बड़ी वजह कोविड महामारी थी।
वर्ष | शहर | गांव | कुल |
1980-81 | 2000 | 1613 | 3613 |
1990-91 | 2259 | 1599 | 3858 |
2000-01 | 2861 | 1972 | 4833 |
2010-11 | 4061 | 3590 | 7651 |
2015-16 | 4459 | 3648 | 8107 |
2016-17 | 4566 | 3550 | 8116 |
2019-20 | 4597 | 3489 | 8086 |
2020-21 | 917 | 333 | 1250 |
2021-22 | 2169 | 1350 | 3519 |
यात्रियों की बढ़ोतरी (संख्या मिलियन में, एक मिलियन = दस लाख)
3000 नई गाड़ियां संभव हैं क्या
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव कहते हैं कि उनका प्लान चार-पांच साल में 3000 नई गाड़ियां चलाने का है। पर बीते 35 सालों में लोकोमोटिव्स की संख्या किस रफ्तार से बढ़ी है, उस पर नजर डालें तो सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि चार-पांच साल में 3000 नई गाड़ियां चलाना व्यावहारिक रूप से संभव है या नहीं?
वर्ष | स्टीम इंजन | डीजल इंजन | इलेक्ट्रिक इंजन | कुल |
1950-51 | 8120 | 17 | 72 | 8209 |
1960-61 | 10312 | 181 | 131 | 10624 |
1970-71 | 9387 | 1169 | 602 | 11158 |
1980-81 | 7469 | 2403 | 1036 | 10908 |
1990-91 | 2915 | 3759 | 1743 | 8417 |
2000-01 | 54 | 4702 | 2810 | 7566 |
2010-11 | 43 | 5137 | 4033 | 9213 |
2015-16 | 39 | 5869 | 5214 | 11122 |
2016-17 | 39 | 6023 | 5399 | 11461 |
2019-20 | 39 | 5898 | 6792 | 12729 |
2020-21 | 39 | 5108 | 7587 | 12734 |
2021-22 | 39 | 4747 | 8429 | 13215 |
पटरी भी तो हो
नई गाड़ियों के लिए पटरी भी होनी चाहिए। भारत में 1980-81 में कुल 61,240 किलोमीटर लंबा रेल ट्रैक था। 2016-17 में यह 66,918 किलोमीटर हुआ और 2021-21 में 68,043 किलोमीटर हो गया। इस हिसाब से छह साल (2016-17 से 2021-22) में केवल 1,125 किलोमीटर का ही विस्तार हुआ।
सरकार कह रही है कि 2021-22 में 2909 किलोमीटर और 2021-22 में 5243 किलोमीटर रेल लाइनें बिछाई गईं (दोहरीकरन और गेज परिवर्तन सहित)। अगर पटरी बिछाने की औसत रफ्तार यही मान ली जाए तो भी 3000 नई गाड़ियों के लिहाज से यह काफी नहीं होगा।
सोर्स- इंडियन रेलवे