बच्चे बड़ों का ही अनुसरण करते हैं: मैथिलीशरण भाई
रायपुर
श्री रामकिशोर विचार मिशन द्वारा मैक कालेज आॅडिटोरियम में श्रीराम कथा प्रवचन में भरत चरित्र पर केंद्रित कथा सार के लिये रायपुर पहुंचे श्री रामकिंकर महाराज के परम शिष्य स्वामी मैथिलीशरण भाई जी ने पत्रकारों के साथ चर्चा करते हुए कहा कि बच्चे बड़ों का ही अनुसरण करते हैं । आज यदि बच्चे धर्म से भगवान से दूर हो रहें हैं तो उसका एकमेव कारण स्वंय बच्चों के पालक हैं। बच्चे जो देखते हैं वे सीखते हैं,जो करते हैं उसको आत्मसात करते हैं। केवल बताने मात्र से बच्चे सब कुछ सीख जायें ऐसा नहीं होता पालकों को स्वंय वैसा करते हुए बच्चों को शिक्षित करना होगा तभी उन्हें हम भगवान धर्म संस्कृति से जोड़ पायेंगें।
भाई जी ने कहा कि हम सब सनातनी है जो बिना सनातन को जाने उसकी व्याख्या करता है वह सही अर्थों को नहीं समझता। पृथ्वी, जल आकाश, प्रकाश वायु ये पांच तत्व ही सनातन धर्म है, जिसका उपयोग हर व्यक्ति करता है इनके रूपों और स्वरूपों को मानना समझना ही सनातन धर्म है।भाई जी ने कहा कि कल से प्रारंभ होने वाली श्रीरामकथा भरत चरित्र पर केन्द्रित है। भरत के बिना राज्य की कल्पना नही की जा सकती। भगवान का आदर्श भरत हैं,सेवा का आदर्श लक्ष्मण हैं सेवा व आदर्श दोनों का स्वरूप हनुमान जी हैं भगवान श्रीराम ने इन्ही तीनों पर केंद्रित हो कर रामराज्य की स्थापना व संचालन किया। उन्होंने कहा कि बिना ग्रंथों को पढ़े प्रवचन नहीं हो सकता ग्रंथों में लिखी बातों को और उनके अर्थों को समझना होता है। रामचरित मानस सब ग्रंथो का रस है इसमें न बीज है,न गुदा, न छिलका है इस रस को पीने मात्र से मनुष्य का जीवन सार्थक हो जाता है।
अयोध्या में राममंदिर रामलला के प्राण प्रतिष्ठा आमंत्रण पर पूछे गये सवाल के जवाब में भाई जी ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा की भगवान श्रीराम यह कार्य उन्हीं से कराना चाहते थे उन्होंने लोगों के ह्रदय में भगवान श्री राम की स्थापना कर दी। उन्होने स्कूली पाठ्यक्रम में भी रामचरित मानस और श्रीमद्भागवत गीता शुरू किये जाने पर अपनी सहमति जताई। उन्होंने कहा कि आज के दौर में लोग इसलिये दुखी हैं क्योंकि वे वर्तमान की अवहेलना कर रहें हैं, भूतकाल की पूजा कर रहे और भविष्य की कल्पना कर रहे है। दूसरों से अपनी तुलना करते हैं जिससे वे मानसिक रोग से ग्रसित हो रहे हैं दूसरों से तुलना बंद कर जो है उसमें संतोष करें,हम यही मानसिकता का रोग बच्चों को भी परोस रहें हैं जिसके परिणाम कभी सुखद व आनंदमयी नहीं हो सकते।