OBC आरक्षण लागू करने में इकानॉमिक डाटा का रोड़ा
भोपाल
प्रदेश में लोक सेवा आयोग और अन्य भर्ती एजेंसियों के द्वारा आयोजित की जाने वाली भर्ती परीक्षा के बाद भी परिणाम घोषित करने और नियुक्तियों में देरी की मुख्य वजह ओबीसी सामाजिक और शैक्षणिक रिसर्च डेटा उपलब्ध नहीं होना है। सरकार ओबीसी को नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण देना चाहती है लेकिन नया डेटा नहीं होने से अलग-अलग कोर्ट में चल रहे केस में स्थिति साफ नहीं हो पा रही है। ऐसे में सरकारी नौकरियों के लिए रिक्त पदों की भर्ती नहीं हो पाने से अब सरकार की चिंता बढ़ने लगी है। इसे देखते हुए अगले तीन माह में ओबीसी आयोग के माध्यम से सरकार रिसर्च डेटा एकत्र करने में तेजी लाने वाली है ताकि आरक्षण की स्थिति के लिए सरकार कोर्ट में नए डेटा पेश कर सके।
ओबीसी वर्ग के युवाओं को भर्ती परीक्षाओं मेंं 27 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए चल रही कवायद को विराम देने के लिए अब सरकार नए सिरे से पहल करने जा रही है। इस काम में आने वाले व्यवहारिक दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए सरकार अब सभी संबंधित विभागों से इस पर काम करने पर फोकस करेगी। सूत्रों का कहना है कि 27 प्रतिशत आरक्षण देने के मामले में न्यायालयों मे चल रहे प्रकरणों के चलते पीएससी और पीईबी से होने वाली परीक्षाओं पर भी असर पड़ा है और परीक्षा के बाद अंतिम परिणाम घोषित करने का काम प्रभावित हो रहा है।
बताया जाता है कि पिछड़ा वर्ग आयोग ने पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव कराने के लिए सभी विभागों से जानकारी मंगाकर जिस तरह से डेटा एकत्र कर उसे कम्पाइल कराकर कोर्ट में पेश किया और कोर्ट की सहमति के बाद चुनाव हुए। इसी तरह अब प्रदेश में ओबीसी की एक्चुअल रिपोर्ट देने के लिए रिसर्च डेटा जुटाने का काम पिछड़ा वर्ग आयोग करने की तैयारी में है ताकि सरकार को सटीक डेटा देकर कोर्ट में पेश करने के लिए उपलब्ध कराया जा सके। ऐसा होने पर सरकारी नौकरियों में तेजी आ सकेगी और अगले चुनाव के पहले सरकार इस पर तेजी से काम करना चाहती है।
पीएससी को बढ़ाना पड़ रहा परीक्षा तिथि
आरक्षण के पेंच के चलते पीएससी द्वारा ली जाने वाली परीक्षाएं सबसे अधिक प्रभावित हो रही हैं। स्थिति स्पष्ट नहीं होने के कारण पीएससी द्वारा किसी न किसी बहाने परीक्षाओं की तिथियों में बदलाव कर उसे आगे बढ़ाया जा रहा है।
अभी पुराने डेटा पर चल रहा काम
ओबीसी को बढ़ा हुआ आरक्षण देने के लिए ताकत लगा रही सरकार के पास एक दशक पहले जो आंकडेÞ जारी हुए थे, वही उपलब्ध हैं। नए सटीक डेटा मौजूद नहीं हैं। इसलिए कोर्ट द्वारा जानकारी मांगे जाने पर उसी के आधार पर डेटा दिए जा रहे हैं और सरकार मान रही है कि इसी कारण कोर्ट का फैसला सरकार के पक्ष में पूरी तरह नहीं आ पा रहा है।