नेपाल ने फिर दी विवादित नागरिकता विधेयक को मंजूरी
काठमांडू
नेपाली संसद के उच्च सदन ने फिर से विवादित नागरिकता विधेयक को बिना कोई बदलाव किए मंजूरी दे दी। इससे पहले राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने इस विधेयक को संसद को लौटा दिया था। विधेयक पारित करने के लिए नेशनल असेंबली की बैठक आयोजित की गई। प्रतिनिधि सभा द्वारा दूसरी बार इसे पारित किए जाने के बाद इसे उच्च सदन में पेश किया गया।
विधेयक पर अंतिम दौर के मतदान से पहले विधायी प्रबंधन समिति के पास चर्चा के लिए भेज दिया गया था जहां इसे 31 अगस्त को बहुमत से पारित कर दिया गया। इससे पहले 14 अगस्त को नेपाल की राष्ट्रपति ने विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद को लौटा दिया था। उच्च सदन और निचले सदन द्वारा पारित किए जाने के बावजूद विधेयक को लेकर कुछ सदस्यों को आपत्ति है और वे असंतुष्ट हैं।
उच्च सदन के सदस्य बामदेव गौतम ने शुक्रवार को चर्चा के अंतिम दौर में भाग लेते हुए कहा कि इस विधेयक को लेकर राष्ट्रपति की ओर से भेजे गए उन सुझावों को नजरअंदाज कर दिया गया। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या सभी बिंदुओं पर चर्चा करके इस विधेयक को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था? क्या इसे पहले की तरह भेजना अच्छा है?
14 अगस्त को जारी विज्ञप्ति में कहा गया था कि राष्ट्रपति नागरिकता के उन मुद्दों पर गंभीर चर्चा चाहती हैं जो हमेशा से विवादास्पद रहा है। सनद रहे राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी भी इस विवादास्पद विधेयक पर प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा एवं अन्य नेताओं के साथ कई दौर की बैठकें की हैं।
दरअसल, अधिनियम में एक प्रविधान है कि उस व्यक्ति के मामले में जो नेपाल में नेपाली नागरिक मां से पैदा हुआ है और नेपाल में रह रहा है और जिसके पिता की पहचान नहीं हुई है, उसे और उसकी मां को एक स्व-घोषणा करनी होगी कि उसके पिता पहचाना नहीं हुई है। लेकिन आवेदन दाखिल करते वक्त यदि व्यक्ति की मां की मृत्यु हो गई है या वह मानसिक रूप से स्थिर नहीं है, तो कानून प्रविधान करता है कि आवेदक को सबूत के साथ एक सेल्फ डिक्लेरेशन देना होगा।
संसद से विधेयक पास होने की स्थिति में राष्ट्रपति के पास इसको प्रमाणित करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। संविधान का अनुच्छेद-113 विधेयक के प्रमाणीकरण का प्राविधान करता है। प्राविधान है कि राष्ट्रपति के पास मंजूदी देने के लिए प्रस्तुत किए गए बिल का सत्यापन 15 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए। साथ ही अधिसूचना दोनों सदनों को दी जानी चाहिए।