November 25, 2024

आइआइएम इंदौर बना आक्सीजन का ओपन प्लांट, प्रदूषण का स्तर घटाया

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इंदौर

सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में दिल्ली का नाम एक बार फिर सबसे ऊपर आया है। वहां की हवा को स्लो पाइजन अर्थात धीमा जहर बताया जा रहा है। ऐसा ही हाल जल्द ही उन शहरों का भी हो सकता है, जहां बढ़ते प्रदूषण पर रोक नहीं लगाई गई। किंतु प्रदूषण की इन नकारात्मक सूचनाओं से इतर इंदौर स्थित आइआइएम ने एक सुखद सूचना दी है। दरअसल, देश के शीर्ष संस्थानों में शामिल भारतीय प्रबंध संस्थान (आइआइएम) इंदौर ने अपने परिसर में ही हवा को दुरुस्त करने के तरीके पर शानदार काम किया है।

परिसर में हरियाली के लिए प्रतिवर्ष 2500 पेड़ लगाए जाते हैं, साथ ही वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम भी लागू किया गया है। यहां वर्षा के पानी को जमीन में उतारने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग को भी विधिवत अपनाया गया है। ऐसे कई प्रयासों के चलते अब आइआइएम इंदौर का एक्यूआइ (एयर क्वालिटी इंडेक्स) घटकर महज 34 पर आ गया है, जबकि इसके उलट इंदौर शहर का औसत एक्यूआइ 93 अर्थात आइआइएम परिसर से करीब तीन गुना अधिक है।

आइआइएम इंदौर के निदेशक प्रो. हिमांशु राय ने बताया कि परिसर में प्रदूषण को कम करने तथा पेट्रोल व डीजल पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए संस्थान ने ई-वाहनों को अपनाया है। संस्थान में सभी पैदल चलने को प्राथमिकता देते हैं, जिससे न सिर्फ स्वास्थ्य अच्छा रहता है बल्कि वाहनों से उत्पन्न प्रदूषण पर भी नियंत्रण रहता है। इससे पारंपरिक ईंधन पर हमारी निर्भरता भी कम हो गई है। इसका लाभ स्वच्छ हवा में योगदान के रूप मिला है।

संस्थान में सिंगल-यूज प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबंध है। इस प्रकार प्लास्टिक के डिस्पोजल के समय इन सामग्रियों से उत्पन्न होने वाले हानिकारक प्रदूषकों पर भी नियंत्रण रहता है। हर वर्ष होने वाले पौधारोपण अभियान ने भी परिसर में एक्यूआइ को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पेड़ प्राकृतिक वायु शोधक के रूप में कार्य करते हैं, कार्बन डाइआक्साइड जैसे प्रदूषकों को अवशोषित करते हैं और आक्सीजन छोड़ते हैं।

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए परिसर में प्रतिवर्ष 2.5 हजार पेड़ लगाए जाते हैं। इस पहल में संस्थान में आने वाले मेहमान भी शामिल होते हैं। हम मौसम के अनुरूप पेड़ लगाते हैं, जिससे संस्थान में पूरे साल हरियाली को बढ़ावा मिलता है। इसके परिणामस्वरूप परिसर में स्वच्छ और ताजा हवा बनी रहती है।

 

परिसर से बाहर भी चलाते हैं अभियान

डा. राय कहते हैं, सभी समुदाय सदस्यों की सहभागिता और जागरूकता हमारी वायु गुणवत्ता सुधार यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हम अर्थात आइआइएम पर्यावरणीय जिम्मेदारी की संस्कृति को बढ़ावा देने और व्यापक स्तर पर वायु प्रदूषण की चुनौतियों से निपटने के लिए संस्थान के बाहरी क्षेत्र में भी सफाई अभियान चलाते हैं और वृक्षारोपण करते हैं।

इन प्रयासों से हुई हवा दुरुस्त

आइआइएम इंदौर के प्रयास सिर्फ पौधारोपण तक सीमित नहीं है। यहां प्रभावी वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम भी लागू किया गया है, साथ ही रेनवाटर हार्वेस्टिंग तकनीक को भी अपनाया गया है। इनके अलावा पूरे परिसर में छतों पर सोलर पैनल लगाने के साथ एक सोलर ट्री की स्थापना भी की गई है। आर्गेनिक गार्डन में पेड़ों से उत्पन्न अपशिष्ट को खाद के रूप में उपयोग करके नेट-जीरो परिसर बनाने का लक्ष्य रखा गया है। संस्थान में एक वुड-चिपर मशीन भी है, जिससे सूखे पेड़ों की लकड़ी को छह माह की अवधि में खाद में परिवर्तित किया जा सकता है। जबकि प्राकृतिक रूप से इस प्रक्रिया में दो वर्षों से अधिक समय लगता है।

कंक्रीट वाला नहीं, पेड़-पौधों वाला जंगल तैयार करें

आइआइएम में पिछले पांच वर्षों में संस्थान की खाली पड़ी भूमि को हरे-भरे बगीचों में बदल दिया गया है। इन्हें पहले पार्किंग में तब्दील किया जाना था। इससे न सिर्फ कंक्रीट जंगल के निर्माण पर रोक लगाई गई, बल्कि वायु प्रदूषण से निपटने के साथ-साथ परिसर की सुंदरता भी बढ़ गई है। स्वस्थ पर्यावरण के लिए हरियाली सबसे बेहतर जरिया है। यह शरीर के साथ मन को भी दुरुस्त रखती है। चारों ओर हरियाली देखकर सुकून महसूस होता है। शहर को भी आइआइएम इंदौर के इन प्रयासों को अपनाना होगा, तभी जाकर एक स्वस्थ और पर्यावरण दुरुस्त शहर की कल्पना की जा सकेगी।

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