November 29, 2024

बैंकर ने करोड़ों की नौकरी छोड़ मंदिर में शुरू की सेवा, पीएम मोदी ने किया था उद्घाटन, जानें वजह

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अबू धाबी
 यूएई के अबू धाबी में बने भव्य मंदिर में विशाल पटेल भी योगदान दे रहे हैं। दुबई में निवेश बैंकर के तौर पर मोटी सैलरी पाने वाले विशाल पटेल ने बीएपीएस हिंदू मंदिर का निर्माण में मदद के लिए नौकरी छोड़ दी और मंदिर में आकर स्वयंसेवा शुरू कर दी थी। 43 साल के विशाल पटेल ने बीते साल अबू धाबी मंदिर में पूर्णकालिक सेवा करने के लिए दुबई इंटरनेशनल फाइनेंशियल सेंटर में अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला लिया। इसके बाद वह अबू धाबी में ही आ गए और मंदिर में बतौर वालंटियर काम करना शुरू कर दिया

विशाल ने खलीज टाइम्स से कहा, "2016 से मैं परिवार के साथ यूएई में रह रहा हूं। मेरे लिए करियर हमेशा मेरा प्राथमिकता रहा क्योंकि मैं प्रमुख निवेश बैंकों और हेज फंड जैसे पदों पर था। अबू धाबी में मंदिर के लिए सेवा करने से मुझे समाज पर एक सार्थक प्रभाव डालने की अनुभूति हुई। मैं यहां आया तो फैसला किया कि अब मुझे पूरी तरह मंदिर की सेवा में ही जुट जाना है।" यूके में जन्मे और पले-बढ़े विशाल ने बताया कि वह बचपन से ही बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था से जुड़े रहे हैं। लंदन में रहते हुए भी वह वहां के बीएपीएस श्री स्वामीनारायण मंदिर में लगातार जाते रहे हैं।

मंदिर निर्माण के साथ जुड़े हुए हैं विशाल

विशाल अबू धाबी के इस मंदिर से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। निर्माण प्रक्रिया में भाग लेते हुए उन्होंने निर्माण स्थल पर सुरक्षात्मक बाड़ लगाने से लेकर कंक्रीट के ढेर लगाने तक का काम किया। वह मेहमानों और आगंतुकों को भोजन परोसने में भी शामिल रहे हैं। मंदिर के तैयार होने के बाद वह मुख्य संचार अधिकारी के रूप में विशाल मीडिया संबंधों और रणनीतिक संचार का काम देख रहे हैं।

विशाल का कहना है कि आध्यात्मिक गुरुओं, प्रमुख स्वामी महाराज और महंत स्वामी महाराज ने उनके और बहुत से लोगों के दिमागों पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा है। इसी से प्रभावित होकर दुनियाभर से लोग मंदिर में आकर सेवा कर रहे हैं। विशाल ने इस बात पर जोर दिया कि महंत स्वामी महाराज ने उन्हें लगातार एकता, बंधुत्व और एकजुटता के सिद्धांतों के अनुसार सेवा करने और जीने की बात सिखाई। विशाल बताते हैं कि प्रमुख स्वामी महाराज ने 1995 में बीएपीएस श्री स्वामीनारायण मंदिर, लंदन के निर्माण के दौरान एक खेल का मैदान भी बनाया था। मैं लंदन मंदिर के जिम के अंदर फुटबॉल और क्रिकेट खेलता था। इस तरह मैंने मंदिर के साथ अपना जुड़ाव शुरू किया। इसके बाद मैं स्वयंसेवी गतिविधियों में शामिल हो गया। बीएपीएस ने समाज की सेवा कैसे की, इसके बारे में मेरी समझ गहरी होती चली गई।

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