November 25, 2024

भगवान राम के बाद आयोध्या विरासत को किसने संभाला, जानिए किसे सौंपी गई अयोध्या की गद्दी ?

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भगवान राम जैसा आदर्श राजा न कभी हो पाया है और शायद ही हो पाएगा. बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि भगवान राम, लक्षमण, भरत और शत्रुघ्न के महाप्रयाण (परमधाम जाना) के बाद उनकी विरासत किसने संभाली? भरत जी के दो पुत्र थे तक्ष और पुष्कल (वाल्मिकी रामायण उत्तर काण्ड 100.16). राम जी के आदेशानुसार भरत ने गंधर्वदेश को जीतकर उनपर दो सुंदर नगर तक्षशिला और पुष्कलावत बनाया.

वाल्मिक रामायण उत्तर काण्ड 101.11 अनुसार, मनोहर गन्धर्वदेश में तक्षशिला नाम की नगरी बसाकर उसमें भरत ने तक्ष को राजा बनाया और गान्धारदेश में पुष्कलावत नगर बसाकर उसका राज्य पुष्कल को सौंप दिया. इसके बाद भरत जी अयोध्या लौट गए.

लक्षमण जी के दो पुत्र थे अंगद और चंद्रकेतु. वाल्मिक रामायण उत्तर काण्ड 1012.4–14 अनुसार, भगवान राम लक्षमण जी से बोले "सौम्य! तुम ऐसा देश अपने पुत्रों के लिए देखो जहां निवास करने से दूसरे राजाओं को पीड़ा या उद्वेग न हो, आश्रमों का भी नाश न करना पड़े और हमलोगों को किसी की दृष्टि में अपराधी भी न बनना पड़े". श्रीरामचन्द्रजी के ऐसा कहने पर भरत ने उत्तर दिया- आर्य! यह कारुपथ नामक देश बड़ा सुन्दर है. वहां किसी प्रकार के रोग-व्याधि का भय नहीं है. वहां महात्मा अंगद के लिए नयी राजधानी बसाई जाए तथा चन्द्रकेतु (या चन्द्रकान्त) के रहने के लिए 'चन्द्रकान्त' नामक नगर का निर्माण कराया जाय, जो सुन्दर और आरोग्यवर्धक हो’.

भरत की कही हुई इस बात को श्रीरघुनाथजी ने स्वीकार किया और कारुपथ देश को अपने अधिकार में करके अंगद को वहां का राजा बना दिया. क्लेशरहित कर्म करने वाले भगवान श्रीराम ने अंगद के लिए 'अङ्गदीया' नामक रमणीय पुरी बसाई, जो परम सुन्दर होने के साथ ही सब ओर से सुरक्षित भी थी. चन्द्रकेतु अपने शरीर से मल्ल के समान हृष्ट-पुष्ट थे; उनके लिये मल्ल देश में 'चन्द्रकान्ता' नाम से विख्यात दिव्य पुरी बसाई गयी, जो स्वर्ग की अमरावती नगरी के समान सुन्दर थी. इससे श्रीराम, लक्ष्मण और भरत तीनों को बड़ी प्रसन्नता हुई. उन सभी रणदुर्जय वीरों ने स्वयं उन कुमारों का अभिषेक किया.

एकाग्रचित्त तथा सावधान रहने वाले उन दोनों कुमारों का अभिषेक करके अंगद को पश्चिम तथा चन्द्रकेतु को उत्तर दिशा में भेजा गया. अंगद के साथ तो स्वयं सुमित्रा–कुमार लक्ष्मण गए और चन्द्रकेतु के सहायक या पार्श्वक भरत जी हुए. लक्ष्मण अङ्गदीया पुरी में एक वर्ष तक रहे और उनका दुर्धर्ष पुत्र अंगद जब दृढ़तापूर्वक राज्य संभालने लगा, तब वे पुनः अयोध्या को लौट आए. इसी प्रकार भरत भी चन्द्रकान्ता नगरी में एक वर्ष से कुछ अधिक काल तक ठहरे रहे और चन्द्रकेतु का राज्य जब दृढ़ हो गया, तब वे पुनः अयोध्या में आकर श्रीरामचन्द्रजी के चरणों की सेवा करने लगे.

शत्रुघ्न के दो पुत्र थे सुबाहु और शत्रुघाती, उन्होंने लवणासुर को पराजित कर मधुरा का राज्यभार संभाला था. वाल्मिक रामायण उत्तर काण्ड 108.अनुसार, शत्रुघ्न ने जब अपने दूत से सुना की भगवान राम ने साकेत धाम (विष्णु लोक) जाने का निश्चय कर लिया है तब उन्होंने शीघ्र ही भगवान राम के साथ जाने का निश्चय कर लिया. उन्होनें अपने दोनो पुत्रों का राज्याभिषेक किया. शिघाता से शत्रुघ्न ने सुबाहु को मधुरा में तथा शत्रुघाती को विदिशा में स्थापित करके रघुकुलनन्दन शत्रुघ्न एकमात्र रथ के द्वारा अयोध्या के लिए प्रस्थित हुए.

भगवान राम के दो पुत्र थे कुश और लव. वाल्मिकी रामायण उत्तर काण्ड 107.16–20 अनुसार, जब भगवान राम ने विष्णु लोक जाने का निश्चय किया,  उसी दिन दक्षिण कोशल के राज्यपर वीर कुश को और उत्तर कोशल के राजसिंहासनपर लव को अभिषिक्त कर दिया. अभिषिक्त हुए अपने उन दोनों महामनस्वी पुत्र कुश और लव को गोद में बिठाकर उनका गाढ आलिङ्गन करके महाबाहु श्रीराम ने बारम्बार उन दोनों के मस्तक सूंघे; फिर उन्हें अपनी-अपनी राजधानी में भेज दिया. उन्होंने अपने एक-एक पुत्र को कई हजार रथ, दस हजार हाथी और एक लाख घोड़े दिए.

दोनों भाई कुश और लव प्रचुर रत्न और धन से सम्पन्न हो गए. वे हृष्ट-पुष्ट मनुष्यों से घिरे रहने लगे. उन दोनों को श्रीराम ने उनकी राजधानियों में भेज दिया. इस प्रकार उन दोनों वीरों को अभिषिक्त करके अपने-अपने नगर में भेज दिया. वाल्मिकी रामायण उत्तर काण्ड 108.3–6 अनुसार, भगवान श्रीराम ने कुश के लिए विन्ध्य–पर्वत के किनारे कुशावती नामक रमणीय नगरी का निर्माण करवाया. इसी तरह लव के लिए श्रावस्ती नामसे प्रसिद्ध सुन्दर पुरी बसायी थी.

रामजी के बाद किसने संभाली ‘अयोध्या’?

आनंद रामायण अनुसार पूर्ण अध्याय क्रमांक 7 अनुसार, भगवान राम अयोध्या कुश को सौंप कर गए थे. कई दिनों तक कुश अयोध्या रहने के पश्चात् वह हस्तिनापुर चले गए. कई विद्वानों का यह मानना है कि अयोध्या भी दक्षिण कोशल के अंतर्गत ही आती है तो इसपर संशय करने का सवाल ही नहीं पैदा होता.

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