भारत पर हो गया 620.7 अरब डॉलर का कर्ज, क्या श्रीलंका जैसे बिगड़ेंगे हालात? सरकार ने दिया जवाब
नई दिल्ली
भयावह आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका को देखकर भारत में भी लगातार सवाल उठ रहे हैं, कि क्या भारत पर विदेशी कर्ज काफी ज्यादा हो गया है और क्या भारत का भी हाल श्रीलंका जैसा तो नहीं हो जाएगा? कई नेताओं ने इस बाबत ट्वीट भी किए हैं और केन्द्र की मोदी सरकार की आर्थिक नीति पर सवाल उठाए हैं। लेकिन, केन्द्र सरकार ने किसी भी चिंता की बात को सिरे से खारिज कर दिया है और कहा है, कि भारत की स्थिति पूरी तरह से ठीक है और किसी भी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है।
भारत पर 620.7 अरब डॉलर का कर्ज
केंद्र सरकार ने भारत के बाहरी कर्ज के बारे में आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि, भारत की कुल बाहरी देनदारी 620.7 अरब डॉलर में से केंद्र की हिस्सेदारी सिर्फ 130.8 अरब डॉलर है, जो कुल कर्ज देनदारी का 21 फीसदी है। केन्द्र सरकार ने कहा कि, इस कर्ज में भारत का स्पेशल ड्रॉविंग राइट (SDR) आवंटन भी शामिल है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एक सूत्र ने बताया है कि, 'अफवाह फैलाया जा रहा है, कि केन्द्र सरकार कर्ज के बोझ तले दबी हुई है, ये निराधार है और 40 प्रतिशत से ज्यादा कर्ज गैर-वित्तीय निगमों का है।' दरअसल, कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है, भारत सरकार को इसी साल 267 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज का पुनर्भुगतान करना है, जो भारत के पास कुल विदेशी मुद्रा भंडार का करीब 40 प्रतिशत से ज्यादा है, लिहाजा कई रिपोर्ट्स में कहा गया है, कि ये भारत के लिए चिंता की बात है और इससे भारत का विदेशी मुद्रा भंडार करीब आधा खाली हो जाएगा।
विदेशी कर्ज पर अधिकारियों ने क्या कहा?
भारतीय अधिकारियों ने इन चिंताओं के बाद भारत पर कर्ज की स्थिति को स्पष्ट किया है। एक सूत्र ने इकोनॉमिक टाइम्स से कहा कि, "यह विश्लेषण अधूरा, गलत है और इसमें कुछ बुनियादी तथ्य छूट गए हैं।" अधिकारियों ने ईटी को बताया कि, यह सच है कि 267.7 अरब डॉलर के कर्ज का भुगतान एक साल से भी कम समय में होना है, इसमें केंद्र की हिस्सेदारी सिर्फ 7.7 अरब डॉलर या 3% से कम है, इस प्रकार सरकार का ऋण स्तर काफी मैनेज्ड है और किसी भी प्रकार से असुरक्षित स्थिति में नहीं है। आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2013-14 के अंत में केंद्र सरकार का कर्ज जीडीपी के 52.2% से घटकर वित्त वर्ष 2019-20 के अंत में जीडीपी का लगभग 51.8% हो गया है। हालांकि, यह वित्त वर्ष 2011 में फिर से एक ही वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 10% तक बढ़ गया, क्योंकि कोविड 19 की वजह से देश में लॉकडाउन लगाना पड़ा था, जिससे अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित हुई है।
भारत के कर्ज को समझिए
अधिकारियों ने कहा कि, भारत का सकल सार्वजनिक ऋण, भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 86.9% अधिक है, लेकिन कई अन्य देशों की तुलना में बेहतर है। अमेरिका पर 125.6% का सकल सार्वजनिक ऋण है, फ्रांस का 112.6%, कनाडा का 101.8%, ब्राज़ील का 91.9% और यूके का 87.8% उनके संबंधित सकल घरेलू उत्पाद का है। कुल ऋण के प्रतिशत के रूप में बाह्य ऋण 2013-14 में लगभग 6.4% से घटकर 2021-22 में 4.7% हो गया है। हालांकि कुछ राज्यों के कर्ज पर चिंता जरूर उठ रहे हैं, जिसे पहले ही आरबीआई और अर्थशास्त्रियों द्वारा बार-बार सचेत किया जा रहा है। कई राज्यों द्वारा ऑफ-बजट उधारी का सहारा लेने के भी प्रमाण हैं।