November 28, 2024

INDIA अलायंस की मुसीबत ओर बढ़ी, UP से बिहार तक ओवैसी उतारेंगे कैंडिडेट

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नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले नीतीश कुमार और जयंत चौधरी ने एनडीए का दामन थाम लिया है। कुछ दिन पहले तक ही दोनों नेता INDIA अलायंस की मीटिंगों में हिस्सा ले रहे थे। इसके चलते INDIA अलायंस थोड़ा असहज है और उसकी परेशानी बढ़ाने के लिए अब असदुद्दीन ओवैसी भी सक्रिय होते दिख रहे हैं। ओवैसी की पार्टी AIMIM के सूत्रों का कहना है कि यूपी के मुरादाराबाद, रामपुर, संभल, बरेली जैसे इलाकों से उम्मीदवार उतारे जाएंगे। इसके अलावा बिहार के सीमांचल में भी ओवैसी की पार्टी फिर से कैंडिडेट उतारने वाली है।

यहां पहले भी वह चुनाव में उतर चुके हैं। INDIA अलायंस मुस्लिम वोटों पर भरोसा कर रहा है, ऐसे में ओवैसी की रणनीति उसे झटका देने वाली होगी। सूत्रों के अनुसार ओवैसी की पार्टी उत्तर प्रदेश में करीब 20 सीटों पर उतरने जा रही है। इनमें पश्चिम यूपी, रुहेलखंड और पूर्वांचल की सीटें ज्यादा होंगी। इसके बाद बिहार की भी 7 सीटों पर AIMIM की नजर है। बिहार में 2019 में ओवैसी की पार्टी ने महज एक सीट पर ही चुनाव लड़ा था। यही नहीं महाराष्ट्र के औरंगाबाद की एक सीट पिछली बार जीतने वाले ओवैसी अब इस राज्य में भी अपनी पैठ बढ़ाने की तैयारी में हैं।

जानकारी के मुताबिक AIMIM की तैयारी है कि मुंबई और मराठवाड़ा की सीटों से चुनाव लड़ा जाए। इसके अलावा तेलंगाना में भी हैदराबाद के बाहर भी विस्तार की योजना है। चर्चा है कि पड़ोस की ही सिकंदराबाद सीट से भी कैंडिडेट उतारा जा सकता है। हालांकि ममता बनर्जी के लिए थोड़ी राहत की बात होगी। यहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी चुनाव में नहीं उतरेगी। हालांकि 2021 के विधानसभा चुनाव में उसने उम्मीदवार उतारे थे। दरअसल बिहार के सीमांचल इलाके में ओवैसी की पार्टी अपने लिए बड़ा जनाधार देखती रही है। 2019 में हैदराबाद से ओवैसी जीते थे और महाराष्ट्र के औरंगाबाद से इम्तियाज जलील संसद पहुंचे थे।

यही नहीं बिहार की किशनगंज सीट से AIMIM के कैंडिडेट अख्तर-उल-इमान को 2019 में 3 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। वह तीसरे नंबर पर रहे थे। यहां जीत कांग्रेस और आरजेडी के संयुक्त उम्मीदवार की हुई थी। यह इकलौती सीट थी, जहां से INDIA अलायंस को जीत मिली थी। ऐसे में यहां से फिर AIMIM का उतरना चिंता की बात होगी। दरअसल उत्तर भारत में समाजवादी पार्टी, आरजेडी और कांग्रेस जैसे दल मुस्लिम वोट बैंक पर निर्भर रहे हैं। ऐसे में यहां ओवैसी की एंट्री उनके कई समीकरणों को बिगाड़ सकती है।

 

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