महू से 270 किलोमीटर की दूरी तय कर रायसेन पहुंचा बाघ
इंदौर
साढ़े नौ माह इंदौर वनमंडल के जंगल में विचरण करने वाला बाघ अब रायसेन पहुंच गया। यहां से महीनेभर में 270 किमी का सफर तय किया है। रायसेन से तस्वीर सामने आने के बाद स्टेट फारेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट (एसएफआरआइ) जबलपुर ने महू में दिखे बाघ से पुष्टि की है। संस्थान ने महू और रायसेन से मिले प्रमाणों का आकलन किया, जिसमें दोनों तस्वीरों में बाघ की पीठ पर घाव के निशान दिखे है। साथ ही पगमार्क भी एक सामान पाए गए हैं। अधिकारियों के मुताबिक बाघ दोबारा टाइगर कारिडोर में पहुंच चुका है। ये बहुत अच्छा संकेत है, क्योंकि वह भटककर महू-मानपुर के जंगलों तक पहुंचा था। वे बताते हैं कि बाघ रायसेन के नरापुरा स्थित गोशाला के पास है।
40 किमी का दायरा
बीते साल अप्रैल अंतिम सप्ताह में बाघ को महू के जंगलों में पहुंचा। यहां से सैन्य परिसर में बाघ को देखा गया। कई बार सीसीटीवी कैमरे में भी बाघ की तस्वीरें कैद हुई। बड़गोंदा के जंगलों में भी बाघ ने लम्बे समय तक अपना ढेरा जमा रखा था। बड़गोंदा से मानपुर होते हुए बड़वाह के जंगलों में भी बाघ का मूवमेंट देखा गया। महीनों तक इन जंगलों में बाघ घूमता रहा है। अधिकारियों के मुताबिक बाघ ने महू-मानपुर के जंगलों में अपनी नई टेरेटरी बना रखी थी, जो 40 किमी का दायरा बना जाता है।
15 से ज्यादा मवेशियों का शिकार
पिछले साल अप्रैल 2023 से जनवरी 2024 के बीच बाघ का मूवमेंट महू-मानपुर के जंगलों में रहा। इस अवधि में बाघ ने करीब 15 से अधिक मवेशियों को अपना शिकार बनाया, जिसमें ज्यादातर गाय व बकरी शामिल हैं। ग्रामीणों ने बाघ के मवेशियों के हमले के बारे में वन विभाग को जानकारी दी। अधिकारियों के मुताबिक अधिकांश शिकार की घटनाएं अक्टूबर से दिसंबर के बीच हुई है।
घाव से हुई पहचान
महू-मानपुर के जंगलों में बाघ से जुड़े मिले प्रमाणों को वन्यप्राणी शाखा और एसएफआरआइ को भेजा गया, जिसमें पगमार्क, शिकार किए मवेशियों की तस्वीरें, नाखूनों के निशान सहित कई तस्वीरें शामिल थे। दस महीने की अवधि में 50 से ज्यादा वीडियो भी लोगों ने बनाकर वायरल किए थे। ये सारे तथ्य भेजे गए थे। मगर इनमें सबसे अहम बाघ के घाव की तस्वीर को बताया जा रहा है, क्योंकि 7 मार्च को यही बाघ रायसेन में नजर आया था। उसके पीठ पर भी घाव था, जो साफ नजर आ रहा था। इसके आधार पर संस्थान ने महू में घूम रहे बाघ की पुष्टि की है। घाव के अलावा भी बाघ की धारियों को भी तस्वीरों से मिलान किया गया। दोनों स्थानों के पगमार्क भी एक जैसे दिखे।
निर्माण कार्यों से वन्यजीव प्रभावित
रायसेन-खिवनी अभयारण्य-उदय नगर से लेकर बड़वाह के जंगलों को टाइगर कारिडोर माना जाता है। इस पूरे क्षेत्र में इंस्टिट्यूट आफ वाइल्ड लाइफ देहरादून ने कई बाघ होने की पुष्टि कर रखी है। यहीं से बाघ भटक कर चोरल से होते ही महू और मानपुर पहुंचा है। वन्यप्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि इंदौर-खंडवा हाईवे का काम चलने की वजह जंगली जानवर प्रभावित हो चुके हैं।
सुरंग बनाने के लिए ब्लास्टिंग करनी पड़ रही है। इन धमाकों से जानवर टाइगर कारिडोर में लौट नहीं पा रहे हैं। वे बताते हैं कि महू में नजर आए बाघ को भी दोबारा कारिडोर में लौटाने के लिए काफी समय लगा, जो महू के मलेंडी, बड़गोंदा, मानपुर से बड़वाह होते हुए उदय नगर, खातेगांव, कन्नौद, सीहोर से रायसेन पहुंचा है।