मकर संक्रांति से हमें क्या सीखना चाहिए? _गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर_
हमारे देश में हर प्रांत और हर त्यौहार को किसी न किसी पुराण से या इतिहास से जोड़ा गया है। इन सबका उद्देश्य यही है कि जीवन को उत्सव बनाएँ और प्रकृति का संरक्षण करें। यह सारी प्रकृति आपके लिए एक वरदान है। ये पेड़-पौधे, फल-फूल, पत्ते सभी हमारे लिए एक वरदान हैं। मान लीजिये आप एक रेगिस्तान में हैं और वहाँ कुछ भी नहीं है, तो जीवन कैसा रहेगा? मगर प्रकृति ने कुछ ऐसा किया है कि रेगिस्तान में भी इधर-उधर कुछ जल के स्रोत हैं, जहां जीवनदान के लिए पानी है, पेड़-पौधे हैं। सभी पर्व प्रकृति के प्रति धन्यभागी होने का अवसर हैं।
मकर संक्रांति के दिन हम सूर्य देवता का स्मरण करते हैं, उनकी आराधना करते हैं तथा उनको कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। इस समय ठंड कम होने लगती है । मकर संक्रांति विशेष रूप से वसन्त ऋतु के आगमन की सूचना देती है ।
एक वर्ष में बारह संक्रांतियां होती हैं। वर्ष में ये बारह दिन होते हैं जब भगवान सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्यदेव मकर रेखा का संक्रमण करते (काटते) हुए उत्तर दिशा की ओर अभिमुख हो जाते हैं , इसे ही उत्तरायण कहा जाता है। उत्तरायण को देवत्व का काल माना जाता है। वैसे तो पूरे वर्ष को शुभ माना जाता है, लेकिन इस अवधि को थोड़ा अधिक शुभ माना जाता है।
एक कहावत है- ‘गुड़ और तिल खाओ, मीठी बोली बोलो’। मकर संक्रांति पर हम तिल और गुड़ का आदान-प्रदान करते हैं। आपस में आदान प्रदान करना उत्सवों का अभिन्न अंग है, और यह केवल भौतिक आदान-प्रदान नहीं है बल्कि ज्ञान का आदान-प्रदान भी है।
छोटे-छोटे तिल हमें इस विशाल सृष्टि में हमारी तुच्छता की याद दिलाते हैं। यह भावना कि ‘मैं कुछ भी नहीं हूँ’ अहंकार को समाप्त कर देती है और विनम्रता लाती है। गुड़ मिठास फैलाने का प्रतीक है। तिल ऊपर से काला है और भीतर से श्वेत। यदि ये बाहर से श्वेत और भीतर से काला होता तब बात कुछ और होती। आज तिल और गुड़ मिल कर हमें ये सन्देश दे रहे हैं कि भीतर से उज्जवल (शुद्ध) रहें। इस दिन तिल, गन्ना, मूँगफली, धान आदि जो भी नई फसल आती है, उसे सबके साथ बाँटते हैं । मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी और मीठा चावल बनाकर सबको बांटते हैं। मकर संक्रांति के अगले दिन गाय का भी सम्मान करते हैं।
कोई भी उत्सव बिना स्नान के नहीं होता । तो मकर संक्राति के दिन जो लोग गंगा जी के पास रहते हैं, वे गंगा जी में स्नान करते हैं। और जहां गंगा जी नहीं हैं, वे समझते हैं कि उनके घर में ही गंगा जी हैं । ज्ञान की गंगा में स्नान करें । तब न केवल आप तर जायेंगे, बल्कि आपके पूर्वज भी उससे तर जाएँगे। ज्ञान से सभी तर जाते हैं। जब हम ध्यान करते हैं, लोगों को पीढ़ी दर पीढ़ी उसका सुकून मिलता है। जब हम ज्ञान में होते हैं, इसका प्रभाव सिर्फ हमारे तक सीमित नहीं है, वह हमारे आगे वाली पीढ़ियों में तो होता ही है, बल्कि हमारे पूर्वजों पर भी इसका प्रभाव होता है। इस मकर संक्रांति पर अपने भीतर की मिठास सबके साथ बाँटें।