November 24, 2024

27 अगस्त को शनि और कुशोत्पाटिनी अमावस्या, मिलती है पितृ दोष से मुक्ति

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भोपाल

 27 अगस्त को शनि अमावस्या के साथ कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी पड़ रही है। वर्ष भर में पितरों के नाम श्राद्ध-पिंडदान के लिए जो तिथि उपयुक्त बताई जाती है, उसमें कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी एक है। इस दिन नदी अथवा जल राशि में पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध कराना उत्तम माना गया है। इससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। ज्योतिषियों के अनुसार शास्त्रों में उल्लेख है कि पितृगण इस अमावस्या की तृप्ति से प्रसन्न् होकर सपरिवार प्रगति पथ पर अग्रसर रहने का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

27 को बन रही उदया तिथि

 भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि 26 अगस्त शुक्रवार की सुबह 11 बजकर 24 मिनट से शुरू होगी और 27 अगस्त शनिवार की दोपहर 12 बजकर 46 मिनट तक रहेगी। चूंकि अमावस्या तिथि का सूर्योदय (उदया तिथि) 27 अगस्त को है इसलिए इसी दिन ये तिथि मानी जाएगी। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से निसंतानों को संतान की प्राप्ति होती है। इसके अलावा संतान की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य का भी आशीर्वाद मिलता है। कुशोत्पाटिनी अमावस्या का यह व्रत और पूजन केवल विवाहित महिलाएं ही करती हैं।

ये बन रहे योग

 इस दिन पद्म और शिव नाम के दो शुभ योग भी बन रहे हैं। पद्म योग में हमेशा आनंद, सुख, ऐश्वर्य पाने वाला, शुभ कार्य में संलग्न, युवा अवस्था में बड़ों के संपर्क में आकर लाभ पाने वाला होता है। वहीं शिव योग में शक्ति एवं ऊर्जा प्रदान करने वाला होता है। मनुष्य के भीतर साहस एवं शौर्य की भावना समाहित रहती है। इसके प्रभाव स्वरूप व्यक्ति विजय एवं सफलता को प्राप्त करता है।

कुश ग्रहणी अमावस्या

कुश का अर्थ होता है (घास) इस वजह से इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन को साल भर धार्मिक कार्यों के लिए कुश को इकट्ठा कर लिया जाता है। (ॐ हूं फट्) मंत्र से कुश ग्रहण करना चाहिए। पुरुषोत्तम मास को छोड़कर वर्ष भर में कुल बारह अमावस्या होती हैं, जिनका अलग-अलग नाम है। भाद्रपद मास की अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या अथवा कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहा गया है। इसे पिठोरी अमावस्या या पोला पिठौरा भी कहा जाता है। विष्णु पुराण से स्पष्ट होता है कि देवताओं द्वारा चंद्रमा का नित्य अमृतपान करते रहने से चंद्रदेव की कलाएं क्षीण होती हैं और फिर अमावस्या तक पूर्ण क्षीण होते ही सूर्य देवता शुक्ल प्रतिपदा से चंद्रमा को पुन: पोषण कर पुष्ट कर देते हैं। फिर आधे माह के एकत्र अमृत तत्व का पान देवता गण करते हैं। इसके बाद पुन: सूर्य देवता चंद्रमा को पुष्ट कर देते हैं। जिस समय दो कलामात्र अवशिष्ट चंद्रमा सूर्य मंडल में प्रवेश करके उसकी अमा नामक किरण में निवास करता है, वही तिथि अमावस्या कहलाती है।

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