छिंदवाड़ा के गोटमार मेले में 330 लोग घायल, तीन नागपुर रेेफर किया
पांढुर्णा
धारा 144 लगाने और शासन के तमाम प्रयासों के बाद भी हर साल की तरह इस साल भी पांढुर्णा में गोटमार मेले में खूनी खेल खेला गया। परंपरा के नाम पर हुई इस पत्थरबाजी के दौरान पुलिस और प्रशासन की टीम भी मौजूद थी, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी वो पत्थर फेंकते लोगों के सामने बेबस नजर आए।
विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला शनिवार को मां चंडी की पूजा अर्चना के साथ शुरू हुआ। पांढुर्णा में जाम नदी के किनारे हुए गोटमार मेले में पांढुर्णा और सावरगांव पक्ष के बीच जाम नदी के दोनों छोर से पथराव हुआ। जिसमें 330 लोग घायल हो गए, जबकि तीन लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। पांढुर्णा निवासी निखिल डबरे के पैर में फ्रैक्चर हो गया, वहीं फकीर लुक्या सिंह का पैर फ्रेक्चर हो गया। मेले में सबसे पहले सुबह पलाश के पेड़ रूपी झंडे को पांढुर्णा और सावरगांव का विभाजन करने वाली जाम नदी में मजबूती से गाड़ दिया गया। जिसके बाद सुबह 11 बजे से पत्थरबाजी का दौर शुरू हुआ, दोपहर 3.40 बजे जब पांढुर्णा की टीम ने झंडा तोड़ा, इसके बाद मेले के समापन की विधिवत घोषणा की गई। खिलाड़ियों के उपचार के लिए पांढुर्णा और सावरगांव दोनों ओर मेडिकल कैंप लगाए गए थे, जहां उनका उपचार किया गया। गौरतलब है कि वर्षों से चली आ रही इस परंपरा में अब तक 13 लोगों की जान जा चुकी है। हजारों की संख्या में लोग घायल हो चुके हैं। मानवाधिकार संगठन भी इस मेले पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर चुके हैं, पोला पर्व के साथ ही पांढुर्णा में गोटमार शुक्रवार को देर शाम ही शुरू हो गया था। जिसमें कुछ लोग पत्थर मारते नजर आए। हर साल जिद और जुनून के साथ हजारों लोग इस खेल में शामिल होते हैं। ग्रामीण खुद यहां पत्थर एकत्रित करते हैं ताकि एक-दूसरे पर फेंक सके।
ऐसे होती है गोटमार मेले की शुरुआत
जाम नदी में चंडी माता की पूजा के बाद साबर गांव के लोग पलाश के कटे पेड़ को नदी के बीच लगाते हैं। इसके बाद दोनों गांव पांदुर्णा और साबर गांव के लोगों के बीच पत्थरबाजी होती है। साबर गांव के लोग पलाश का पेड़ और झंडा नहीं निकालने देते, वे इसे लड़की मानकर रक्षा करते हैं। वहीं पांदुर्णा के लोग पत्थरबाजी कर पलाश का पेड़ कब्जे में लेने का प्रयास करते हैं। अंत में झंडी तोड़ लेने के बाद दोनों पक्ष मिलकर चंडी मां की पूजा कर इस गोटमार को खत्म करते हैं।
अब तक जा चुकी है 13 लोगों की जान
गोटमार के दौरान अब तक हुई मौतों की जानकारी यहां के बड़े-बुजुर्ग बड़ी सहजता के साथ देते हैं। उनका आंकड़ा प्रशासनिक रिकॉर्ड के आंकड़े से काफी अधिक है। प्रशासनिक रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 1995 से लेकर वर्ष 2019 तक इस खूनी खेल में 13 लोग काल के गाल में समा चुके हैं। इन मृतकों के परिजन आज भी गोटमार देखकर सहम जाते हैं। इस परंपरा को निभाने में कुछ ने अपनी जिंदगी खो दी तो कईयों ने हाथ-पैर, आंख खो दिए। इन आंकड़ों के बाद भी हर साल दोगुने उमंग और उत्साह के साथ गोटमार मेले का आयोजन होता है।