राजनाथ सिंह का राजस्थान सीएम फॉर्मूला क्या हो सकता है, इसकी चर्चा के पीछे की बिहार वाली कहानी
जयपुर.
लोकसभा चुनाव आने वाले हैं। इसके पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में तीन जगह स्पष्ट बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। इनमें से दो, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के लिए मुख्यमंत्री का नाम तय हो चुका है। मध्य प्रदेश में 'मोदी की गारंटी' बनाम 'लाडली बहना' में जीत गारंटी की हुई। आज राजस्थान की बारी है और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की भूमिका को लेकर बिहार में गजब की गहमागहमी है।
कहा जा रहा है कि मध्य प्रदेश में डॉ. मोहन यादव को सीएम बनाकर बिहार की सबसे बड़ी 'यादव' आबादी को भाजपा ने साथ रखने का संदेश दिया है, लेकिन बिहार भाजपा के अंदर सोमवार से ही ज्यादा चर्चा राजनाथ सिंह की हो रही है। क्यों? इसके लिए वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद का सीन याद करना होगा। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में भारतीय जनता पार्टी ने जनता दल यूनाईटेड के साथ मिलकर जनमत हासिल किया। लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान की सेंध के कारण बतौर पार्टी जदयू तीसरे नंबर पर ही। सत्ता हासिल करने वाले गठबंधन में भाजपा का कद सबसे बड़ा था, हालांकि एक पार्टी के हिसाब से सबसे बड़ा राष्ट्रीय जनता दल का कद था। चूंकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को सरकार बनाने के लिए जनमत मिला था और भाजपा इसमें मजबूती के साथ उभरी थी तो अंदर से आवाज उठ रही थी कि मुख्यमंत्री भाजपा का हो। लेकिन, फिर बात आयी कि एनडीए ने नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ा है, इसलिए उन्हें कायम रखा जाए। भाजपा को डिप्टी सीएम देना था। सीएम नीतीश कुमार अपने साथ भाजपा के कोटे से पुराने डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी को साथ रखना चाहते थे। लेकिन, भाजपा के अंदर कई तरह की बातें थीं। एक यादव भी दौड़ में थे, एक दलित भी। लेकिन, सबसे बड़ा नाम सुशील मोदी का था। फैसले के लिए राजस्थान की तरह ही राजनाथ सिंह को असल जिम्मेदारी दी गई।
फिर क्या किया था राजनाथ सिंह ने
राजस्थान में सीएम का पद फंसा है और इसमें सबसे बड़ा सवाल वसुंधरा राजे सिंधिया को लेकर उठ रहा है। ठीक इसी तरह की स्थिति बिहार में सुशील कुमार मोदी को लेकर थी। मोदी के लिए माहौल बाकायदा तय सीएम नीतीश कुमार भी बना रहे थे। प्रदेश भाजपा के अंदर उनका खुलकर विरोध नहीं हो रहा था, जैसे अभी वसुंधरा का खुला विरोध कोई नहीं करना चाह रहा है। तब राजनाथ सिंह पटना पहुंचे। पहुंचकर उन्होंने राज्य अतिथिशाला होकर भाजपा कार्यालय आने और वहां पर्ची निकालने की बात कही। गुप्त पर्ची के जरिए जानना था कि भाजपा के अंदर सुशील कुमार मोदी के पक्ष और विपक्ष में हैं। भाजपा कार्यालय में पर्ची की गहमागहमी थी, लेकिन राजनाथ सिंह ने यहां पर्ची की प्रक्रिया पूरी नहीं की। सीएम आवास का रुख किया तो कुछ देर बाद अंदर से खबर निकली कि सुशील मोदी इस दौड़ से गायब हो गए हैं। भाजपा के साथ जनादेश लेकर भी नीतीश बाद में महागठबंधन के हो लिए तो कहा गया कि सुशील मोदी के हटने का यह नतीजा है, लेकिन अबतक यह बात सामने नहीं आयी कि पर्ची निकालने की बात कहकर बगैर ऐसा कुछ किए सीधे सीएम को अपने पुराने डिप्टी सीएम का मोह छोड़ने को लेकर राजनाथ सिंह ने क्या और कैसे समझाया? आज बारी राजस्थान की है। बिहार भाजपा में ठीक तीन साल पहले का यह किस्सा खूब चल रहा है।