सूर्य षष्ठी, मोरियायी छठ कल, सूर्य की उपासना का दिन
इंदौर
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में ही षष्ठी तिथि के दिन सूर्य षष्ठी अथवा ललिता षष्ठी का आयोजन किया जाता है। इस दिन सूर्यदेव का पूजन किया जाता है। पुराणों में इसके बारे में कहा गया है कि इस व्रत को करने से भगवान् सूर्य प्रसन्न होते हैं और उपासक को सूर्य जैसे तेज की प्राप्ति होती है। इस दिन गंगा स्नान का भी महत्व बताया गया है। इस व्रत को करने से उपासक को नेत्र रोगों से मुक्ति मिलती है और उसे कुष्ठ आदि रोग भी नहीं होते हैं। इस व्रत में लाल पदार्थों का विशेष महत्व बताया गया है। कनेर के फूल, गुलाल और लाल वस्त्र आदि का दान देना चाहिए। शाम को सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन नमक का सेवन नहीं किया जाता है।
भाद्रपद मास, शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि दो सितंबर, शुक्रवार को मोरयाई छठ व्रत किया जाएगा। इसे सूर्य षष्ठी व्रत या मोर छठ के नाम से भी जाना जाता है। मोर छठ का व्रत पूरी तरह भगवान सूर्य को समर्पित है, इस दिन सूर्य उपासना एवं व्रत रखने का विशेष महत्व होता है।
मोरियाई छठ पूजन विधिः
इस दिन सुबह-सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर लाल चंदन व केसर से भगवान सूर्य की प्रतिमा बनाएं। प्रतिमा पर भगवान सूर्य को प्रिय वस्तुएं जैसे लाल चंदन, लाल फल, लाल वस्त्र आदि चढ़ाएं, घी का दीपक जलाएं। इस दिन सूर्य देव के विभिन्न नाम तथा मंत्रों का जाप अवश्य करें। ॐ घृणि सूर्याय नमः मंत्र का जाप करें। सुबह भगवान सूर्यनारायण को एक तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल कुमकुम, लाल रंग के पुष्प डालकर अर्घ्य दें। पूजन के पश्चात शाम को चीनी, घी, फल, द्रव्य दक्षिणा वस्त्र ब्राह्मण को दान करना चाहिए।
सूर्य पूजन करने से होता है लाभः
इस व्रत व पूजन को करने से नेत्र रोग से मुक्ति मिल जाती है, तथा कोढ़ रोग भी दूर होता है। जिन लोगो की कुंडली मे सूर्य नीच का है या शुभ नहीं है, उन्हें इस दिन व्रत करने और सूर्य की पूजा करने से लाभ होगा। यदि कुंडली मे ग्रहण योग बना है, यानी कि सूर्य के साथ राहु बैठा हो या द्रष्टगत हो, उसे भी लाभ प्राप्त होता है।