November 28, 2024

जैश-अल अदल, जिसके ठिकानों पर पाक में घुसकर ईरान ने बोला हमला

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इस्लामाबाद

पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश अल-अदल के दो ठिकानों पर ईरान ने हमला किया है। पाकिस्तान ने इसे हवाई क्षेत्र का उल्लंघन मानते हुए इसकी कड़ी निंदा की है। साथ ही उसने गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी जारी की है। आपको बता दें कि पाकिस्तान में यह हमला ईरान द्वारा इराक और सीरिया में इसी तरह के हमले किए जाने के एक दिन बाद किया गया है। ईरान ने जिस जैश अल-अदल सुन्नी आतंकवादी समूह पर हमला किया है वह मुख्य रूप से पाकिस्तान से अपनी गतिविधियों को अंजाम देता है।

जैश उल-अदल को जैश अल-अदल के नाम से भी जाना जाता है। यह सुन्नी सलाफी अलगाववादी आतंकवादी संगठन है। यह मुख्य रूप से दक्षिणपूर्वी ईरान में संचालित होता है। यहां सुन्नी बलूचियों की पर्याप्त संख्या है और पाकिस्तान के साथ इसकी एक खुली सीमा भी है। इस समूह ने ईरान में सैन्य कर्मियों के खिलाफ कई हमलों की जिम्मेदारी ली थी। इस समूह का दवा है कि वह सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत की स्वतंत्रता और बलूच लोगों के अधिकारों के लिए लड़ रहा है।

इस समूह का संबंध अंसार अल-फुरकान के साथ भी है, जो कि ईरान में सक्रिय है और ईरानी बलूच सुन्नी सशस्त्र ग्रुप है। सलाउद्दीन फारूकी जैश उल-अदल का वर्तमान प्रमुख है। उसके भाई अमीर नरौई को अफगानिस्तान में तालिबान ने मार डाला था।

पाकिस्तान के इन हमलों से बौखलाने की एक वजह ये भी है कि जैश अल अदल को पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई का खास माना जाता है। जैश अल अदल पर हमलों के बाद कई लोग पाक की जेल में बंद कुल भूषण जाधव को भी याद कर रहे हैं क्योंकि जाधव को ईरान से पाक लाने वाले अदल के ही आतंकी थे।

जैश अल अदल संगठन पहले जुंदल्लाह के साथ ही था, बाद में यह अलग हो गया। यह एक सुन्नी इस्लामी समूह है। इसका शिविर पाकिस्तान के बलूचिस्तान के हरनाई में स्थित हैं। जुंदल्लाह और जैश अल अदल का पाकिस्तान की आईएसआई के साथ घनिष्ठ संबंध है। जुंदल्लाह और जैश अल अदल के लोगों ने ही भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव का ईरान से अपहरण किया था और उनको आईएसआई को सौंप दिया था। कुलभूषण जाधव को ईरान के चाबहार से किडनैप किया गया था और जैश अल अदल उनको लेकर पाकिस्तान पहुंचा। इसके बाद पाकिस्तानी एजेंसियों ने जाधव को जासूसी मामले में फंसाया और अदालत ने मौत की सजा सुना दी। बाद में जाधव का मामला इंटरनेशनल कोर्ट तक पहुंचा। जाधव अभी भी पाकिस्तान की जेल में बंद है। ऐसे में कई लोगों ने सोशल मीडिया पर कहा है कि ईरान के जैश अल अदल पर हमले उसको जाधव के साथ की गई ज्यादती की सजा हैं। इतना ही नहीं पाकिस्तान ने जैश उल-अदल का इस्तेमाल ईरान के खिलाफ भी किया है। ईरानी अधिकारियों ने बीते कुछ समय में कई बार अपनी सीमा पर आतंकवादी गतिविधियों को पाकिस्तान के समर्थन की बात कही है।

ईरान के हमलों से भड़क गया है पाकिस्तान
पाकिस्तान के विदेश कार्यालय की ओर से कहा गया है कि तेहरान ईरान ने बिना किसी वजह के पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र में घुसकर हमले किए, जिसमें दो बच्चों की मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गए। विदेश कार्यालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलूच ने कहा कि पाकिस्तान की संप्रभुता के इस उल्लंघन को पूरी तरह से अस्वीकार्य है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने कहा, यह और भी चिंताजनक है कि पाकिस्तान और ईरान के बीच संचार के कई माध्यम मौजूद होने के बावजूद यह अवैध कृत्य हुआ है। पाकिस्तान में इस तरह की एकतरफा हरकतें अच्छे पड़ोसी संबंधों के अनुरूप नहीं हैं और द्विपक्षीय विश्वास और विश्वास को गंभीर रूप से कमजोर कर सकती हैं। ऐसे में ईरान को इस तरह की कार्रवाई से बचना चाहिए।

कब हुआ गठन?
जैश उल-अदल का गठन 2012 में एक सुन्नी आतंकवादी समूह जुंदाल्लाह के सदस्यों द्वारा किया गया था। यह संगठन 2010 में ईरान द्वारा अब्दोलमलेक रिगी को फांसी देने के बाद कमजोर हो गया था। उसने अक्टूबर 2013 में सबसे बड़ा हमला किया था। जैश उल-अदल को ईरान, जापान, न्यूजीलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा बैन किया जा चुका है।

ईरान ने क्यों किया हमला?
ईरान ने कहा है कि उसके हमलों का निशाना आतंकवादी समूह जैश अल-अदल के अड्डे थे। इस हमले के बाद गाजा पट्टी में हमास के खिलाफ इजरायल के युद्ध से पहले से ही परेशान मध्य पूर्व में तनाव और बढ़ सकता है। जैश अल-अदल खुद को न्याय की सेना मानता है। इस समूह ने  ईरानी सीमा पुलिस पर कई मौकों पर बमबारी की है। और उनके अपहरण की जिम्मेदारी ली है।

पहला हमला
इस संठन ने पहली बार 25 अगस्त 2012 को हमला किया था, जिसमें आईआरजीसी के 10 सदस्य मारे गए थे। इसके बाद 25 अक्टूबर 2013 को इस समूह ने सरवन शहर में 14 ईरानी सीमा रक्षकों की हत्या की जिम्मेदारी ली। इस समूह ने दावा किया कि यह हमला 16 ईरानी बलूच कैदियों के प्रतिशोध में था, जिनहें मौत की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद 26 अक्टूबर 2013 को 16 कैदियों को फांसी पर लटका दिया गया। इसके कुछ हफ्तों के बाद 6 नवंबर को दो हमलावरों ने सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत के जाबोल शहर में मूसा नूरी के वाहन पर गोलीबारी की। इसमें दो लोगों की मौत हो गई थी।

उसी वर्ष 2 दिसंबर को 16 आतंकवादियों की हत्या के जवाब में इस आतंकी संगठन ने सरवन में एक चौकी पर हमला किया, जिसमें एक गार्ड की मौत हो गई और चार घायल हो गए। दो हफ्ते बाद सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत के सरवन शहर में एक विस्फोट किया गया, जिसमें ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) के तीन सैनिक मारे गए। जैश अल-अदल ने 16 लड़ाकों की फांसी के प्रतिशोध में भी हमले की जिम्मेदारी ली। इसके बाद भी इस आतंकी संगठन ने कई हमलों को अंजाम दिया है।

 

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