November 12, 2024

भाजपा गोलवलकर-सावरकर के हिंदुत्व पर ही निर्भर नहीं,यह बात कांग्रेस को जल्दी समझनी होगी

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नई दिल्ली
 हाल फिलहाल के प्रयासों को देखा जाए तो राहुल गांधी की ओर से भारत जोड़ो यात्रा की मुहिम पार्टी के लिए एक अच्छी शुरुआत मानी जा सकती है। इस यात्रा का मकसद भाजपा के वैचारिक प्रभुत्व को चुनौती देना है। भारत जोड़ो यात्रा के लिए कांग्रेस कुछ आकर्षक नारे लेकर आई है और इसे जनता की मुहिम बनाने की कोशिश है। इस प्रकार के प्रयास का अपना राजनीतिक महत्व है। भारत जोड़ो यात्रा के जरिए पुरानी धर्मनिरपेक्ष पार्टी की ओर से 2014 के बाद से यह पहला सकारात्मक संकल्प है। इस मुहिम का कितना असर होगा इसको लेकर कुछ भी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी। हालांकि इसके जरिए उन फैक्टर्स को जांचने का मौका मिलेगा जिसके जरिए भारतीय राजनीति पर बीजेपी ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया है। साथ ही विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस को भी यह समझने की जरूरत है कि बीजेपी सिर्फ गोलवलकर और सावरकर के सहारे ही आगे नहीं बढ़ रही है।

हिंदुत्व की राजनीति को लेकर गैर बीजेपी दलों का तर्क
इस संबंध में दो मूल बातें हैं न्यू इंडिया और हिंदुत्व की राजनीति में इसकी संवैधानिकता दूसरा भारत का विचार। गैर-भाजपा दल अक्सर हिंदुत्व की राजनीति की आलोचना करते हैं। उनकी ओर से यह तर्क दिया जाता है कि यह एक संकीर्ण दिमाग वाली राजनीति है जो सांप्रदायिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है। जो देश की धार्मिक और सांस्कृतिक बहुलता को समायोजित करने में असमर्थ है। इसे सही ठहराने के लिए सावरकर की हिंदुत्व पर किताब और और गोलवलकर के विचार से जोड़ा जाता है।

विपक्षी दल गांधी, नेहरू और आम्बेडकर के लेखन का हवाला देते हुए यह धारणा बनाते हैं कि वे जिस भारत के विचार का पालन करते हैं वह ऐतिहासिक रूप से मान्य और राजनीतिक रूप से समझने योग्य है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो गैर-बीजेपी दल इन राजनीतिक हस्तियों से आगे निकल नहीं पाते और भविष्य की कोई राजनीतिक पिक्चर पेश नहीं करते।

BJP सिर्फ सावरकर-गोलवलकर के हिंदुत्व पर निर्भर नहीं
दूसरी ओर, भाजपा जो हिंदुत्व की राजनीति कर रही है लेकिन इसके साथ ही बदली हुई परिस्थितियों के हिसाब से इसमें कई बदलाव भी कर रही है। न्यू इंडिया की बात उसका एक अच्छा उदाहरण है। पीएम मोदी ने इसे पहली बार 2017 के स्वतंत्रता दिवस भाषण में एक राजनीतिक नारे के रूप में पेश किया। बीजेपी ने 2018 में आधिकारिक तौर पर न्यू इंडिया को एक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया।

इस पहल में अधिक से अधिक जनता की भागीदारी हो इसके लिए अभियान चलाया। नीति आयोग ने एक दिलचस्प दस्तावेज, न्यू इंडिया@75 के लिए रणनीति तैयार की। इस योजना पर कैसे आगे बढ़ना है यह उसका फ्रेमवर्क था। इससे पता चलता है कि भाजपा पूरी तरह से सिर्फ सावरकर-गोलवलकर के हिंदुत्व पर ही निर्भर नहीं है। बीजेपी की ओर से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अपनी घोषित विचारधारा की रूपरेखा का विस्तार करने के लिए नए विचारों को लाने का एक प्रयास है।

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