आंध्र प्रदेश की विकास यात्रा में कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे आदिवासी
विशाखापट्टनम
करीब 100 किलोमीटर दूर पडेरू मंडल की आबादी लगभग साढ़े छह लाख है। इसमें से 90.71 प्रतिशत आबादी आदिवासी जनजाति की है। पूरी तरह आदिवासी क्षेत्र होने के बावजूद यह क्षेत्र विशाखापट्टनम जैसे बड़े शहर की जरूरतें पूरी कर रहा है। देश के सबसे बड़े आदिवासी क्षेत्रों में से एक पडेरू में लोगों की 60 प्रतिशत आय कृषि उपज से ही होती है।
देश के चौथे सबसे बड़े कॉफी उत्पादक राज्यों में शामिल आंध्र प्रदेश का 31 प्रतिशत काफी उत्पादन यहीं होता है, जिसकी पूरी व्यवस्था आदिवासियों के हाथ में है। यहां से कुछ ही दूरी पर अराकू में बने काफी म्यूजियम में यह व्यवस्था बहुत ही रोचक तरीके से दर्शायी गई है। खास बात यह है कि काफी उगाने और इसे तैयार करने के पारंपरिक तरीकों में सरकार हस्तक्षेप नहीं करती। काफी के अलावा धान, रागी, मक्की, स्ट्राबेरी, पाइनएप्पल, ड्रैगन फ्रूट, सीताफल और मसाले यहां प्रमुख रूप से उगाए जाते हैं।
इंटीग्रेटिड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसी पडेरू के प्रोजेक्ट अधिकारी गोपाल कृष्णा बताते हैं कि आदिवासी जैविक तरीकों से खेती करते हैं, इसलिए शहरी क्षेत्रों में यहां के उत्पादों की मांग काफी है। इसके लिए हमने अच्छा मंडी सिस्टम तैयार किया है। यह व्यवस्था भी आदिवासियों के हवाले की गई है। सरकार सिर्फ उनकी जरूरतों का ध्यान रखती है। विशाखापट्टनम में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध की मुहिम को भी आदिवासी समाज के लोगों का साथ मिला है। भगता, वाल्मीकि और कोंडाडोरा यहां की प्रमुख आदिवासी जनजातियां हैं, यही लोग बड़ी मात्रा में पत्तों से प्लेटें व अन्य सामान बना कर विशाखापट्टनम भेजते हैं। बांस से बने डस्टबिन और नारियल के खोल से बने चम्मच की भी काफी मांग है।
कानून व्यवस्था को लेकर गोपाल कृष्णा बताते हैं कि यहां अपराध न के बराबर ही है। यदि कहीं कोई घटना सामने आ भी जाए, तो उसमें भी गैर आदिवासियों की ही भूमिका सामने आती है। आदिवासी समाज के लोग पंचायत द्वारा प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आपसी मसलों को सुलझा लेते हैं। आदिवासी हस्तशिल्प को प्रोत्साहित करने और उनकी संस्कृति को सहेजने के लिए अराकू में ट्राइबल म्यूजियम का निर्माण किया गया है।