शिवपाल की नई मुहिमः क्या है असल मकसद? अखिलेश यादव को नुकसान तो किसे होगा फायदा
लखनऊ
शिवपाल यादव भले ही दावा करें कि यदुकुल पुनर्जागरण मिशन का मकसद गैर सियासी है, लेकिन इसके जरिए वह मिशन-2024 को साधने में लग गए हैं। अखिलेश यादव से पूरी तरह अलग होने के बाद अब वह किसी न किसी बहाने सपा के यादव मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने में जुट गए हैं। इस मुहिम से समाजवादी पार्टी को कितना नुकसान होगा और भाजपा को कितना फायदा होगा, यह तो भविष्य की बात है, लेकिन शिवपाल अब अखिलेश विरोधी यादव नेताओं को एक मंच पर लाकर सेंधमारी की कवायद में संजीदगी से जुट गए हैं।
अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री थे, उन्होंने डीपी यादव की बाहुबली छवि का हवाला देते हुए सपा में लेने से इंकार कर दिया था। यह अलग बात है कि डीपी यादव सपा में रहते हुए सांसद बने थे। भरत गांधी कन्नौज लोकसभा उपचुनाव में डिंपल यादव के खिलाफ मुहिम चला चुके हैं। सपा के पूर्व विधायक रामपाल यादव (अब भाजपा में) का अवैध निर्माण भी सपा सरकार में ध्वस्त किया गया था।
शिवपाल यादव से पूछा गया कि क्या इन सपा विरोधी नेताओं का यह जमावड़ा है तो उन्होंने कहा कि हम लोग किसी को टारगेट करने के लिए नहीं हैं। यही नहीं शिवपाल इस बात से इंकार करते हैं कि भाजपा ने उन्हें अपेक्षित महत्व नहीं दिया इसलिए वह इस तरह का अभियान चला रहे हैं। शिवपाल का कहना है कि उनकी उन्होंने स्वीकार्यता हर जगह है। खास बात यह कि भाजपा में शामिल हो चुके एक पूर्व विधायक रामपाल यादव भी इस मिशन में शामिल हुए हैं।
असल में शिवपाल यादव अब अपने मिशन को श्रीकृष्ण के नाम से जोड़ रहे हैं। नए मिशन का ऐलान के वक्त बड़े से बैनर पर एक ओर श्रीकृष्ण का चित्र तो दूसरी ओर शिवपाल व डीपी यादव का चित्र संकेत दे रहे थे कि अब यदुवंश की सियासी दावेदारी के लिए सपा से संघर्ष तेज होगा।
सबसे बड़ी बात यह कि सेना में अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग उठा कर उन्होंने यह संकेत देने की कोशिश की है कि सपा को इनसे कोई वास्ता नहीं। अब यादव वर्ग में चाचा भतीजे में किस ओर ज्यादा झुकाव होगा और भाजपा इसमें अपने यादव नेताओं के जरिए कितना असर बना पाती है, इसी से तय होगा कि यादव बेल्ट की विरासत अगले चुनाव में तय होगी।