अपने आप को जान लेना ही भगवान को जान लेना है : मैथिलीशरण भाईजी
रायपुर
अपने आप को जान लेना ही भगवान को जान लेना है। जो लोग यह कहते है कि भरत की वाणी कठिन है तो ऐसे लोगों ने न तो अपने को जाना है और न राम को जाना है। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसके जीवन में प्रतिकूल परिस्थिति न आया हो। प्रेम में अनुबंध होता ही नहीं, प्रेम में तो केवल संबंध होता है, जिस दिन अपने में दोष और अपूर्णता और भगवान में पूर्णता देखना सीख लिया तो जीवन धन्य हो जाएगा।
मैक कॉलेज आॅडिटोरियम में श्रीराम कथा प्रसंग में भरत चरित्र की व्याख्या को आगे बढ़ाते हुए मैथिलीशरण भाई जी ने कहा कि भगवान के प्रति भक्तिभाव का जो लोग समीक्षा करते है वह स्वार्थ है, परमार्थ नहीं। मानस में बताया गया है कि प्रतिकूल परिस्थितियां भगवान के भक्त भरत और विभीषण पर कैसे आई? संसार में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होता जिसके जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियां न आई हो, फिर भी हर स्थिति में भगवान की स्मृति न खोने वाला सच्चा भक्त है। इतिहास जो होता है वो पोस्टमार्टम करता है, पुराण आॅपरेशन करते है और कथा भूत को वर्तमान बना देता है। कथा जीवन में हमारा परम सत्य है और जिस दिन लक्ष्य की प्राप्ति हो गई तो समझो कथा में प्रवेश हो गया।
प्रेम में अनुबंध नहीं होता, केवल संबंध होता है। लकड़ी की पादुका पाकर भी भरत जी प्रसन्न हो गए इतना कि पादुका में साक्षात भगवान को अनुभव कर रहे है। अहम से मुक्त व्यक्ति अपनी बात मनवाने के लिए न धरना देते है, न आग्रह और न प्राण देने की बात कहते है। भरत जी ने भी चित्रकूट में भगवान राम से अयोध्या लौटने के लिए ऐसी कोई बात नहीं कही। जहां श्रद्धा और समर्पण रहता है ऐसे लोग अपनी मान्यता को भी 10 इंच पीछे छोड़ देते है।
भाईजी ने भरत को भगवान राम की बांसुरी बताया है। जो राम बोलवायेंगे वही भरत बोलेगा। लक्ष्मण, केंवट, भरत जैसे पात्र प्रेम के साक्षात स्वरुप है। ज्ञान धर्म ग्रंथों से पढ़ा जाता है, पढ़ाया जाता है, उससे भी ऊपर उठ जाए तो यह परम बल है। जो नकारात्मक सोचेगा उसका अंत भी वैसा ही होगा, जो सकारात्मक है उस व्यक्ति के अंदर नकारात्मकता कभी नहीं आएगा। गुण-दोष आंखों से पता चल जाता है, जब कोई प्रेम के अनुबंध में अपने आप को श्रेष्ठ दिखाने की चेष्टा करता है तो विवेक को सावधान कर दीजिए, आज्ञा देने वाला माता, पिता या गुरु अपने किसी पूर्व संस्कार का वसीभूत तो नहीं है। आपके दोष या कमी को जो सार्वजनिक तौर पर बताएगा व आपका हितैषी या शुभचिंतक नहीं है।
भाईजी ने बताया कि पंचतत्व के आधार पर अपना जीवन यापन करें। सबके प्रति हमारा दायित्व है सूर्य की तरह प्रकाश, चंद्रमा की तरह शीतलता और वायु की तरह हवा प्रदान करें। परिवार में सबका ध्यान रखो। राम की तरह मुखिया होगा तो राम राज्य बनेगा और धृतराष्ट्र की तरह होगा तो महाभारत होगा।